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पटेल जयंती के सहारे पीडीए सेंध लगाएगी भाजपा Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। लोहे को लोहा ही काटता है और बात यदि चुनाव की हो तो जातियों को जाति से ही काटा जा सकता है। बात यूपी की हो तो यहां की राजनीति में जातीय किलेबंदी को तोड़ना हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती रहा है। सपा के PDA नैरेटिव की काट खोज रही BJP ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के बहाने फिलहाल इसमें सेंध लगाने की तैयारी की है। योजना यह है कि पिछड़ों में कुर्मियों को अपने पाले में घसीटने की यौर इस उद्देश्य से ही पटेल जयंती को BJP ने यहां राष्ट्रीय एकता के साथ ही जन जागरण अभियान से जोड़ लिया है। इसके तहत शुक्रवार को पूरे प्रदेश में रन फार यूनिटी का आयोजन किया जा चुका है और आने वाले दिनों में अन्य कार्यक्रम होंगे। पटेल को राष्ट्रीय एकता के संवाहक के रूप में उभारने के पीछे की मंशा भी एक राजनीतिक रणनीति के तहत ही है जो 2027 के लिए उपयोगी साबित हो सकती है।
पिछड़ों में यादवों के बाद सर्वाधिक संख्या कुर्मियों की
समाजवादी पार्टी PDA यानि पिछड़ों, दलित और अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखते हुए 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए आगे बढ़ रही है। उसके साथ पिछड़ों के रूप सर्वाधिक संख्या यादवों की है। 2001 में आई सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को आधार माना जाए तो पिछड़ी जातियों में इनकी संख्. 19.40 प्रतिशत थी जो अब संभवतः और बढ़ी होगी। इसके बाद कुर्मियों की संख्या है जो लगभग आठ प्रतिशत हैं। यादव परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी के साथ हैं और BJP में भी अंदरखाने यह महसूस किया जाता है कि उऩसे बहुत अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती। इसके बाद कुर्मी वोट ही ऐसे हैं जो भाजपा को लाभ पहुंचा सकते हैं। वैसे तो कुर्मी 2014 और 2017 के चुनावों से ही भाजपा के साथ हैं लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में यह छिटके नजर आए थे। पटेल को उनके स्वाभिमान से जोड़ भाजपा उनका लाभ उठा सकती है। प्रदेश में वर्मा, चौधरी, पटेल, कटियार, सचान आदि के रूप में कुर्मी जाने जाते हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पल्लवी पटेल ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को हरा दिया था जिसके संकेत अच्छे नहीं गए थे।
यूपी ही नहीं, बिहार तक जाएगा संदेश
वैसे तो भाजपा पटेल जयंती को हर साल ही राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाती रही है लेकिन इस बार चूंकि 150वां साल है इसलिए इसे व्यापक रूप दिया गया है ताकि आयोजन के साथ ही चुनावी समीकरणों को भी साधा जा सके। पार्टी के लिए यह सुनहरा अवसर भी है क्योंकि बिहार में भी चुनाव चल रहे हैं और वहां भी कुर्मी मतदाता चुनावी नजरिये से महत्वपूर्ण हैं। प्रदेश की चुनावी राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानंद त्रिपाठी बताते हैं कि भाजपा के इस अभियान का उस् थोड़ा-बहुत तो लाभ हासिल हो सकता है लेकिन पूर्ण रूप से नहीं। कुर्मी मतदाता अपना महत्व जानता है और रणनीतिक ढंग से ही वोट करता है। उसकी प्राथमिकता में अपनी जाति के उम्मीदवार प्राथमिकता में होते हैं। यही वजह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में 41 कुर्मी विधायक चुने गए जो भाजपा के साथ ही अन्य दलों के भी थे। भाजपा को अतिरिक्त लाभ यह है कि अपना दल सोने लाल से उसका गठबंधन है और जहां इस दल के प्रत्याशी खड़े होते हैं, कुर्मी समुदाय उसके साथ दिखाई देने लगता है।
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