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बिजली अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन का विरोध तेज Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बिजली अधिनियम 2003 में प्रस्तावित संशोधन का विरोध तेज होता जा रहा है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने प्रस्तावित बदलावों के खिलाफ विधिक आपत्ति केन्द्रीय ऊर्जा मंत्रालय को भेजी है। परिषद के मुताबिक, अधिनियम में बदलाव से राज्यों की वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में निजी क्षेत्र की भागीदारी का रास्ता खुल जाएगा। इससे सरकारी कंपनियों और कर्मचारियों का भविष्य भी संकट में आ जाएगा। परिषद ने इसे उपभोक्ता विरोधी बताते हुए अधिनियम की धारा का उल्लंघन करने पर बिजली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान जोड़ने की मांग उठाई है।
धारा 47(5) को मजबूत करने की मांग
उपभोक्ता संगठन ने आपत्ति में विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 47(5) को मजबूत करते हुए स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के लिए उपभोक्ताओं के विकल्प को और ज्यादा वैधानिक बनाने की मांग उठाई। कहा, पोस्टपेड या प्रीपेड मीटर लगाने का प्रावधान पुनः एक्ट में किया जाए। किसी भी राज्य की बिजली कंपनी इसका उल्लंघन करें, तो उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान जोड़ा जाए।
संशोधन पारित होने से पहले निजीकरण अनुचित
परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि प्रस्तावित बिल निजी कंपनियों को सरकारी वितरण नेटवर्क के माध्यम से बिजली आपूर्ति करने की अनुमति देता है। इससे सरकारी बिजली वितरण कंपनियां कमजोर होंगी और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ आएगा। उन्होंने कहा कि संसद से बिल पारित किए बिना निजीकरण विधिक और संवैधानिक रुप से उचित नहीं है। जब तक प्रस्तावित संशोधन पर लोकसभा में चर्चा होकर अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक सभी राज्यों में बिजली के निजीकरण पर रोक लगाई जाए।
सिस्टम शेयरिंग से सरकारी नेटवर्क पर संकट
वर्मा ने कहा कि सिस्टम शेयरिंग की व्यवस्था सरकारी परिसंपत्तियों का निजी लाभ के लिए उपयोग करने जैसी है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी वितरण नेटवर्क का निजीकरण हो रहा है। वर्तमान में सरकारी व्यवस्था उपभोक्ता शिकायत निवारण और नियामक निगरानी सुनिश्चित करती है। निजी कंपनियों के प्रवेश से पारदर्शिता और जवाबदेही कमजोर होगी।
परिषद की आपत्तियां
- घरेलू, कृषि और कम आय वाले उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार डालेगा।
- उद्योगों को सस्ती बिजली देने से आम उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त दबाव आएगा।
- यूनिवर्सल सर्विस बाध्यता से छूट से ग्रामीण और छोटे शहरों के उपभोक्ता विश्वसनीय आपूर्ति से वंचित हो सकते हैं।
- नियामक आयोगों को अत्यधिक अधिकार से पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी कमजोर होगी।
परिषद के सुझाव
- सभी राज्यों में सार्वजनिक सुनवाई कराए जाएं।
- लागत आधारित टैरिफ लागू करने से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन अनिवार्य किया जाए।
- क्रॉस-सब्सिडी हटाने की नीति गलत पुनः विचाराधीन हो और गरीब एवं ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए किफायती बिजली नीति जारी रहे।
- नियामक आयोगों में उपभोक्ता प्रतिनिधियों को पर्याप्त अधिकार दिए जाएं।
- 'ईज ऑफ लिविंग' के बजाय उपभोक्ता संरक्षण मजबूत किया जाए।
- संशोधन तब तक लागू न किए जाएं जब तक सभी राज्यों और उपभोक्ता संगठनों से व्यापक परामर्श नहीं हो जाता।
Smart Prepaid Meter | Electricity Privatisation
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