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पार्किंसंस रोग और रक्त वाहिकाएं: दिमाग की नसों में होते हैं लगातार बदलाव- स्टडी

पार्किंसंस रोग केवल न्यूरॉन्स को ही नहीं, बल्कि दिमाग की रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस बीमारी में रक्त वाहिकाओं की कार्यप्रणाली में लगातार बदलाव आते रहते हैं, जिससे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित होता है।

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YBN News
Parkinson

Parkinson Photograph: (ians)

नई दिल्ली। एक हालिया अध्ययन में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि पार्किंसंस रोग केवल न्यूरॉन्स को ही नहीं, बल्कि दिमाग की रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस बीमारी में रक्त वाहिकाओं की कार्यप्रणाली में लगातार बदलाव आते रहते हैं, जिससे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित होता है।

पार्किंसंस के इलाज

ये बदलाव तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के मरने की प्रक्रिया में तेजी ला सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन रक्त वाहिका परिवर्तनों को समझना पार्किंसंस के इलाज में एक नया दृष्टिकोण दे सकता है। इस खोज से बीमारी के शुरुआती चरणों में निदान और नए दवा लक्ष्य खोजने की उम्मीद जगी है, ताकि लक्षणों को नियंत्रित करने के बजाय रोग की प्रगति को रोका जा सके।

बीमारी को बढ़ाने का कारण

पार्किंसंस दिमाग की रक्त वाहिकाओं पर बड़े बदलाव धीरे-धीरे लेकर आता है और इसका खुलासा ऑस्ट्रेलिया में हुए एक शोध ने किया है। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्किंसंस की पहचान अल्फा-सिनुक्लिन प्रोटीन जमा होने से होती है, लेकिन रिसर्च से पता चला है कि दिमाग के ब्लड वेसल में होने वाले खास बदलाव बीमारी को बढ़ाने का कारण बनते हैं।

दिमाग की रक्त वाहिकाओं में बदलाव

न्यूरोसाइंस रिसर्च ऑस्ट्रेलिया (एनईयूआरए) में पोस्टडॉक्टरल स्टूडेंट डेर्या डिक ने कहा, "पहले, पार्किंसंस के रिसर्चर्स ने प्रोटीन जमा होने और न्यूरोनल लॉस पर फोकस किया है, लेकिन हमने हमारे सेरेब्रोवास्कुलचर (दिमाग की ब्लड वेसल्स) पर इसके असर को परखा है।"डिक ने आगे कहा, "हमने अपनी रिसर्च में पाया कि दिमाग की रक्त वाहिकाओं में बदलाव रीजन-स्पेसिफिक (यहां तात्पर्य दिमाग के हिस्से से है) होते हैं। पता चला कि इस दौरान स्ट्रिंग वेसल में वृद्धि होती है; ये वो वाहिकाएं होती हैं जो नॉन-फंक्शनल (इनमें एंडोथेलियल कोशिकाएं नहीं होती) होती हैं।"

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एनईयूआरए शोधार्थियों ने यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ वेल्स और यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के साथ मिलकर इस पर स्टडी की। इन्होंने ये भी पाया कि कैसे ब्रेन में रक्त संचार होता है और कैसे ब्लड-ब्रेन बैरियर ऑपरेट करता है।जर्नल ब्रेन में छपी इस स्टडी ने संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इससे भविष्य में बीमारी के इलाज में मदद मिलेगी।

नए विकल्प

शोधकर्ताओं को लगता है कि रीजन-स्पेसिफिक बदलावों को टारगेट करने से पार्किंसंस पीड़ितों की मदद हो सकेगी। इसके अलावा अन्य न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसऑर्डर्स पर ये कितनी प्रभावी रहेगी इस पर भी नजर है। डिक ने कहा, "हम अब जांच कर रहे हैं कि क्या अल्जाइमर रोग और लेवी बॉडीज टिशू (न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाते हैं) वाले डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के पोस्ट-मॉर्टम ब्रेन टिशू (मृत्यु के बाद दान किए गए मस्तिष्क के टिशू) में भी इसी तरह के सेरेब्रोवैस्कुलर बदलाव मौजूद हैं।"

शोधकर्ताओं को भरोसा है कि ये अध्ययन भविष्य में इलाज के नए विकल्प सुझा सकता है।

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 (इनपुट-आईएएनएस)

Disclaimer: इस लेख में प्रदान की गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता के लिए है। इसे किसी भी रूप में व्यावसायिक चिकित्सकीय परामर्श के विकल्प के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। कोई भी नई स्वास्थ्य-संबंधी गतिविधि, व्यायाम, शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।"

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