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निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने दावा किया कि ग्रेटर नोएडा और आगरा में बिजली के निजीकरण से यूपी पावर कारपोरेशन को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है। समिति के अनुसार, केवल आगरा में ही एक साल में करीब 10 हजार करोड़ का घाटा हुआ। उड़ीसा समेत कई राज्यों में निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह विफल होने के बावजूद यूपी में इसे जबरदस्ती उपभोक्ताओं पर थोपा जा रहा है। संगठन ने सांसदों और विधायकों को पत्र भेजकर पूर्वांचल-दक्षिणांचल डिस्कॉम का निजीकरण का फैसला निरस्त करने और ग्रेटर नोएडा व आगरा में बिजली वितरण व्यवस्था फिर से सरकारी क्षेत्र में
टोरेंट ने नहीं लौटाए 2200 करोड़ रुपये
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि एक अप्रैल 2010 को आगरा शहर की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर कंपनी को सौंपी गई थी। उस समय कारपोरेशन का आगरा शहर का 2200 करोड़ रुपये का राजस्व का बकाया था। निजीकरण की शर्त थी की यह धनराशि टोरेंट पावर कंपनी वसूल कर यूपीपीसीएल को देगी। पावर कारपोरेशन इसके एवज में टोरें को 10 प्रतिशत प्रोत्साहन धन राशि देगा, लेकिन 15 वर्ष के बाद भी टोरेंट ने यह धनराशि, पावर कारपोरेशन को वापस नहीं की। नतीजतन आगरा में निजीकरण की शुरुआत ही पावर कारपोरेशन को 2200 करोड़ रुपये की चोट से हुई है।
टोरेंट पावर ने कमाया 800 करोड़ मुनाफा
समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि 2010 से 2024 तक पावर कारपोरेशन ने महंगी दरों पर बिजली खरीदकर टोरेंट पावर को सस्ते में बेची है। वर्ष 2023-24 में पावर कारपोरेशन ने पांच रुपये 55 पैसे प्रति यूनिट बिजली खरीद कर टोरेंट पावर को चार रुपये 36 पैसे प्रति यूनिट बेची। इससे पावर कारपोरेशन को 274 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक शहर होने से आगरा में बिजली खरीद की दर सात रुपये 98 पैसे प्रति यूनिट है। इस तरह सस्ती बिजली खरीद कर टोरेंट पावर ने केवल एक वर्ष में 800 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है। आगरा की बिजली व्यवस्था सरकारी क्षेत्र में रहती तो यह मुनाफा पावर कारपोरेशन को मिलता। ऐसे में एक साल में ही लगभग 1000 करोड़ रुपये का घाटा पावर कारपोरेशन को उठाना पड़ा है।
निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन जारी
शैलेन्द्र दुबे ने आरोप लगाया कि ग्रेटर नोएडा में निजी मेसर्स नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों को शेड्यूल के अनुसार बिजली आपूर्ति नहीं करती। क्योंकि यह घाटे वाले क्षेत्र हैं। इसके अलावा कई अन्य शिकायतों के चलते प्रदेश सरकार एनपीसीएल का लाइसेंस निरस्त कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उड़ीसा में निजीकरण का प्रयोग तीसरी बार विफल हो गया है। वहां विद्युत नियामक आयोग टाटा पावर की चारों कंपनियों के बहुत खराब परफॉर्मेंस के चलते 15 अगस्त के बाद उकने विरुद्ध जन सुनवाई करने जा रही है। इसके अतिरिक्त अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी का प्रयोग उज्जैन, सागर, ग्वालियर, रांची, जमशेदपुर, औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया में विफलता के चलते निरस्त किया जा चुका है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों से इस मुद्दों को प्रमुखता से उठाने की मांग की है। वहीं निजीकरण के खिलाफ 257वें दिन बिजली कर्मचारियों ने प्रदर्शन जारी रखा।
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