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संगठित गिरोह के 2 सदस्य गाजियाबाद से गिरफ्तार।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने साइबर अपराध के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए गाजियाबाद से एक संगठित गिरोह के दो सक्रिय सदस्यों को गिरफ्तार किया है। यह गिरोह आईजीएमएस (Integrated Grievance Management System), आईआरडीएआई (Insurance Regulatory and Development Authority of India), एनपीसीआई (National Payments Corporation of India) और आरबीआई (Reserve Bank of India) जैसे प्रमुख संस्थानों के अधिकारियों का प्रतिरूपण कर इंश्योरेंस पॉलिसी धारकों को यूनिट वैल्यू से अधिक मैच्योरिटी अमाउंट दिलाने का झांसा देकर करोड़ों रुपये की ठगी कर रहा था।
दोनों अभियुक्तों को एसटीएफ ने गाजियाबाद से दबोचा
गिरफ्तार अभियुक्त का नाम दीपक तिवारी पुत्र स्व. गणेश तिवारी, निवासी सी-707 चार्मस कैसल सोसाइटी, राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद, बादल वर्मा पुत्र दिनेश कुमार वर्मा, निवासी 4/7, गली नं. 07, दुर्गा इंक्लेव, ओल्ड हैबतपुर चिपयाना, थाना बिसरख, गौतमबुद्धनगर है। गिरफ्तार आरोपियों के कब्जे से 7 मोबाइल फोन, 2 लैपटॉप, फर्जी दस्तावेज (आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, निर्वाचन कार्ड), 5 रजिस्टर (ठगी से संबंधित डाटा और तरीके), एटीएम कार्ड तथा 2905 नकद बरामद किए गए। एसटीएफ और थाना साइबर क्राइम लखनऊ की संयुक्त टीम ने गुप्त सूचना के आधार पर गाजियाबाद के क्लाउड 9 टावर, वैशाली स्थित एक ऑफिस से दोनों आरोपियों को दबोचा।
वैज्ञानिक डा. लाल सिंह गंगवार को भी बनाया था अपना शिकार
जांच में पता चला कि गिरोह ने लखनऊ स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. लाल सिंह गंगवार को भी शिकार बनाया था। मार्च 2025 में गिरोह ने उन्हें फर्जी बॉन्ड पेपर और नकली दस्तावेज दिखाकर 3.66 लाख रुपये ठग लिए थे।पूछताछ में आरोपी दीपक तिवारी ने बताया कि उसने पहले इंश्योरेंस कंपनियों में टैली कॉलिंग का काम किया और कोविड काल में रेस्टोरेंट बिजनेस में घाटा होने के बाद प्रेम चौधरी नामक व्यक्ति के साथ मिलकर साइबर फ्रॉड का काम शुरू किया। गाजियाबाद में ऑफिस लेकर गिरोह ने संगठित तरीके से ठगी करना शुरू किया। आरोपी गूगल से सरकारी संस्थानों में कार्यरत लोगों का डेटा निकालते और खुद को अधिकारी बताकर कॉल/व्हाट्सऐप पर उन्हें फर्जी “मॅच्योरिटी अमाउंट” का लालच देते थे।
पिछले सात महीनों में 50-60 लाख की ठगी
ग्राहकों को यह झांसा दिया जाता था कि पॉलिसी का बेनिफिट पाने के लिए उन्हें “एजेंट कोड हटवाना होगा” और इस प्रक्रिया के नाम पर 20 हजार से लेकर 90 हजार तक की रकम अलग-अलग बैंक खातों में जमा कराई जाती थी। बाद में नकली आईडी कार्ड और कूटरचित दस्तावेज भेजकर सर्विस चार्ज, एफिडेविट चार्ज, सीआरएस लेटर चार्ज आदि के नाम पर रकम ऐंठी जाती थी। आरोपी बादल वर्मा ने स्वीकार किया कि पिछले सात महीनों में गिरोह ने 15–20 बैंक खातों के जरिए करीब 50–60 लाख रुपये की ठगी की है। एसटीएफ ने आरोपियों से मिले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को फॉरेंसिक जांच हेतु भेजा है और गिरोह के अन्य सदस्यों की तलाश तेज कर दी है। फिलहाल दोनों आरोपियों पर थाना साइबर क्राइम लखनऊ में मुकदमा दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जा रही है।
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