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कम लागत में बिजली कंपनियों का निजीकरण की चाल Photograph: (google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने कहा कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद बिजली व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ। पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष आशीष गोयल ने इसे खुद स्वीकार किया है। इसके लिए पूरी तरह कारपोरेशन प्रबंधन जिम्मेदार है। ऐसे में कारपोरेशन प्रबंधन को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तत्काल पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। परिषद ने यह भी आशंका जताई कि कम लागत में बिजली कंपनियों का निजीकरण करने के लिए जानबूझकर यह नेरेटिव गढ़ा जा रह है। इसकी गहन जांच कराई जानी चाहिए।
ठेकेदारों को अधिक दरों पर दिया काम
परिषद के अनुसार, बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए आरडीएसएस योजना में 44094 करोड़ रुपये और बिजनेस प्लान के अंतर्गत 4000 से 5000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इनके टेंडर जारी होने पर परिषद ने पावर कारपोरेशन प्रबंधन के सामने लगातार यह मुद्दा उठाया कि गलत ठेकेदारों को कम दिया जा रहा है। 40 से 45 प्रतिशत अधिक दरों पर काम दिया गया। प्रीपेड मीटर के टेंडर को लेकर सवाल उठाए, लेकिन पावर करपोरेशन उस समय ठेकेदारों के चंगुल में फंसा था।
प्रीपेट मीटर योजना हो जाएगी फ्लॉप
केंद्र सरकार से यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के लिए 18,885 करोड़ रुपये की मंजूर हुए। लेकिन पावर कॉरपोरेशन ने इसके लिए 27,342 करोड़ रुपये के टेंडर जारी किए। 8500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए गए। इसकी जवाबदेही तय नहीं की गई। जिस तरह से घटिया गुणवत्ता वाले प्रीपेड मीटर लगाए जा रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब यह योजना भी पूरी तरीके से फ्लॉप हो जाएगी।
पावर कारपोरेशन ठेकेदारों पर मेहरबान
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया कि कहा पावर कारपोरेशन हमेशा से ठेकेदारों पर मेहरबान रहा है। स्मार्ट मीटरों में चीन में बने घटिया पुर्जे लगाए जाने का मामला उजागर होने पर संंबंधित अधिकारियों ने चुप्पी साध ली थी। उन्होंने कहा कि आरडीएसएस योजना में ऐसे ठेकेदारों को कम दिया जा रहा, जिन्हें बिजली के क्षेत्र में काम का अनुभव नहीं है। लेकिन पावर कारपोरेशन केवल अनुबंध कराकर जल्द प्रगति दिखाने में जुट रहा। अगर करोड़ों रुपये खर्च होने पर भी बिजली व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो सबसे पहले पावर कारपरेशन प्रबंधन को अपना पद से इस्तीफा देना चाहिए।
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