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बिजली संशोधन विधेयक आत्मघाती : संघर्ष समिति ने कहा- विद्युत ढांचा हो जाएगा ध्वस्त, सरकार तुरंत वापस ले

देश भर के बिजली कर्मियों ने यूपी को टेस्ट केस मानते हुए पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के खिलाफ जारी प्रदर्शन को समर्थन की मुहिम तेज कर दी है।

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Deepak Yadav
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नि​जीकरण के खिलाफ प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन को राष्ट्रव्यापी समर्थन मिल रहा है। देश भर के बिजली कर्मियों ने यूपी को टेस्ट केस मानते हुए पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के खिलाफ जारी प्रदर्शन को समर्थन की मुहिम तेज कर दी है। वहीं प्रदेश के कर्मचारी भी बिजली (संशोधन) विधेयक वापस लेने की मांग को लेकर संघर्ष करेंगे। कर्मचारियों का कहना है कि विधेयक बिजली ढांचे पूरी तरह ध्वस्त कर देगा।

विधेयक से बिजली ढांचा होगा बर्बाद

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य पूरे बिजली क्षेत्र का निजीकरण करना है। जो किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए आत्मघाती साबित होगा। विधेयक लागू हुआ तो दशकों में बनी एकीकृत और सार्वजनिक रूप से संचालित बिजली व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगी। बिजली वितरण व उत्पादन के सबसे लाभदायक हिस्से निजी कंपनियों के हाथ सौंप दिए जाएंगे। जबकि घाटा और सामाजिक जिम्मेदारियां सार्वजनिक क्षेत्र पर ही रहेंगी।

कर्मचारियों की आजीविका पर खतरा

समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि यह विधेयक सार्वजनिक हित में क्षेत्र को सहारा देने के बजाय बड़े पैमाने पर निजीकरण, व्यावसायीकरण और भारतीय बिजली प्रणाली के केंद्रीकरण का रास्ता साफ करने के लिए बनाया गया है। यह सार्वजनिक उपयोगिताओं की वित्तीय स्थिरता, उपभोक्ताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों, भारतीय राज्य की संघीय संरचना और देशभर में लाखों बिजली क्षेत्र कर्मचारियों की आजीविका को खतरे में डालता है। उन्होंने कहा कि लागत-प्रतिबिंबी टैरिफ (कास्ट रिफ्लेक्टिव टैरिफ) का प्रावधान और क्रॉस-सब्सिडी की वापसी से किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए टैरिफ असहनीय हो जाएगा।

वर्तमान ड्राफ्ट पुराने प्रस्तावों की पुनरावृत्ति

संघर्ष समिति ने याद दिलाया कि केंद्र सरकार 2014, 2018, 2020, 2021 और 2022 में भी ऐसे संशोधन विधेयक ला चुकी है। लेकिन तब कर्मचारियों, इंजीनियरों, किसान संगठनों, उपभोक्ता मंचों और कई राज्य सरकारों के विरोध के कारण ये विधेयक पारित नहीं हो सके। समिति का कहना है कि वर्तमान ड्राफ्ट 2025 उन्हीं पुराने प्रस्तावों की पुनरावृत्ति है, जिनका उद्देश्य सिर्फ निजीकरण को बढ़ावा देना है।

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घाटा बढ़कर 6.9 लाख करोड़ रुपये पहुंचा

संगठन के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि खुद सरकार की व्याख्यात्मक टिप्पणी में यह स्वीकार किया गया है कि विद्युत अधिनियम 2003 लागू होने के 22 वर्ष बाद भी वितरण क्षेत्र भारी वित्तीय संकट में है। संचयी घाटा 26 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 6.9 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है- जो निजीकरण आधारित सुधारों की नाकामी को उजागर करता है।

Electricity Privatisation | VKSSSUP

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