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बिजली निजीकरण में बड़े घोटाले की बू, संघर्ष समिति ने की CBI जांच की मांग

समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे कहा कि प्रदेश में बिजली की लाखों करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों को लूट से बचाने के लिए मुख्यमंत्री को तत्काल हस्तक्षेप कर सारी प्रक्रिया रोकनी चाहिए।

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Deepak Yadav
electricity privatisation up

बिजली निजीकरण में भ्रष्टाचार के पांच बिंदु उजागर Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने बिजली निजीकरण की प्रकिया में घोटाले का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री से इसकी सीबीआई जांच की मांग की है। पदाधिकारियों ने कहा कि निजीकरण के लिए झूठा शपथ देने वाली सलाहकार कंपनी को रखा गया। समिति समेत अन्य ऊर्जा और उपभोक्ता संगठन लगातार निजीकरण में गंभीर खामियां उजागर कर रहे हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया से भी इस बाबत चर्चा की गई। उसके आधार समिति ने मंगलवार को​ निजीकरण में भ्रष्टाचार के पांच बिंदु उजागर किए हैं।

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पहला बिंदु : नवंबर में विद्युत वितरण निगमों की लखनऊ में हुई मीटिंग में निजी घराने शामिल हुए। इसमें पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की पृष्ठभूमि यही तैयार की गई थी। इस मीटिंग में देश के इतिहास में पहली बार शीर्ष प्रबंधन ने डिस्कॉम एसोसिएशन बनाई है। निजीकरण को अंजाम देने के लिए पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन आशीष गोयल को इस एसोसिएशन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।

दूसरा बिन्दु : सलाहकार कंपनी की नियुक्ति में हितों के टकराव को शिथिलता देना है। इसके साथ ही झूठा शपथ पत्र देने और अमेरिका में पेनल्टी लगने की बात स्वीकार कर लेने के बाद भी ग्रांट थॉर्नटन को नहीं हटाया गया और इसी कंसल्टेंट से निजीकरण के डॉक्यूमेंट तैयार कराए गए।
  
तीसरी बिन्दु : बिडिंग के लिए ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025 को आधार माना जा रहा है। जो डॉक्यूमेंट अभी तक पब्लिक डोमेन में ही नहीं है। इसके पूर्व सितंबर 2020 में ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट जारी किया गया था। जिस पर ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन सहित कई संस्थानों ने आपत्ति जताई थी। इन आपत्तियों का आज तक निस्तारण नहीं किया गया है और गुपचुप ढंग से उत्तर प्रदेश में निजीकरण के पहले ड्राफ्ट बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025 जारी कर दिया गया। ड्राफ्ट बिडिंग डॉक्यूमेंट को न पब्लिक डोमेन में रखा गया है न इस पर किसी की आपत्ति मांगी गई है। निजीकरण करने के लिए यह सब मिलीभगत का बड़ा खेल है। 

चौथा बिंदु : निजीकरण के सारे प्रकरण में पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष के साथ निदेशक वित्त निधि नारंग की भूमिका सबसे ज्यादा संदिग्ध और विवादास्पद है। निदेशक वित्त निधि नारंग को केवल निजीकरण के लिए ही तीन बार सेवा विस्तार दिया जा चुका है। निदेशक वित्त के पद पर चयनित व्यक्तियों को इतने दबाव में लिया गया कि उन्होंने ज्वाइन ही नहीं किया और निधि नारंग का कार्यकाल बढ़ता रहा। संघर्ष समिति पहले भी आरोप लगा चुकी है कि ग्रांट थॉर्नटन के अधिकारी निदेशक वित्त निधि नारंगी के कमरे में बैठकर मिलीभगत में सारे डॉक्यूमेंट तैयार करता रहा है। यह भी जानकारी मिली है कि निजीकरण के आरएफपी डॉक्यूमेंट पर पावर कारपोशेन प्रबंधन ने दबाव डलवा कर अधीनस्थ अधिकारियों कर्मचारियों से हस्ताक्षर करवाए हैं।

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पांचवा बिंदु : पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को कौड़ियों के मोल पूर्व निर्धारित निजी घरानों को बेचने के लिए इक्विटी के आधार पर बेचने की कोशिश की जा रही है। इक्विटी को लॉन्ग टर्म लोन में कन्वर्ट किए जाने के बाद 42 जनपदों की बिजली व्यवस्था मनचाहे कारपोरेट घरानों को कौड़ियों के दाम मिल जाएगी।

सीएम से निजीकरण पर रोक लगाने की मांग

समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे कहा कि प्रदेश में बिजली की लाखों करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों को लूट से बचाने के लिए मुख्यमंत्री को तत्काल हस्तक्षेप कर सारी प्रक्रिया रोकनी चाहिए। निजीकरण में घोटाले की उच्च स्तरीय सीबीआई कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बिजली कर्मचारी, किसान, उपभोक्ता, व्हीसल ब्लोअर, सरकारी कर्मचारी, राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन सब मिलकर निजीकरण के पीछे हो रहे भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते रहेंगे। निजीकरण के विरोध में अभियान और संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार अपना फैसला वापस नहीं ले लेती।

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