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बिजली विभाग की बागडोर अभियंताओं के हाथों में देने की मांग Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियों की बागडोर पिछले 25 साल से आईएएस अफसरों के हाथों में है। इससे पहले 41 साल तक राज्य विद्युत परिषद का प्रबंधन अभियंताओं के हाथ में रहा। उस अवधि में विभाग का घाटा 10 हजार करोड़ रुपये था। लेकिन आईएसएस अधिकारियों के प्रबंधन में घाटा बढ़कर एक लाख करोड़ से ज्यादा हो गया।
25 साल में 1 लाख करोड़ घाटा
राज्य विद्युत परिषद का गठन 1959 में हुआ था। 41 साल तक अभियंताओं ने इसकी कमान संभाली और उस दौरान घाटा 10 हजार करोड़ रुपये रहा। वर्ष 2000 में घाटे का हवाला देकर परिषद को भंग करके पावर कारपोरेशन का गठन हुआ। इसके बाद बिजली वितरण के लिए ऊर्जा निगम बनाए गए। तब से अभी तक यानी 25 साल में घाटा एक लाख करोड़ से ऊपर पहुंच गया।
निजीकरण से पहले गहन विचार जरूरी
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने सरकार से मांग की कि बिजली कंपनियों के निजीकरण से पहले इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाए। चूंकि बिजली एक तकनीकी विभाग है। इसे अभियंताओं के नेतृत्व में चलाना ज्यादा बेहतर नजीजे दे सकता है।
तकनीकी विभाग पर नौकरशाही का कब्जा
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली कंपनियों की काम पूरी तरह से आईएएस अफसरों के हाथ में दे दी गई है। प्रमुख सचिव ऊर्जा के पद पर हमेशा आईएएस अधिकारी ही रहते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या एक तकनीकी विभााग को नौकरशाही के जरिए बेहतर ढंग से चलाया जा सकता है या इसे अभियंताओं के हवाले करना चाहिए
मौजूदा प्रबंधन की समीक्षा जरूरी
उन्होंने कहा कि सरकार यदि बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है तो सबसे पहले पिछले 66 सालों के प्रबंधन की समीक्षा करनी चाहिए। यह देखना होगा कि मौजूदा कंपनियों के प्रबंधन में क्या खामियां रही हैं। तभी सही दिशा में कदम बढ़ाया जा सकेगा।
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