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लखनऊ में आशा-संगिनी कार्यकर्ताओं ने भरी हुंकार, वेतन वृद्धि की उठाई मांग

वेतन वृद्धि समेत समेत विभिन्न मांगों को लेकर सैकड़ों आशा और संगिनी कार्यकर्ताओं ने सोमवार को ईको गार्डन में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने सरकार पर मांगों की अनदेखी का आरोप लगाकर जमकर नारेबाजी की।

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Deepak Yadav
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आशा-संगिनी कार्यकर्ताओं ने भरी हुंकार, वेतन वृद्धि की उठाई मांग Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। वेतन वृद्धि समेत समेत विभिन्न मांगों को लेकर सैकड़ों आशा और संगिनी कार्यकर्ताओं ने सोमवार को ईको गार्डन में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने सरकार पर मांगों की अनदेखी का आरोप लगाकर जमकर नारेबाजी की।  उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी देवी ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ने भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू कर कर्मचारी का दर्जा, न्यूनतम वेतन, ईपीएफ-ईएसआई और ग्रेच्युटी की सुविधा देने में कोई रुचि नहीं दिखाई। दशकों बाद भी प्रोत्साहन राशि की नई दर लागू की। यहां तक कि दर्जनों कामों की कोई प्रोत्साहन राशियां आज तक दी  ही नहीं गईं। 

प्रदेश उपाध्यक्ष निर्मला सिंह ने कहा कि वर्ष 2024 में कई राष्ट्रीय अभियानों, समसामयिक व नियमित योगदानो का भुगतान मार्च 2025 तक कर दिए जाने की अपेक्षा थी। लेकिन पिछले साल की बकाया राशि के साथ वर्ष 2025 में प्रोत्साहन राशियों के भुगतान को ही बाधित कर दिया गया। रात दिन स्वास्थ्य अभियानों में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने वाली आशा, संगीनियों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशियों का भुगतान नहीं किया जा सका। 

उषा पटेल के अनुसार, वर्ष 2019 में राज्य वित्त से घोषित 750 रुपये की अनुतोष राशि का जुलाई 2019 से 31 दिसंबर 2021 तक का भुगतान नहीं किया गया। इसी तरह मार्च 2020 में केंद्र सरकार द्वारा केविड योगदान के सापेक्ष घोषित 1000 रु. प्रति माह की दर से 24 माह तक महामारी अधिनियम की समयावधि का कोई भुगतान नहीं हुआ। वर्षों से आयुष्मान, गोल्डन कार्ड बनाने में योगदान का भी कोई पारिश्रमिक नहीं मिला। आभा पहचान पत्र बनाने के सापेक्ष भुगतान की घोषणा अभी तक लागू नहीं की जा सकी। टीवी स्क्रीनिंग, समसामयिक अन्य प्रतिरक्षण कार्यक्रमों में योगदान का भी कोई मूल्यांकन नहीं है।

आशा यादव ने कहा कि काम पर आते-जाते दुर्घटनाओं में काल कवलित होने वाली या कोल्ड या हीट स्ट्रोक से जान गंवाने वाली आशा कर्मियों के आश्रितों को किसी तरह का कोई मुआवजा नहीं मिलता और ना ही उनके इलाज की कोई योजना है। संगीता ने कहा कि प्रदेश के किसी न किसी केंद्र पर लैंगिक उत्पीड़न की घटनाएं होती रहती हैं। उनकी शिकायतों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, स्वास्थ्य समितियां,सरकार कोई सुनता ही नहीं है। प्रदेश में वर्षों से मांग के बावजूद जेंडर सेंसेसाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट का गठन नहीं किया गया। कागजी कोई कमेटी हो भी तो उसका पता नहीं है।

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आल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय कमेटी सदस्य अनीता वर्मा ने कहा कि दो फरवरी 2024 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निदेशालय में हुई वार्ता में वर्ष 2019 से 2023 तक के बकाया के एक बड़े हिस्से के भुगतान, दुर्घटना में मृतकों के परिजनों को दो लाख रुपये आभा, संचारी रोग, दस्तक, खसरा प्रतिरक्षण अभियानों का भुगतान, पर सहमति हुई थी। लेकिन उसके क्रियान्वयन पर कुछ भी नहीं किया गया।

संध्या सिंह के मुताबिक, वर्ष 2021 में प्रदेश में आशा व आशा संगिनी को मोबाइल देने की शुरुआत हुई थी। इस मोबाइल के सभी के हाथ तक पहुंचते ही डेटा ऑपरेटर का सारा कार्य इनको कुछ घंटों की ट्रेनिंग के साथ सौंप दिया गया। गुणवत्ताविहीन मोबाइल और धीमी गति की इंटरनेट सेवा के चलते कार्य एक कठिन संकट बन गए। कई बार इस ओर ध्यान आकर्षित करने के बावजूद बेहतर मोबाइल और इंटरनेट की 5जी सेवा उपलब्ध नहीं कराई जा सकी।

राज्य सचिव अंजू कटियार ने कहा कि हरियाणा राज्य की तरह ग्रेच्युटी, 10 लाख स्वास्थ्य बीमा और 50 लाख का जीवन बीमा सुनिश्चित करने, बेहतर कार्य दशा उपलब्ध कराते हुए कार्य की सीमा तय करने व न्यूनतम वेतन लागू होने तक आशा कर्मियों को मानदेय 21 हजार और संगिनी को 28 हजार प्रतिमाह दिया जाए।

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