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बाराबंकी बस हादसा : बारिश के बीच मौत का मंजर, पांच घर उजड़े, कई सपने अधूरे रह गए

बाराबंकी के हरख गांव के पास शुक्रवार सुबह बारिश के दौरान गूलर का पेड़ रोडवेज की अनुबंधित बस पर गिरने से चालक और चार महिलाओं की मौत हो गई, जबकि 18 यात्री घायल हुए। बस में कुल 59 यात्री सवार थे।

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Shishir Patel
बाराबंकी सड़क हादसा  r

बाराबंकी सड़क हादसा

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बाराबंकी के हरख गांव के पास बारिश के दौरान रोडवेज की अनुबंधित बस पर गूलर का पेड़ गिरने से बड़ा हादसा हुआ, जिसमें चालक और चार महिलाओं की मौके पर मौत हो गई और 18 लोग घायल हो गए। मृतकों में कई सरकारी कर्मचारी व शिक्षक शामिल थे। हादसे के बाद पूरे क्षेत्र में शोक और कोहराम का माहौल रहा।

 पांच घर उजड़े, कई सपने अधूरे रह गए

शुक्रवार सुबह करीब 10:30 बजे बाराबंकी के हरख गांव के पास तेज बारिश हो रही थी। आसमान में बादल गरज रहे थे, और लोग अपने-अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। बाराबंकी से हैदरगढ़ जा रही रोडवेज की अनुबंधित बस में 59 यात्री सवार थे। किसी के हाथ में ऑफिस की फाइल थी, किसी के बैग में टिफिन, तो कोई धार्मिक स्थल से लौटते हुए सुकून की तलाश में था। लेकिन कुछ ही क्षणों में इस बस का सफर एक भयावह हादसे में बदल गया—जब एक विशाल गूलर का पेड़ अचानक बस के अगले हिस्से पर आ गिरा।

पेड़ के गिरते ही एक भयानक धमाका हुआ

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पेड़ के गिरते ही एक भयानक धमाका हुआ। बस का अगला हिस्सा चकनाचूर हो गया। चालक केबिन से लेकर आगे की दो पंक्तियों तक लोहा और लकड़ी ऐसे मिल गए जैसे किसी ने मौत का जाल बुन दिया हो। उस एक पल में पांच लोगों की जिंदगी हमेशा के लिए थम गई—बस चालक संतोष कुमार और चार महिलाएं, जिनमें तीन शिक्षिकाएं और एक महिला यात्री शामिल थीं। 18 अन्य लोग घायल हो गए, जिनमें से कई गंभीर हैं।

आंसुओं में डूबी कहानियां

यह हादसा सिर्फ पांच जिंदगियां नहीं ले गया, बल्कि पांच घरों के सहारे भी छीन ले गया।जूही सक्सेना (28) – हरख ब्लॉक में सहायक विकास अधिकारी (सांख्यिकी)। इकलौती संतान, जिनके वृद्ध माता-पिता की दुनिया उन्हीं पर टिकी थी। अब उनकी आंखों में सिर्फ खोखला सूनापन है।

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छह साल पहले पति को ब्रेन ट्यूमर से खो चुकी थीं

मीना श्रीवास्तव (55) – हरख ब्लॉक में सहायक विकास अधिकारी (श्रम)। छह साल पहले पति को ब्रेन ट्यूमर से खो चुकी थीं। उनकी 17 वर्षीय बेटी नैना, जो पहले ही पिता के साये से वंचित थी, अब मां से भी महरूम हो गई।संतोष कुमार (32) – बस चालक, माता-पिता का इकलौता बेटा। पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ-साथ मां रानी का एकमात्र सहारा। बेटे का शव देखते ही वह बेहोश होकर गिर पड़ीं—बस यही कह पाईं, "हमारे बुढ़ापे की लाठी टूट गई"।

पति और परिजन शवगृह में बेसुध होकर रोते रहे

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शिक्षा मेहरोत्रा (53) – प्रधानाध्यापक, सिद्धौर ब्लॉक। उनके पति और परिजन शवगृह में बेसुध होकर रोते रहे, जैसे शब्द भी इस दुख के आगे हार गए हों।रफीकुन निशां (50) – अमेठी की इन्हौना निवासी। धार्मिक स्थल से चादर चढ़ाकर लौट रही थीं, लेकिन उनका सफर बीच में ही खत्म हो गया।

जिंदगी और मौत के बीच जूझते यात्री

बस में बैठी शिक्षिका शैल कुमारी की आवाज आज भी गवाह है कि हादसे के वक्त इंसानियत का इम्तिहान भी होता है। बारिश से भीगी बस के भीतर, घायल हालत में, वह मदद के लिए पुकार रही थीं—"मदद करो, डाल हटाओ… हमें बाहर निकालो"।लेकिन कई लोग वीडियो बनाने में लगे थे। उनके यह शब्द वहां मौजूद हर संवेदनशील व्यक्ति का दिल चीर गए।एक और यात्री अहसान अहमद उस सीट पर बैठे थे, जो बाद में ‘मौत की सीट’ बन गई। उन्होंने अपनी जगह महिलाओं को दे दी। उन्हें क्या पता था, यह नेक कदम उनकी जिंदगी बचा देगा लेकिन उन महिलाओं की मौत का गवाह बना देगा।

बारिश, मलबा और जंग-ए-हयात

लगातार हो रही बारिश ने राहत कार्य को मुश्किल बना दिया। पुलिस, वन विभाग और स्थानीय लोग मिलकर करीब डेढ़ घंटे तक पेड़ को काटते रहे। बस के इमरजेंसी और मेन गेट दोनों जाम हो चुके थे, जिससे कई यात्री खिड़कियां तोड़कर बाहर निकले।दोपहर 12 बजे जाकर चालक और चार महिलाओं को बाहर निकाला जा सका—लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जिला अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

मौके पर प्रशासन और नेताओं की मौजूदगी

घटना की जानकारी मिलते ही जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी, एसपी अर्पित विजयवर्गीय, सीएमओ डॉ. अवधेश यादव, एएसपी रितेश कुमार सिंह सहित अधिकारी मौके पर पहुंचे।पोस्टमार्टम हाउस में राज्यमंत्री सतीश चंद्र शर्मा, जिला पंचायत अध्यक्ष राजरानी रावत, और अन्य जनप्रतिनिधियों ने परिजनों को सांत्वना दी।

सरकार का ऐलान, लेकिन दर्द असीमित

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे पर गहरा दुख जताया और मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख की आर्थिक सहायता तथा घायलों के मुफ्त इलाज के निर्देश दिए। लेकिन जिन घरों के आंगन में अब चिरस्थायी सन्नाटा पसरा है, वहां यह मुआवजा सिर्फ एक औपचारिक राहत है—दिल के घाव भरने की नहीं।

एक सवाल छोड़ गया हादसा

बाराबंकी का यह हादसा सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि प्रकृति और लापरवाही का मेल कितनी बड़ी त्रासदी ला सकता है। बारिश के दिन, पुराना पेड़, और कमजोर बुनियादी ढांचा—इन सबने मिलकर पांच जिंदगियां निगल लीं। आज उन परिवारों के आंसू, उन दोस्तों की आंखों की नमी और उन सहकर्मियों की खामोशी इस बात का सबूत है कि किसी का जाना सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि कई जिंदगियों का उजड़ जाना होता है।

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