कानपुर, वाईबीएन ,संवाददाता। साइबर क्राइम की चुनौती से निबटने के लिए खाकी वर्दी को नए मोर्चे पर मुस्तैद करने की तैयारी है। एक-डेढ़ महीने की मियाद में कानपुर कमिश्नरेट में आला अधिकारियों से लेकर समस्त दारोगा-इंस्पेक्टर को ऑनलाइन कोर्स अनिवार्य रूप से करना होगा। तय किया गया है कि, ट्रेनिंग पूरी करने वालों को ही थाना-चौकी की जिम्मेदारी मिलेगी। फिलवक्त तैनात दारोगा-इंस्पेक्टर ने ट्रेनिंग से परहेज किया तो उन्हें थाना-चौकी की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाएगा।
साइबर क्राइम का एक्सपर्ट बनाना
इस पहल का मकसद पुलिस को साइबर क्राइम का एक्सपर्ट बनाकर इन्वेस्टिगेशन की बारीकियों को समझाना है।
दरअसल, डिजिटल क्रांति के दौर में साइबर अपराधियों ने ऑनलाइन अपराध के तमाम नए तरीकों को गढ़ लिया है। डिजिटल क्रांति के युग में साइबर अपराधों का ग्राफ बढ़ा है। वित्तीय फ्रॉड, फिशिंग, हैकिंग, डेटा चोरी, रैनसमवेयर, डार्क वेब जैसी जटिल समस्याओं के कारण पुलिस विभाग की साइबर क्षमता को मजबूत करना जरूरी हो गया है।
नेशनल साइबर क्राइम ट्रेनिंग सेंटर
ऐसे में देश-प्रदेश के तमाम हिस्सों में बैठकर साइबर क्रिमिनल्स पर ठोस कार्रवाई के लिए नेशनल साइबर क्राइम ट्रेनिंग सेंटर ने पोर्टल पर ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाया है। इसी परिपेक्ष्य में बीते दिनों डीजीपी प्रशांत कुमार ने ऐसी मुकम्मल व्यवस्था बनवाई है, जिसके जरिए विदेश में बैठे अपराधियों के खिलाफ भी यूपी पुलिस कार्रवाई करने में सक्षम होगी। साइबर अपराधियों पर सख्त लगाम लगाने के लिए तय किया गया कि, प्रत्येक पुलिस अधिकारी को साइबर क्राइम से निबटने के लिए फौरी जानकारी होनी चाहिए। इसी नाते कानपुर में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में योजना शुरू हुई है।
प्रशिक्षण के लिए चार कोर्स अनिवार्य होंगे
पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने पायलट प्रोजेक्ट को तत्काल रूप से लागू करने का निर्देश देते हुए बताया कि, प्रशिक्षण के लिए चार कोर्स अनिवार्य होंगे। रेस्पोंडर टैक, फोरेंसिक ट्रैक, इंवेस्टिगेशन ट्रैक और साइबर क्राइम जागरुकता नामक चारों कोर्स ऑनलाइन और निःशुल्क होंगे।
डिजिटल फॉरेंसिक प्रक्रिया
उपर्युक्त कोर्स के जरिए पुलिस अधिकारियों को साइबर अपराधों की मूलभूत समझ के साथ-साथ तकनीकी जांच के तौर-तरीके, डिजिटल फॉरेंसिक प्रक्रिया, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रबंधन एवं साइबर कानूनों की जानकारी हासिल होगी। पुलिस आयुक्त के मुताबिक, साइबर क्राइम पोर्टल की ट्रेनिंग के जरिए साइबर क्राइम पर लगाम लगाने व संबंधित विवेचनाओं की प्रभावी कार्यवाही करने में कमिश्नरेट पुलिस एक्सपर्ट होगी। गौरतलब है कि, कानपुर पुलिस ने काफी हद तक साइबर क्राइम को कंट्रोल किया है, लेकिन तमाम मोर्चों पर तनिक ज्यादा मुस्तैद होने की जरूरत है।
जल्द होशियारी सीखें, अन्यथा थाना-चौकी नहीं
पायलट प्रोजेक्ट को कामयाब बनाने के लिए तय किया गया है, नेशनल साइबर क्राइम ट्रेनिंग सेंटर के पोर्टल से निर्धारित प्रशिक्षण पूर्ण करने वाले दारोगाओं को चौकी और इंस्पेक्टर्स को चौकी-थाने के प्रभारी की जिम्मेदारी मिलेगी। सभी पुलिस अधिकारियों को अधिकतम एक महीने में ट्रेनिंग करना अनिवार्य है। प्रशिक्षण के लिए एनआईसी आईडी अनिवार्य है, ऐसे में जिन पुलिसकर्मियों की आईडी नहीं है, उन्हें प्रशिक्षण के लिए 15 अतिरिक्त दिन मुहैया होंगे। तय किया गया है कि 15 जून तक ट्रेनिंग के पास प्रमाणपत्र को डाउनलोड के बाद जमा करना होगा। ऐसा नहीं करने की स्थिति में थाना-चौकी प्रभारियों को तत्काल प्रभाव से पद से हटाकर दूसरे स्थान पर तैनात किया जाएगा। सभी सहायक पुलिस आयुक्त व वरिष्ठ अधिकारी भी अनिवार्य रूप से ट्रेनिंग लेंगे।
कोई शार्टकट नहीं, पास करने होंगे नौ चैप्टर
डीसीपी-मुख्यालय एस.एम. कासिम आबिदी ने बताया कि, साइबर क्राइम रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों को एक्सपर्ट बनाने के लिए साइबर क्राइम पोर्टल पर अपलोड ट्रेनिंग माड्यूल में प्रत्येक कोर्स के लिए नौ चरण हैं। पहला चरण समझने के बाद प्रश्नोत्तरी के रूप में टॉस्क मिलेगा। इस टॉस्क में उत्तीर्ण होने के बाद ही दूसरा चरण खुलेगा। ऐसे में समूचा ट्रेनिंग प्रोग्राम समझने के बाद ही प्रमाण-पत्र होगा। एक कोर्स पूरा करने के बाद दूसरे कोर्स के लिए लिंक खुलेगा। ऐसा संभव नहीं होगा कि, क्रमबद्ध कोर्स को बाइपास करते हुए पहले किसी अन्य कोर्स को समझा जाए।