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चर्चित अधिवक्ताअखिलेश दुबे का फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)
कानपुर, वाईबीएन संवाददाता। जूही कलां, साकेत नगर स्थित केडीए की आवासीय योजना में चर्चित पार्क आवंटन विवाद अब गंभीर मोड़ ले चुका है। प्रकरण में शासन ने हाईकोर्ट के निर्देश पर दो सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया है। यह मामला चर्चित अधिवक्ता अखिलेश दुबे से भी जुड़ा है, जिसके बाद पार्क की जमीन पर हुए कथित अनियमित आवंटन और निर्माण की जांच तेज हो गई है।
हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी
इलाहाबाद हाई कोर्ट में सौरभ भदौरिया की ओर से दाखिल जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि योजना संख्या–2, ब्लॉक W-1 के प्लॉट नंबर 559 को पार्क के लिए आरक्षित किया गया था। पार्क के रखरखाव के लिए इसे 1998 में 10 वर्ष के लिए डॉ. ब्रिजकिशोरी दुबे मेमोरियल स्कूल को दिया गया था, लेकिन अवधि समाप्त होने के बाद भी नवीनीकरण नहीं किया गया और पार्क की भूमि पर अवैध कब्जे तथा निर्माण जारी रहे।
इस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की गई, इस बारे में जानकारी प्रस्तुत नहीं की गई। कोर्ट ने मामले की गहन जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
सरकार ने बनाई जांच समिति
हाईकोर्ट के आदेश पर आवास विभाग ने दो सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है। इसमें बलकार सिंह, आवास सचिव और राजेश राय, विशेष सचिव को शामिल किया गया है। समिति को चार सप्ताह में रिपोर्ट प्रमुख सचिव को सौंपनी है, जिसके बाद प्रमुख सचिव दो सप्ताह के भीतर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर शपथपत्र सहित रिपोर्ट कोर्ट में जमा करेंगे। प्रकरण की अगली सुनवाई 5 जनवरी 2026 को निर्धारित है।
क्या है पूरा मामला?
- प्लॉट संख्या 559, ब्लॉक W-1, योजना संख्या-2, क्षेत्रफल 1.11 एकड़, भूमि उपयोग-पार्क।
- वर्ष 1998 में 10 साल के लिए स्कूल को पार्क अनुरक्षण के लिए दिया गया।
- वर्ष 2008 में अनुबंध की अवधि खत्म होने पर नवीनीकरण नहीं किया गया।
- इसके बावजूद पार्क क्षेत्र में अनाधिकृत निर्माण और मकान बनते रहे।
- केडीए ने वर्ष 2025 में धारा 26(क) 4 नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 के तहत नोटिस जारी किया।
- केडीए सचिव अभय पांडेय ने बताया कि जांच समिति गठित कर दी गई है और प्राधिकरण आवश्यक दस्तावेज तैयार करा रहा है।
- अब पूरे प्रकरण में शासन और केडीए की भूमिका पर हाईकोर्ट की निगाहें हैं। आने वाली जांच रिपोर्ट तय करेगी कि अवैध कब्जे और लापरवाही के लिए कौन अधिकारी जिम्मेदार होगा।
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