Advertisment

Death Anniversary, दारा सिंह भारतीय पहलवानी और मनोरंजन जगत के एक अनमोल रत्न, जिनकी तुलना गामा पहलवान से भी

भारत के दारा सिंह, जिन्हें 'रुस्तम-ए-पंजाब' और 'रुस्तम-ए-हिंद' के खिताब से नवाजा गया। वह भारतीय पहलवानी और मनोरंजन जगत के एक अनमोल रत्न थे। उनकी शारीरिक बनावट, ताकत और कुश्ती में महारत ने उन्हें अपने समय का अजेय पहलवान बनाया।

author-image
YBN News
DaraSingh

DaraSingh Photograph: (ians)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्ली, आईएएनएस। भारत के दारा सिंह, जिन्हें 'रुस्तम-ए-पंजाब' और 'रुस्तम-ए-हिंद' के खिताब से नवाजा गया। वह भारतीय पहलवानी और मनोरंजन जगत के एक अनमोल रत्न थे। उनकी शारीरिक बनावट, ताकत और कुश्ती में महारत ने उन्हें अपने समय का अजेय पहलवान बनाया। दारा सिंह ने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहलवानी का लोहा मनवाया।

भारत का नाम दुनियाभर में रोशन

विश्व स्तर पर बड़े-बड़े पहलवानों को चित कर उन्होंने भारत का नाम दुनियाभर में रोशन किया। भारत में दारा सिंह एक ऐसे शख्सियत हुए जिन्होंने पहलवानी के अलावा, एक्टिंग भी की। उन्हें रामांनद सागर द्वारा निर्मित रामायण में हनुमान के किरदार के लिए जाना जाता है। दारा सिंह का यह किरदार आज भी दर्शकों के दिलों में जिंदा है। 12 जुलाई 2012 को इस महान शख्सियत ने दुनिया को अलविदा कह दिया। चलिए उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातों को विस्तार से जानते हैं।

पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें 

Advertisment

दारा सिंह भारत के ऐसे पहलवान हुए जिनकी तुलना गामा पहलवान से होती रही। उन्होंने लगभग 500 कुश्ती मुकाबले लड़े और कभी हार नहीं मानी। 1968 में उन्होंने अमेरिकी पहलवान लाऊ थेज को हराकर विश्व फ्रीस्टाइल चैंपियनशिप जीती, जिसने उन्हें पहला भारतीय विश्व चैंपियन बनाया। गामा पहलवान अपने करियर में कभी कोई मुकाबला नहीं हारे। दोनों को अजेयता और विश्व स्तर पर विदेशी पहलवानों को हराने की उपलब्धियां उन्हें समान बनाती हैं। दोनों ने भारतीय कुश्ती की ताकत को साबित किया। दोनों ने विदेशी धरती पर भारत का नाम रोशन किया और कुश्ती को एक सम्मानजनक खेल के रूप में स्थापित किया। गामा पहलवान भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान पूरे परिवार के साथ चले गए। हालांकि, पहलवानी से जुड़ा उनका प्यार कभी-कभी उन्हें भारत लौटने के लिए मजबूर करता था।

गामा पहलवान 19वीं -20वीं सदी के दशकों में सक्रिय

गामा पहलवान जहां 19वीं और 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में सक्रिय थे, जब भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था। उनकी जीत ने भारतीयों में आत्मविश्वास जगाया। वहीं, दारा सिंह 20वीं सदी के मध्य में सक्रिय थे और स्वतंत्र भारत में कुश्ती को लोकप्रिय बनाया। उनकी फिल्में और टीवी उपस्थिति ने उन्हें एक व्यापक मंच प्रदान किया।

Advertisment

दारा सिंह से जुड़ी एक दिलचस्प बात

दारा सिंह से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने 200 किलो के वजन वाले ऑस्ट्रेलियाई पहलवान किंग कॉन्ग को रिंग से उठाकर बाहर फेंक दिया, जिसके बाद वे रातोंरात सुपरस्टार बन गए थे। 55 साल की उम्र में दारा सिंह ने कुश्ती में खेले गए आखिरी मुकाबले में जीत हासिल कर संन्यास लिया।

संन्यास के बाद बॉलीवुड की ओर दस्तक

Advertisment

संन्यास के बाद उन्होंने बॉलीवुड की ओर दस्तक दी। उन्होंने हिंदी सिनेमा में साल 1952 में फिल्म संगदिल से बॉलीवुड में डेब्यू किया, जिसमें दिलीप कुमार और मधुबाला जैसे सितारे थे। दारा सिंह ने अभिनेत्री मुमताज के साथ 16 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 10 सुपरहिट रहीं। उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। उनके बीच प्रेम की अफवाहें भी उड़ी थीं। उनकी आखिरी फिल्म "जब वी मेट" (2007) थी, जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादाजी का किरदार निभाया।

कुश्ती, अभिनय और देशभक्ति के लिए हमेशा याद किया जाएगा

इसके अलावा दारा सिंह ने रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में हनुमान का किरदार निभाकर घर-घर में लोकप्रियता हासिल की। इस रोल के लिए उन्होंने नॉन-वेज खाना छोड़ दिया था। बड़े पर्दे से लेकर छोटे पर्दे पर काम कर चुके दारा सिंह संसद भी पहुंचे। वह पहले स्पोर्ट्सपर्सन थे, जिन्हें 2003-2009 तक राज्यसभा सदस्य के लिए नामित किया गया। वे जाट महासभा के अध्यक्ष भी रहे। दारा सिंह को उनकी कुश्ती, अभिनय और देशभक्ति के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

Advertisment
Advertisment