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निजीकरण का टेंडर निकलते ही जेल भरो आंदोलन, महापंचायत में बिजली कर्मचारियों ने दिखाई ताकत

महापंचायत में यह निर्णय लिया गया कि निजीकरण का टेण्डर होते ही समस्त ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी, जूनियर इंजीनियर और अभियन्ता अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार कर सामूहिक जेल भरो आन्दोलन प्रारम्भ कर देगें।

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Deepak Yadav
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निजीकरण का टेंडर निकलते ही जेल भरो आंदोलन Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। निजीकरण के विरोध में रविवार को लखनऊ में हुई महापंचायत में प्रदेश भर के बिजली कर्मचारियों ने एकजुट होकर अपनी ताकत का एहसास कराया। महापंचायत में सर्वसम्मति से फैसला किया गया कि निजीकरण का टेंडर जारी होते ही बिजली कर्मचारी प्रदेश भर में लामबंद होकर जेल भरो आंदोलन शुरू करेंगे। इसमें किसान, रेल कर्मचारी और उपभोक्ता भी शामिल होंगे। यह भी तय किया गया कि नौ जुलाई को देश के 27 लाख बिजली कर्मी राष्ट्रव्यापी सांकेतिक हड़ताल करेंगे। हड़ताल की तैयारी में दो जुलाई को देश भर में विरोध प्रदर्शन होगा।

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बिजली निजीकरण के खिलाफ बनी साझा रणनीति

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के अंबेडकर सभागार में महापंचायत आयोजित हुई। इसमें शामिल हुए रेल कर्मचारियों के राष्ट्रीय नेता शिव गोपाल मिश्र ने कहा कि बिजली कर्मचारियों पर निजीकरण थोपा गया तो देश भर के रेल कर्मचारी, बिजली कार्मिकों के साथ प्रदेश की जेलों को भर देंगे। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ दर्शन पाल और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक रमानाथ झा ने बिजली महापंचायत से वचुअली जुड़े। डॉ. पाल ने बिजली कर्मचारियों को सभी किसान संगठनों की ओर से खुले समर्थन का ऐलान किया।

निजीकरण के खिलाफ जुटा व्यापक समर्थन

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राज्य कर्मचारियों की ओर से सतीश पांडये, शशि कुमार मिश्रा, एसपी तिवारी, हरिशरण मिश्र, मनोज पाण्डेय, अमरनाथ यादव, सुरजीत सिंह निरंजन, अटेवा के विजय बन्धु, शिक्षक नेता रीना त्रिपाठी ने निजीकरण के विरोध में सामूहिक संघर्ष का ऐलान किया। विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, उप्र पॉवर ऑफिसर्स  एसोसिएशन के अध्यक्ष आरपी केन ने निजीकरण के विरोध में संघर्ष समिति को समर्थन की घोषण की।

टेंडर जारी हुआ तो काम ठप कर भरेंगे जेल

महापंचायत में फैसला किया गया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का टेंडर होते ही सभी ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार कर सामूहिक जेल भरो आंदोलन शुरू कर देंगे। देश के इतिहास में पहली बार निजीकरण के विरोध में बिजली के सभी स्टेक होल्डर्स किसान, मजदूर, गरीब और मध्यम वर्गीय घरेलू उपभोक्ता एक साथ लामबंद होकर आंदोलन और सामूहिक जेल भरो अभियान चलायेंगे। 

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ऑपरेशन सिंदूर में मददगार बनी सरकारी बिजली व्यवस्था

बिजली महापंचायत में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बिजली सार्वजनिक क्षेत्र में रहना जरुरी है। निजीकरण के बाद बहुराष्ट्रीय निजी कम्पनियों के आने से देश की बिजली ग्रिड सुरक्षा प्रभावित हो सकती हैं। मई 2025 में आपरेशन सिंदूर की सफलता के पीछे भारतीय सेना का पराक्रम और कुशलता तो थी ही साथ ही जम्मू-कश्मीर में बिजली सरकारी क्षेत्र में होने के कारण कोई व्यवधान नहीं आया। ड्रोन से बमबारी के बीच भी सीमावर्ती इलाकों में सरकारी क्षेत्र के बिजली कर्मियों ने बिजली व्यवस्था को बनाये रखा।

निजीकरण के खिलाफ जारी रहेगा आंदोलन

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सभी वक्ताओं ने एक स्वर में बिजली के निजीकरण को जन विरोधी कदम बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की और चेतावनी दी कि यदि निजीकरण के विरोध में संघर्षरत बिजली कर्मियों का उत्पीड़न और दमन करने की कोशिश की गयी तो किसान, मजदूर, उपभोक्ता खामोश नहीं रहेंगे और सड़कों पर उतर कर आंदोलन के लिए विवश होंगे। महापंचायत में यह संकल्प लिया गया कि निजीकरण का फैसला जब तक वापस नहीं होता, कार्मियों का चल रहा आंदोलन जारी रहेगा।

फर्जी आंकड़ों का आरोप, सीबीआई जांच की मांग

वक्ताओं ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि अवैध ढंग से नियुक्त सलाहकार कंपनी ग्रांट थॉनर्टन के साथ मिलीभगत में पॉवर कारपोरेशन के चेयरमैन, निदेशक वित्त और शासन के कुछ आला अधिकारियों ने आरएफपी डॉक्यूमेंट बनवाकर विद्युत नियामक आयोग को भेजा। इसे कई आपत्तियां लगाते हुए आयोग ने वापस कर दिया है। जो इस बात का सबूत है कि जल्दबाजी में किये जा रहे निजीकरण के पीछे गलत आकड़ें देकर भ्रष्टाचार की मंशा है। वक्ताओं ने कंसलटेंट ने आरएफपी डॉक्यूमेंट में बिजली कं​पनियों का घाटा बढ़ाकर दिखाया। फर्जी आंकड़ों को बनाने वाले अधिकारियों और सलाहकार कंपनी की सीबीआई जांच कराई जाए।

66 हजार करोड़ राजस्व पर निजी घरानों की नजर

इस दौरान पारित मुख्य प्रस्ताव में कहा गया कि उड़ीसा, भिवंडी, औरंगाबाद, जलगांव, नागपुर, मुजफ्फरपुर, गया, ग्रेटर नोएडा और आगरा में पर निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह असफल रहा है। इस असफल प्रयोग को उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों की जनता पर थोपा जा रहा है। जिसे स्वीकार नहीं किया जायेगा। आगरा में निजीकरण के असफल प्रयोग से पावर कारपोरेशन को प्रति माह एक हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। टोरेंट पावर कंपनी ने आगरा में पावर कारपोरेशन का 2200 करोड़ रुपये का बिजली राजस्व का बकाया हड़प लिया। उसे अभी तक वापस नहीं किया है। अब निजी घरानों की नजर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के 66 हजार करोड़ रुपये राजस्व बकाये पर है।

निजी घरानों को सरकारी जमीन मात्र 1 रुपये लीज पर

प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 131 के अनुसार सरकारी कंपनी का निजीकरण करने के पहले उसकी परिसम्पत्तियों का सही मूल्यांकन और राजस्व क्षमता का मूल्यांकन किया जाना जरुरी है। संघर्ष समिति ने कहा कि 42 जनपदों की सारी जमीन मात्र एक रुपये की लीज पर निजी घरानों को दी जा रही है। इससे बड़ी लूट और क्या हो सकती है। 

बिजली महापंचायत में सर्वसम्मति से लिए गए फैसले 

  • पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मचारियों, संविदा कर्मियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियन्ताओं के चलाये जा रहे आन्दोलन का किसान, उपभोक्ता, श्रम संघ, शिक्षक संघ पूरी तरह सक्रिय समर्थन करेंगे। 
  • दो जुलाई को देश के सभी जनपदों और परियोजनाओं पर विरोध प्रदर्शन किये जायेंगे। जिसमें बिजली कर्मचारियों के साथ सभी किसान और उपभोक्ता संगठन शामिल होंगे। 
  • नौ जुलाई को एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल होगी। जिसका सभी किसान और उपभोक्ता संगठन पुरजोर समर्थन करेंगे। उत्तर प्रदेश में इसके समर्थन में सभी जनपदों में विरोध प्रदर्शन होगा।
  • निजीकरण का टेंडर जारी होने पर देश भर में 27 लाख बिजली कर्मचारियों की सांकेतिक हड़ताल होगी। इसके समर्थन में सभी किसान और उपभोक्ता संगठन विरोध प्रदर्शन करेंगे। 
  • बिजली कंपनियों के निजीकरण का टेंडर निकलने पर यूपी के बिजली-संविदा कर्मी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार और सामूहिक जेल भरो आंदोलन शुरू कर करेंगे। किसान और उपभोक्ता संगठन बिजली कर्मियों के साथ सड़क पर निकल कर आंदोलन करेंगे। 

बिजली महापंचायत में ये रहे शामिल

महापंचायत में अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष जय प्रकाश, अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के महासचिव डॉ आशीष मित्तल, अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश महासचिव मुकुट सिंह, किसान एकता केन्द्र के अनुज टिकारा, बीएसएनएल इम्प्लॉइज यूनियन केके आर यादव, उप्र राज्य कर्मचारी महासंघ के अफीफ सिद्दीकी, सीटू उप्र के महामंत्री प्रेमनाथ राय, उप्र भवन निर्माण के महामंत्री अजहर सबा, किसान मजदूर परिषद के अफलातून, चौधरी राजेन्द्र, जय किसान आन्दोलन के संजय कुमार एवं राजनन्त यादव, किसान संग्राम समिति के सत्यदेव पाल, किसान सभा यूपी के अध्यक्ष भारत सिंह, क्रांतिकारी किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव, शशिकान्त शामिल रहे।

इसके अलावा ऑल इण्डिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के महासचिव शिव गोपाल मिश्र, संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ दर्शन पाल, ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल पी रत्नाकर राव, ऑल इण्डिया पॉवर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष आर के त्रिवेदी, इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ इण्डिया के जनरल सेक्रेटरी सुदीप दत्त, अखिल भारतीय राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लाम्बा, यूनाईटेड बैंक फोरम के वाईके अरोड़ा, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता वाई एस लोहित और उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों, बैंक कर्मचारियों, राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों के प्रतिनिधियों ने महापंचायत में आगामी आंदोलनों में अपना समर्थन दिया।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारी संजय सिंह चौहान, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पी.के.दीक्षित, सुहैल आबिद, चंद्र भूषण उपाध्याय, विवेक सिंह, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, आरबी सिंह, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, रामचरण सिंह, श्रीचन्द, सरजू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, एके श्रीवास्तव, देवेन्द्र पाण्डेय, केएस रावत, राम निवास त्यागी, प्रेम नाथ राय, शशिकान्त श्रीवास्तव, मो इलियास, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जीपी सिंह, राम सहारे वर्मा और विशम्भर सिंह आदि मौजूद रहे।

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