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डीजीपी ने ZFD जिलों को कम से कम पचास प्रतिशत दुर्घटना कमी लाने का दिया निर्देश

पुलिस मुख्यालय में आयोजित तीन दिवसीय सड़क दुर्घटना विवेचना कार्यशाला का समापन डीजीपी राजीव कृष्ण ने किया। कार्यशाला में प्रदेश के 20 सबसे जोखिम वाले जिलों के अधिकारियों को दुर्घटना जांच, फोरेंसिक साक्ष्य और यातायात इंजीनियरिंग पर प्रशिक्षण दिया गया।

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Shishir Patel
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डीजीपी राजीव कृष्ण।

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।सीएम योगी द्वारा सड़क दुर्घनाओं में कमी लाने के दिये गये निर्देश के क्रम में डीजीपी राजीव कृष्ण के निर्देशन में यातायात निदेशालय यूपी द्वारा पुलिस मुख्यालय गोमतीनगर विस्तार में इन्स्टीट्यूट आॅफ रोड ट्रैफिक एजूकेशन, कालेज आॅफ ट्रैफिक मैनेजमेन्ट एण्ड फारेन्सिक साइन्स, फरीदाबाद, हरियाणा के सहयोग से सड़क दुर्घटना विवेचना पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में जीरो फेटेलिटी डिस्ट्रीक्ट (जेएफडी) के रूप में चिन्हित 20 सर्वाधिक जोखिम वाले जिलों के यातायात के नोडल अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी तथा यातायात से जुड़े कर्मी उपस्थित रहे। कार्यशाला का समापन  डीजीपी द्वारा बुधवार को  किया गया। समापन सत्र में डा. रोहित बलूजा, अध्यक्ष, आईआरटीई एवं डायरेक्टर सीटीएम द्वारा अपने संबोधन के दौरान यातायात इंजीनियरिंग के सिद्धांतो और सड़क अवसंरचना के सम्बंध में एक प्रजेन्टेशन प्रस्तुत किया गया, जिसमें आंकड़ों के माध्यम से दुर्घटना के कारणों एवं उसके निवारण के बारे में बताया गया। 

दुर्घटना जांच व फोरेंसिक साक्ष्य पर दिया गचा प्रशिक्षण 

डीजीपी ने अपने संबोधन में कहा गया कि राज्य में सड़क सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने, दुर्घटना-दर में कमी लाने तथा प्रभावी यातायात प्रबंधन के उद्देश्य से प्रदेश पुलिस द्वारा बहु-आयामी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए व्यापक कार्ययोजना लागू की गई है। यह कार्ययोजना मानव कारकों के साथ-साथ सड़क पर्यावरण, इंजीनियरिंग, वाहन-संबंधी कमियाँ तथा नीतिगत चुनौतियों को समग्र रूप से संबोधित करती है। प्रदेश की अधिकांश ट्रैफिक पुलिस शहरों के भीतर तैनात रहती है, जबकि राष्ट्रीय/राज्य हाइवे और एक्सप्रेस-वे पर प्रमुख रूप से सिविल पुलिस कार्यरत है। कंजेशन प्रबंधन शहरी ट्रैफिक पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी है, दुर्घटना न्यूनीकरण मुख्यत: हाइवे/एक्सप्रेसवे पर सिविल पुलिस की भूमिका में आता है।

सड़क सुरक्षा को वैज्ञानिक, बहुआयामी कार्ययोजना लागू : डीजीपी 

इन दोनों समस्याओं के समाधान हेतु अलग-अलग रणनीति और अलग-अलग कार्ययोजना की आवश्यकता है। तीन माह पूर्व उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा प्रदेश की तीन सर्वाधिक दुर्घटना-प्रभावित सड़कों का चयन कर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया अलीगढ़ , बुलंदशहर रोड , उन्नाव - कानपुर कॉरिडोर , कानपुर - हमीरपुर मार्ग। इन कॉरिडोरों पर स्थानीय पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट लक्ष्य दिया गया कि उपलब्ध संसाधनों, इक्विपमेंट, टेक्नोलॉजी, मैनपावर, प्रवर्तन और ट्रैफिक प्रशिक्षण का अधिकतम उपयोग करते हुए घातक दुर्घटनाओं में उल्लेखनीय कमी लाना है। उक्त पायलट प्रोजेक्ट के परिणाम स्वरूप दो से ढाई महीनों के भीतर इन कॉरिडोरों पर फेटल दुर्घटनाओं में 41 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई। यह सफल मॉडल सिद्ध हुआ कि बिना अतिरिक्त संसाधनों के भी, केंद्रित रणनीति और जिम्मेदारी निर्धारण द्वारा सड़क दुर्घटनाओं में ठोस कमी लाना संभव है। उत्तर प्रदेश पुलिस सड़क सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए वैज्ञानिक, तकनीकी और विभागीय-समन्वय आधारित दृष्टिकोण से कार्य कर रही है।

हादसों में कमी लाने के निर्धारित किए गए लक्ष्य 

 राज्य में दुर्घटना-दर कम करने हेतु यह पहला संरचित एवं परिणाम-आधारित प्रयास है, जिसके सकारात्मक परिणाम अब स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं। आगामी समय में इस मॉडल को अन्य जिलों तथा प्रमुख हाइवे कॉरिडोरों पर भी विस्तारित किया जाएगा। पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश ने अपने संबोधन के समापन पर कार्यशाला में उपस्थित जीरो फेटेलिटी डिस्ट्रीक्ट के रूप में चिन्हित 20 सर्वाधिक जोखिम वाले जिलों के नोडल अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारियों से अपेक्षा व्यक्त की कि वे कार्यशाला के उद्देश्यों को मूर्त रूप देते हुए आगामी अवधि में अपने-अपने जनपदों में सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 50 प्रतिशत की कमी लाने के लक्ष्य को सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि यदि आप सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाकर जन-जीवन की रक्षा करते हैं, तो यह आपके लिए एक लाइफटाइम अचीवमेंट के समान होगा। उक्त कार्यशाला का 17 नवंबर  को अपर पुलिस महानिदेशक यातायात  ए. सतीश गणेश द्वारा किया गया था।

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