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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग (PWD) बरेली-बदायूं में वर्षों से कार्य करने वाले ठेकेदार सतीश चंद्र दीक्षित ने भ्रष्टाचार और माफिया-अफसर गठजोड़ से इतने त्रस्त हो गए, कि उन्होंने परिवार समेत राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी है। दीक्षित का आरोप है कि उन्होंने जब विभागीय भ्रष्टाचार और टेंडर घोटालों का विरोध किया तो उन्हें प्रताड़ित किया गया, ब्लैकलिस्ट किया गया और झूठे मुकदमों में फंसाया गया।
बरेली के ठेकेदार जावेद खान पर गंभीर आरोप
सतीश दीक्षित ने पत्र में दावा किया है कि ठेकेदार जावेद खान को गत 8 वर्षों में विभाग ने लगभग100 करोड़ के ठेके मनमानी दरों पर दे दिए, जिनमें से 33 कार्यों की सूची उन्होंने संलग्न की है। टेंडरों में फर्जी दस्तावेजों का प्रयोग कर अनुचित लाभ लिया गया और जब दीक्षित ने इस पर आपत्ति जताई तो उन्हें विभागीय कार्रवाई और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
6 अभियंताओं को 17 आरोपों में पाया गया दोषी
दीक्षित ने बताया कि उन्होनें शिकायत की तो लोकायुक्त जांच में विभाग के 6 अभियंताओं को 17 आरोपों में दोषी पाया गया। 19 सितंबर 2023 को तीन महीने में कार्रवाई की सिफारिश की गई, मगर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके उलट दीक्षित को तीन काम नहीं मिला और उलटा ठेकेदार जावेद खान द्वारा तीन अलग-अलग मुकदमे बरेली, बदायूं और रामपुर में दर्ज करवा दिए गए।
न्यायालय के आदेशों की भी अनदेखी
दीक्षित ने पत्र में बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 27 मई 2025 को कार्रवाई आदेश को निरस्त कर दिया, लेकिन इसके ठीक अगले दिन 28 मई की मनगढ़ंत घटना दर्शाकर दूसरा मुकदमा दर्ज करा दिया गया। इसी तरह 4 जून को एक अन्य मुकदमा भी उनके खिलाफ कराया गया। दीक्षित का कहना है कि यह पूरा तंत्र उन्हें मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश कर रहा है।
रामपुर में 25 करोड़ का टेंडर भी सवालों में
दीक्षित ने यह भी आरोप लगाया कि रामपुर में सेतु निगम द्वारा 25 करोड़ का टेंडर फर्जी अनुभव के आधार पर जावेद खान को दिया गया, जिससे शासन को नुकसान पहुंचा और गुणवत्ता भी खराब की गई है।
अब जीने की कोई वजह नहीं बची : दीक्षित
अपने पत्र में सतीश चंद्र दीक्षित पुत्र लक्ष्मी नारायण दीक्षित, मो. नेकपुर, निकट पवन बैंकट हाल, डीएम रोड बदायूं (उ.प्र.) ने लिखा कि मैं और मेरा परिवार मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। जब भी मैं सत्य के पक्ष में खड़ा हुआ, मुझे दंडित किया गया। अब न्याय की कोई उम्मीद नहीं बची है, कृपया मुझे और मेरे परिवार को राष्ट्रपति की ओर से इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए।
प्रशासन और सरकार की चुप्पी सवालों में
यह मामला उत्तर प्रदेश में विभागीय पारदर्शिता, ठेकेदारी नियंत्रण और लोकायुक्त सिफारिशों के अनुपालन पर गंभीर सवाल उठाता है। यदि सत्य उजागर करने वाला ही बार-बार दंडित होता है तो शासन व्यवस्था पर जनता का भरोसा कैसे कायम रहेगा?