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20 साल की मेहनत रंग लाई : केंद्रीय बागवानी संस्थान ने आम की दो नई किस्में की ईजाद, जानें खासियत

संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन ने बताया कि जहां दशहरी और सामान्य आम की प्रजातियों के फल मई के आखिरी सप्ताह या जून की शुरुआत में पकते हैं। वहीं अवध अभय के फल जुलाई से अगस्त के बीच तैयार होंगे।

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Deepak Yadav
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‘अवध अभय’ और ‘अवध समृद्धि

केंद्रीय बागवानी संस्थान ने आम की दो नई किस्में की ईजाद Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। आम की नई किस्मों में दो नई प्रजातियां ‘अवध अभय’ और ‘अवध समृद्धि’ भी जुड़ गई हैं। केंद्रीय उपोष्ण एवं बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा ने दोनों प्रजातियां विकसित की हैं। संस्थान का दावा है कि आंधी आने पर यह आम अन्य आमों के मुकाबले 30 से 50 प्रतिशत तक कम गिरेगा। इन नई संकर प्रजातियों के पौधे अगले साल से बागवानों को मिलने लगेंगे। जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए इन प्रजातियों को विशेष रूप से तैयार किया गया है। संस्थान के विशेषज्ञों को 20 साल के शोध और परीक्षण के यह सफलता मिली है। 

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बागवानों की आय में होगी वृद्धि

संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन ने बताया  कि इन नई प्रजातियों के जरिए आम का उत्पादन बढ़ेगा। इससे बागबानों की आय में भी वृद्धि होगी। अवध अभय जलवायु-प्रतिरोधी संकर किस्म है। जो नियमित रूप से फल देगी। चमकीला रंग इसके आकर्षण को बढ़ायेगा। एक आम का औसत वजन 300 से 400 ग्राम होगा। इस प्रजाति के पेड़ मध्यम आकार के होंगे। यह किस्म सघन बागवानी के लिए भी उपयुक्त मानी गई है। करीब 15 साल पुराने पेड़ की ऊंचाई 15 से 20 फीट होगी। इनका प्रबंधन आसान होगा।

एक पेड़ से मिलेगा 85 किलो आम

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दामोदरन ने बताया कि जहां दशहरी और सामान्य आम की प्रजातियों के फल मई के आखिरी सप्ताह या जून की शुरुआत में पकते हैं। वहीं अवध अभय के फल जुलाई से अगस्त के बीच तैयार होंगे। इस किस्म के एक पेड़ से औसतन 80 से 85 किलो तक आम का उत्पादन होगा। उन्होंने बताया कि अवध समृद्धि भी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल विकसित की गई एक संकर प्रजाति है। यह आम नौ से 10 दिनों तक खराब नहीं होगा। इस किस्म के फल का वजन लगभग 300 से 350 ग्राम होगा, और एक पेड़ से करीब 85 से 90 किलोग्राम तक उत्पादन मिलेगा। दोनों प्रजातियां न केवल बागबानों की आय बढ़ाने में मददगार होंगी, बल्कि इनकी बेहतर बनावट और गुणवत्ता के कारण बाजार में अच्छे दाम भी मिलेंगे। वाराणसी और महाराष्ट्र की नर्सरियों को इन किस्मों के पौधे तैयार कर बागबानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

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