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एनीमिया से गर्भवती महिला को दोगुना खतरा Photograph: (YBN)
पोषण माह पर विशेष
लखनऊ, दीपक यादव। चिनहट निवासी 28 वर्षीय समीरा ने हाल ही में एक कष्टदायक अनुभव किया जब उसने गंभीर एनीमिया से पीड़ित होने के बावजूद एक बच्ची को जन्म दिया। उसका हीमोग्लोबिन स्तर 5 के खतरनाक स्तर से नीचे पहुंच गया था। यह गंभीर स्थिति राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (आरएमएल) के मातृ एवं शिशु रेफरल विंग में सामने आई, जहां डॉक्टरों ने कुशलतापूर्वक मां और बच्चे दोनों की जान बचाई।
एनिमिया गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर समस्या
समीरा की कहानी का सकारात्मक परिणाम तो निकला, लेकिन दुर्भाग्य से यह एक बहुत बड़ी और व्यापक समस्या को दर्शाता है। जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावित कर रही है। लाखों गर्भवती महिलाओं को एनीमिया से उत्पन्न समान जोखिमों का सामना करना पड़ता है। एक ऐसी स्थिति जो मां और गर्भ में पल रहे बच्चे दोनों को ऑक्सीजन की आपूर्ति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। इस ऑक्सीजन की कमी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
प्रदेश सरकार ने बनाई रणनीति
प्रदेश सरकार ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए गर्भवती महिलाओं में एनीमिया से निपटने के के लिए व्यापक रणनीति बनाई है। इसमें कई प्रमुख घटक हैं। इनमें आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलित सेवन सुनिश्चित करने के लिए आहार विविधता को बढ़ावा देना, कमियों को दूर करने के लिए आयरन और फोलिक एसिड की खुराक का व्यापक वितरण, एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों की पहचान और उपचार के लिए लक्षित प्रयास और महिलाओं को जोखिमों और निवारक उपायों के बारे में शिक्षित करने के लिए डिजाइन किए गए जन जागरूकता अभियान शामिल हैं। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद अभी भी कई चुनौतियां हैं।
गर्भवती महिलाओं में जागरुकता की कमी
आरएमएल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषत्र डॉ. मालविका मिश्रा जागरूकता में गंभीर कमी की ओर इशारा करती हैं। उनके अनुसार, बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं को अपनी एनीमिया की स्थिति का पता तब चलता है, जब समस्या बहुत बढ़ जाती है। ऐसे में तत्काल इलाज की जरूरत होती है। शुरुआती एनिमिया की पहचान न होने से गर्भावस्था के दौरान खतरा बढ़त जाता है। इससे समय से पहले प्रसव, कम वजन के नवजात शिशुओं का जन्म और प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव जैसी स्थितियां मां और बच्चे की सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं।
एनएफएचएस-5 सर्वे के चिंताजनक परिणाम
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) उत्तर प्रदेश में गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता की चिंताजनक तस्वीर पेश करता है। सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में 49 वर्ष की आयु तक की 45.9 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। यह उच्च प्रसार दर समस्या की गंभीरता और अधिक प्रभावी हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है। एनीमिया की रोकथाम और उपचार के लिए महत्वपूर्ण आयरन-फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों की उपलब्धता के बावजूद, सर्वेक्षण में अनुशंसित पूरक आहार के पालन की कम दर चिंताजनक रूप से सामने आई है।
9.7 प्रतिशत पूरा कर रहीं 180 दिन का कोर्स
प्रदेश में केवल 22.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कम से कम 100 दिनों तक आईएफए गोलियां लेती हैं, जो अनुशंसित अवधि से बहुत कम है। इससे भी अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि केवल 9.7 प्रशितत ही आईएफए का 180 दिवसीय कोर्स पूरा करती हैं, जिससे गर्भवती महिलाओं का महत्वपूर्ण अनुपात एनीमिया के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। यहीं पर पोषण अभियान जैसे प्रेरक मंचों को जगह मिलती है।
प्रसव से पहले जांच और पारिवारिक सहयोग जरूरी
इस संबंध में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन निदेशक डॉ. पिंकी जोवेल का कहना है कि मातृ स्वास्थ्य एवं सुरक्षित प्रसव के प्रति सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। शीघ्र पंजीयन और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं के साथ-साथ एम्बुलेंस सुविधा भी उपलब्ध कराई जा रही है। यदि गर्भावस्था में एनीमिया का पता जल्दी लग जाता है तो इसे प्रबंधित किया जा सकता है लेकिन सामुदायिक जागरूकता से पूरी तरह से बचाव संभव है। यह जरूरी है कि हर गर्भवती महिला शुरुआत से ही प्रसवपूर्व जांच कराए और परिवार भी इसकी जिम्मेदारी लें।
गर्भधारण से पहले पोषक आहार पर जोर
उन्होंने कहा कि गर्भधारण से पहले ही इस बात का ध्यान रखा जाए कि महिला को पोषक आहार मिले। प्रसव से पहले जांच के दौरान पति उसके साथ स्वास्थ्य केंद्र तक जाए और दोबारा गर्भधारण को रोकने के लिए दंपति आपसी सहमति से उचित परिवार नियोजन साधन अपनाए। इस तरह हर स्तर पर जोखिम को कम करने की कोशिश से ही मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य बेहतर होगा।
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