कानपुर, वाईबीएन नेटवर्क।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर और भारतीय सेना के मुख्यालय मध्य कमान ने ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) के लिए अत्याधुनिक प्रशिक्षण प्रणाली विकसित करने के लिए हाथ मिलाया है। दोनों संस्थानों के बीच हुए इस समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत उन्नत रिमोट पायलटिंग ट्रैनिंग मॉड्यूल (RPTM) और सॉफ्टवेयर-इन-द-लूप सिम्युलेटर (SITL) विकसित किए जाएंगे। यह सहयोग भारतीय सेना की प्रशिक्षण क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाने, दक्षता में सुधार करने, लागत घटाने और जोखिम को न्यूनतम करने का काम करेगा।
समझौते पर हस्ताक्षर, आगे बड़ा कदम
इस ऐतिहासिक करार पर मध्य कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (GOC-in-C) लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता और आईआईटी कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डॉ. जीएम कामथ एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुब्रह्मण्यम सदरला की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते से ड्रोन प्रशिक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद है।
IIT कानपुर बनेगा ड्रोन टेक्नोलॉजी का हब
इस मौके पर आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा, "भारतीय सेना के साथ हमारा यह सहयोग एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और सिमुलेशन में हमारी विशेषज्ञता को दर्शाता है। इससे अगली पीढ़ी की प्रशिक्षण प्रणालियों के विकास में मदद मिलेगी। हमारा लक्ष्य आईआईटी कानपुर को ड्रोन टेक्नोलॉजी का अग्रणी केंद्र बनाना है, जिससे देश की रक्षा और एयरोस्पेस इनोवेशन में आत्मनिर्भरता को मजबूती मिलेगी।"
ड्रोन ऑपरेटरों को मिलेगा सटीक प्रशिक्षण
तकनीकी पहलुओं की जानकारी देते हुए आईआईटी कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुब्रह्मण्यम सदरला ने बताया कि यह आरपीटीएम और एसआईटीएल मॉड्यूल ऑपरेटरों को वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों में ड्रोन उड़ाने और प्रबंधित करने का प्रशिक्षण देंगे।
उन्होंने कहा,"सिम्युलेटर के माध्यम से ऑपरेटरों को टोही, निगरानी और सामरिक हमलों जैसे विभिन्न सैन्य अभियानों में अभ्यास कराया जाएगा। इससे वास्तविक समय में महंगे अभ्यास की आवश्यकता कम होगी और सटीकता एवं सुरक्षा सुनिश्चित होगी।"
छह महीने में पूरी होगी परियोजना
यह परियोजना छह महीने के भीतर पूरी होने की योजना के साथ आगे बढ़ रही है। आईआईटी कानपुर के यूएवी प्रयोगशाला और वीयू डायनेमिक्स प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से इस पहल का नेतृत्व किया जाएगा। इस परियोजना को सफल बनाने में प्रो. सदरला और उनके छात्र नीतेश, सागर, किशोर, वामशी और अभिषेक सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
यह साझेदारी भारतीय सेना और शिक्षाविदों के बीच एक नए युग की शुरुआत करेगी, जिससे भविष्य में रक्षा क्षेत्र की तकनीकों में और भी नवाचार देखने को मिलेंगे।