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लखनऊ में आवारा कुत्तों का आतंक Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राजधानी लखनऊ में आवरा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रह है। यहां रोजाना 130 से ज्यादा लोगों को कुत्ते काट रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए आने वाले लोगों में करीब 30 फीसद बच्चे होते हैं। जून में 4030 लोगों को आवारा कुत्तों ने काटा, जो बलरामपुर, लोकबंधु और सिविल अस्पताल में वैक्सीनेशन कराने पहुंचे। ये आंकड़े सिर्फ तीन सरकारी अस्पतालों के हैं। पीड़ित अन्य चिकित्सा संस्थानों में भी वैक्सीनेशन के लिए जाते हैं। लोहिया संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक और जनरल मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. विक्रम सिंह के मुताबिक, कुत्ते की लार में मौजूद रेबीज वायरस से हाइड्रोफोबिया हो सकता है। यह एक लाइलाज बीमारी है। इसकी वजह से मरीज की मोत हो सकती है।
बलरामपुर अस्पताल में रोजना 85 लोग लगवा रहे टीका
तीनों सरकारी अस्पतालों में एक जून से चार जुलाई तक चार हजार से अधिक लोगों ने रेबीज का पहला डोज लगवाया। सबसे अधिक 2530 पीड़ित बलरामपुर अस्पताल में इंजेक्शन लगवाने पहुंचे। चिकित्सा अधीक्षक डा. हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि प्रतिदिन करीब 85 लोग रेबीज का टीका लगवाने पहुंच रहे। वहीं लोकबंधु में 500 और और सिविल अस्पताल में लगभग 1000 से अधिक पीड़ितों ने वैक्सीनेशन कराया। टीका लगवाने में ज्यादातर पुराने लखनऊ, चौक, चौपटिया, नक्खास, मौलवीगंज, सआदतगंज, ऐशबाग, कैसरबाग, रकाबगंज, ठाकुरगंज, सदर, डालीगंज और निशातगंज क्षेत्र के लोग हैं। सरकारी अस्पताल में ये टीका मुफ्त है, जबकि बाहर 350 से 500 रुपये तक फीस है।
24 घंटे के भीतर इंजेक्शन लगवाना जरूरी
प्रो. विक्रम सिंह ने बताया कि आवारा कुत्ते, बिल्ली, बंदर या किसी भी जानवर के के काटने पर तुरंत एंटी रेबीज का टीका लगवाएं। 24 घंटे के अंदर इंजेक्शन लगवाना जरूरी है। समयसीमा पार करने पर रेबीज से बचाव के खिलाफ टीका कम असरदार साबित होता है। उन्होंने बताया कि रेबीज का वायरस जानवरों के लार में होता है, जो काटने के बाद इंसानों के शरीर में तेजी से फैल जाता है।
वायरस नर्वस सिस्टम पर हमला करता है हमला
वायरस सीधा संक्रमित व्यक्ति के नर्वस सिस्टम पर हमला करता है और स्पाइनल कार्ड व मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया में तीन से लेकर 12 हफ्ते का समय लग सकता है और कई बार तो साल भी लग जाते हैं, जिसे इनक्यूबेशन पीरियड कहा जाता है। संक्रमण और लक्षणों के बीच के समय (इनक्यूबेशन पीरियड) में कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है, लेकिन वायरस के दिमाग तक पहुंचने के बाद मरीज की जान बचाना मुश्किल होता है।
खरोंच से भी फैल सकता है रेबीज
प्रो. विक्रम सिंह ने बताया कि रेबीज वायरस केवल संक्रमित जानवर से काटने से ही नहीं, बल्कि पहले से कटी त्वचा और म्यूकस मेम्ब्रेन के जरिए भी फैल सकता है। रेबीज से संक्रमित होने के लिए घाव का गहरा होना जरूरी नहीं है। शरीर पर पहले से मौजूद हल्की खरोंच और आंख, नाक या मुंह के म्यूकस मेम्ब्रेन से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह हवा में तैर रही लार की सूक्ष्म बूंदों से भी फैल सकता है। उन्होंने बताया कि किसी जानवर ने काट लिया हो तो काटे हुए स्थान को कम से कम 10 से 15 मिनट तक साबुन या डेटॉल से साफ करें। इसके बाद बिना देर किए वैक्सीन लगवाएं।
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