लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में स्थानांतरण अब पारदर्शिता से अधिक हिस्सेदारी और सौदेबाज़ी का खेल बन गए हैं। बीते गुरुवार को निबंधन विभाग से जुड़े एक मामले ने प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोपों की बाढ़ ऐसी आई कि न सिर्फ विपक्ष हमलावर हो गया, बल्कि कई विभागों की तबादला प्रक्रिया या तो ठप पड़ गई या निरस्त करनी पड़ी।
कई विभाग निशाने पर
स्थानांतरण नीति के अनुसार 15 मई से 15 जून तक ट्रांसफर पूरे होने थे। मगर हकीकत यह है कि अधिकांश विभागों में अंतिम समय में भाग-दौड़ के साथ फाइलें निपटाई गईं।
निबंधन विभाग में मंत्री रवीन्द्र जायसवाल ने खुद अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
होम्योपैथी विभाग में तबादला आदेश शिकायतों के बाद निरस्त कर दिया गया।
बेसिक शिक्षा, स्वास्थ्य, आयुष विभागों में सूची बनने के बावजूद उच्चस्तरीय मंजूरी न मिलने से आदेश जारी नहीं हो सके।
जमे अफसर, निष्क्रिय व्यवस्था
ट्रांसफर न होने से वर्षों से एक ही कुर्सी पर बैठे अफसरों को सीधा फायदा मिला है। प्राविधिक शिक्षा जैसे विभाग वर्षों से तबादला प्रक्रिया से दूर हैं, जिससे विभागीय पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं।
अब सीएम स्तर से होगा निर्णय
15 जून की नीति समयसीमा समाप्त हो चुकी है। अब प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि सभी विभागों के लंबित तबादलों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं अंतिम फैसला लेंगे।
अखिलेश बोले: फीस नहीं, तो फाइल नहीं
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस पूरे मसले पर सरकार को घेरते हुए एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि सच ये है कि कई मंत्रियों ने ट्रांसफर की फीस न मिलने पर फाइल लौटा दी है, जिसको हिस्सा न मिल रहा, वही राज खोल रहा है। इस बयान से साफ है कि अब विपक्ष को सरकार पर निशाना साधने का नया मौका मिल गया है।
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