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चौपही मेला: संस्कृति, क्रांति और आस्था का संगम

चौपही मेला कानपुर का ऐतिहासिक पर्व है, जिसकी जड़ें स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं। लिल्ली घोड़ी नृत्य, दंडल मंडल और भव्य झांकियों के साथ यह मेला भारतीय संस्कृति और परंपरा का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है, जहां हजारों लोग हिंदू नव वर्ष का उत्सव मनाते हैं।

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Vibhoo Mishra
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कानपुर, वाईबीएन संवाददाता। 

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अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में शुरू किए गए ऐतिहासिक चौपही मेले में आज भी भारतीय संस्कृति और परंपराओं की अनूठी झलक देखने को मिलती है। मेले के जुलूस में ‘लिल्ली घोड़ी’ का नृत्य समेत कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जो युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का संदेश देते हैं। गंगा तट पर स्थित पुराना कानपुर और नवाबगंज में आयोजित होने वाले इस मेले में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। साथ ही, सांसद, विधायक और क्षेत्र के गणमान्य लोग भी इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और क्रांतिकारियों व पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

नानाराव पेशवा ने की थी शुरुआत

चौपही मेला हर साल चैत्र नवरात्रि के एक दिन पहले मनाया जाता है। श्री चौपही मेला समिति के अध्यक्ष संजय उपाध्याय के अनुसार, इस मेले की जड़ें स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारतीयों के धार्मिक आयोजनों पर भीड़ जुटाने की पाबंदी थी, जिससे क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके। इसी के विरोध में 1857 के महानायक नानाराव पेशवा ने अपनी सेना के साथ कानपुर के बिठूर से फूलबाग (तत्कालीन कंपनी बाग) तक एक भव्य जुलूस निकाला था, जिसमें घोड़े, हाथी और अन्य पारंपरिक वाहनों का इस्तेमाल हुआ। इसी के बाद से इस ऐतिहासिक आयोजन को ‘चौपही मेला’ के रूप में मनाया जाने लगा।

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क्रांतिकारियों की विरासत से जुड़ा मेला

पुराना कानपुर और नवाबगंज में आयोजित चौपही मेला अपनी ऐतिहासिक विरासत और क्रांतिकारी पृष्ठभूमि के कारण बेहद खास है। वर्षों से इस मेले का आयोजन श्री चौपही मेला समिति द्वारा किया जा रहा है। समिति के अध्यक्ष संजय उपाध्याय और महामंत्री पिंटू गुप्ता इस मेले के सफल आयोजन में अहम भूमिका निभाते हैं।

मेले के मुख्य आकर्षण

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मेले की सबसे खास परंपराओं में ‘लिल्ली घोड़ी नृत्य’ और ‘दंडल मंडल’ (डांडिया) प्रमुख हैं। मेले के दौरान कलाकार पूरे क्षेत्र में लिल्ली घोड़ी नृत्य प्रस्तुत करते हैं, जिसे देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा, भगवान राम की भव्य सवारी, झांकियां और रथ यात्रा मेले के धार्मिक महत्व को और बढ़ा देते हैं। देर रात 12 बजे भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान की झांकी विशेष भव्यता के साथ निकाली जाती है।

हिंदू नव वर्ष की बधाइयों से गूंजता है मेला

इस मेले की खासियत यह भी है कि इसमें आने वाले हर व्यक्ति के माथे पर पीले चंदन का तिलक लगाया जाता है और सभी एक-दूसरे को गले मिलकर हिंदू नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। मेले में बच्चों के लिए खिलौनों की दुकानें, झूले और मनोरंजन के अन्य साधन मौजूद होते हैं। आधुनिक दौर में भी इस मेले में मिट्टी और चीनी के पारंपरिक खिलौनों की जमकर खरीदारी होती है।

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संस्कृति, परंपरा और उत्साह का प्रतीक

चौपही मेला सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और आस्था का जीवंत प्रतीक है। यह मेला हर साल हजारों लोगों को अपनी परंपराओं से जोड़ने और देश की गौरवशाली विरासत को सहेजने का अवसर प्रदान करता है।

 

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