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फाइल फोटो
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता । उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) में वर्ष 2010 की अपर निजी सचिव (APS) भर्ती में कथित भ्रष्टाचार के मामले की जांच अब और व्यापक हो सकेगी। लंबे समय तक खिंचने के बाद आयोग ने आखिरकार अपने तत्कालीन तीन वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को जांच की अनुमति दे दी है। यह अनुमति CBI के लगातार दबाव और सख्त पत्राचार के बाद मिली है।
2018 में हुई थी CBI जांच की संस्तुति
मामले की शुरुआत 4 सितंबर 2018 को हुई थी, जब प्रदेश सरकार ने APS भर्ती घोटाले की जांच CBI से कराने की संस्तुति की थी। इसके बाद साढ़े चार वर्ष तक यह मामला आयोग और विभागीय स्तर पर अनुमति के अभाव में लटका रहा।
जानिए क्या था पूरा मामला
एपीएस भर्ती के तहत दूसरे चरण में शॉर्ट हैंड व टाइप टेस्ट होता है। परीक्षा में पांच फीसदी तक की गलती अनुमन्य थी। साथ ही पर्याप्त संख्या में अभ्यर्थी न मिलने की स्थिति में आयोग अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए अतिरिक्त तीन फीसदी गलती (कुल आठ फीसदी) को अनुमन्य करते हुए अन्य अभ्यर्थियों को भी मौका दे सकता था। सीबीआई जांच में सामने आया कि अधिकतम पांच फीसदी गलती करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या पर्याप्त थी, इसके बावजूद अतिरिक्त तीन फीसदी गलती को अनुमन्य करते हुए अलग से 331 अभ्यर्थियों को तीसरे चरण की परीक्षा के लिए क्वाॅलिफाई करा दिया गया जिसका कोई औचित्य नहीं था।
CBI की पहली मांग 2020 में
CBI ने 30 सितंबर 2020 को नियुक्ति विभाग से तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के साथ ही तीन अन्य वरिष्ठ अधिकारियों—पूर्व संयुक्त सचिव विनोद कुमार सिंह, पूर्व सिस्टम एनालिस्ट गिरीश गोयल,पूर्व समीक्षा अधिकारी लाल बहादुर पटेल के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी थी। हालांकि नियुक्ति विभाग ने केवल तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के खिलाफ जांच की अनुमति दी, लेकिन अन्य तीन अफसरों के मामले में आयोग ने अनुमति देने से इनकार कर दिया।
FIR सिर्फ एक अफसर पर दर्ज
आयोग की अड़चन के चलते 4 अगस्त 2021 को दर्ज FIR में सिर्फ परीक्षा नियंत्रक को आरोपी बनाया गया। बाकी तीनों अफसर जांच के दायरे से बाहर रहे।
CBI का फिर दबाव, मुख्य सचिव को पत्र
26 मई 2025 को CBI निदेशक ने प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मामले में बाकी तीन अफसरों के खिलाफ जांच की अनुमति देने का अनुरोध किया। CBI ने साफ कहा कि बिना इन अफसरों की जांच के केस की तह तक पहुँचना संभव नहीं है।
तमाम प्रयास के बाद आखिरकार मिली हरी झंडी
CBI के सख्त रुख और लगातार पत्राचार के बाद अब आयोग ने तत्कालीन संयुक्त सचिव, सिस्टम एनालिस्ट और समीक्षा अधिकारी के खिलाफ भी जांच की अनुमति दे दी है। इससे उम्मीद है कि वर्ष 2010 की इस विवादित भर्ती परीक्षा में हुए कथित भ्रष्टाचार की परतें जल्द खुल सकेंगी।
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