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नियामक अयोग अध्यक्ष को ज्ञापन देने संघर्ष समिति के पदाधिकारी Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बिजली दरों में 45 फीसदी की बढ़ोत्तरी के मामले में वाराणसी में शुक्रवार को आयुक्त सभागार में जनसुनवाई के दौरान विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का फैसला रद्द करने की मांग की। समिति के साथ उपभोक्ता परिषद, उपभोक्ताओं, पार्षदों और जन प्रतिनिधियों ने भी निजीकरण को जनविरोधी बताते हुए इस जोरदार विरोध किया। का विरोध किया।
नियामक आयोग अध्यक्ष को सौंपा ज्ञापन
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों माया शंकर तिवारी, शशि प्रकाश सिंह,अंकुर पांडे, नीरज बिंद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने वाराणसी में बिजली के टैरिफ बढ़ोत्तरी पर हो रही जनसुनवाई में बिजली कंपनियों के निजीकरण का फैसला कर्मचारियों के हित में वापस लेने की मांग की। प्रतिनिधि मंडल ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार को इस बाबत एक ज्ञापन भी दिया।
निजीकरण से महंगी होगी बिजली
पदाधि​करियों ने कहा की पावर कारपोरशन प्रबंधन ने घाटे के झूठे आंकड़े देकर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव दिया है। नियामक आयोग निजीकरण के प्रस्ताव को निरस्त कर दे और निजीकरण की अनुमति न दें अन्यथा उपभोक्ताओं को बहुत महंगी बिजली लेनी पड़ेगी और कर्मचारियों की सेवा शर्तों पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। निजीकरण के बाद हजारों संविदा कर्मियों की नौकरी जाने का खतरा है। नियमित कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। निजीकरण उपभोक्ता और कर्मचारियों के हित में नहीं है।
बुनकरों-किसानों की सब्सिडी समाप्त करने की तैयारी
समिति ने आंकड़े देते हुए बताया कि पावर कारपोरेशन प्रबंधन किसानों, बुनकरों की सब्सिडी और सरकारी विभागों के बिजली राजस्व बकाए को घाटा मानकर तर्क दे रहा है कि इन सभी मामलों में सरकार को फंडिंग करनी पड़ती है। जिसे सरकार आगे वहन करने को तैयार नहीं है। जबकि सब्सिडी और सरकारी विभागों के बकाए की धनराशि देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार इसे घाटा बताकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। निजीकरण का यह कोई आधार भी नहीं हो सकता।
आयोग को नहीं देनी चाहिए मंजूरी
संगठन ने नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार को अवगत कराया कि पावर कारपोरेशन का चेयरमैन रहते हुए आपने 6 अक्टूबर 2020 को एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किया है। जिसमें लिखा है कि बिजली कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना उप्र में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। निजीकरण का एक तरफा निर्णय इस समझौते का खुला उल्लंघन है। ऐसे में आयोग को निजीकरण के मसौदे को मंजूरी नहीं देनी चाहिए।
निजीकरण का फैसला गलत
संघर्ष समिति के साथ राज्य विद्युत परिषद उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने तमाम आंकड़े देते हुए निजीकरण के फैसले को गलत ठहराया और कहा कि विद्युत नियामक आयोग किसी भी परिस्थिति में पावर कारपोरेशन से भेजे गए निजीकरण के मसौदे को मंजूरी न दे।
निजीकरण के विरोध में आंदोलन जारी
इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष आरके चौधरी, बुनकरों के प्रतिनिधियों, किसान संगठनों के पदाधिकारियों, पार्षदों, ग्राम पंचायत जन प्रतिनिधियों ने निजीकरण को निरस्त करने की मांग उठाई। जनसुनवाई के दौरान बड़ी संख्या में बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता मौजूद थे। निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 226वें दिन आज प्रदेश के समस्त जनपदों और परियोजनाओं पर बिजली कर्मियों ने व्यापक जनसंपर्क और विरोध प्रदर्शन किया।
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