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पावर कारपोरेशन के खिलाफ नियमक आयेाग में अवमानना का प्रस्ताव दाखिल Photograph: (google)
लखनऊ वाईबीएन संवाददाता। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रकिया में पावर कारपोरेशन गंभीर आरोपों से घिरता जा रहा है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने शुक्रवार को पावर कारपोरेशन के खिलाफ नियामक आयोग में अवमानना का प्रस्ताव दाखिल किया। इसमें निजीकरण के मसौदे में विद्युत अधिनियम की धारा के उल्लंघन का आरोप लगाया। साथ ही निजीकरण की रिपोर्ट तैयार करने वाली सलाहकार कंपनी को भी बराबर का दोषी ठहराया है।
धारा 131 (2) के उल्लंघन का आरोप
प्रदेश के 42 जनपदों में बिजली निजीकरण (Electricity Privatisation) के मसौदे पर विद्युत नियामक आयोग से सलाह मांगी गई है। आयोग ने उसमें वित्तीय कमियां निकालते हुए अंतरिम रिपोर्ट सरकार को भेजी है। वहीं, उपभोक्ता परिषद ने निजीकरण के मुद्दे पर जनसुनवाई से पूर्व आयोग को अवगत कराया कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 से लेकर 134 तक के प्रावधानों के आधार पर बिजली कंपनियों के निजीकरण का मसौदा तैयार किया गया है। लेकिन इसमें धारा 131 (2) का खुला उल्लंघन हुआ है।
बिजली कंपनियों की संपत्ति की सही मूल्यांकन जरूरी
इस धारा में स्पष्ट प्रावधान है कि सरकारी बिजली कंपनियां को छोड़कर किसी भी बिजली कंपनी की सम्पत्ति या शेयर को निजी हाथों में देने से पहले उसका राजस्व उपयोगिता (रेवेन्यू पोटेंशियल) का मूल्यांकन किया जाना जरूरी है। चूंकि बिजली कंपनियां लाइसेंस की अवधि 25 साल होती है। उसके आधार पर अगले 25 वर्षों का राजस्व उपयोगिता निकालकर सम्पत्ति का मूल्यांकन किया जाए।
नियामक आयोग से कार्रवाई की मांग
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने नियामक आयोग के चेयरमैन अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार सिंह से मुलाकात कर अवमानना का प्रस्ताव दाखिल किया। वर्मा ने कहा कि निजीकरण की प्रक्रिया आसंवैधानिक रूप से आगे बढ़ाई गई है। आयोग को तत्काल रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत अवमानना की कार्रवाई करते हुए निजीकरण का मसौदा प्रदेश सरकार को वापस कर देना चाहिए। विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों के विपरीत कोई भी कार्यवाही को आगे बढ़ाने पर उसे खारिज किया जाए।
सरकार को धारा में संशोधन का अधिकार नहीं
उन्होंने कहा कि विद्युत अधिनियम की धारा के किसी भी प्रावधान के प्रतिकूल कोई भी फैसला लेने का अधिकार केवल संसद को है। इसलिए प्रदेश सरकार इसमें कोई भी बदलाव नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी कहा कि एनर्जी टास्क फोर्स को कुछ मामलों में ही राय देने का अधिकार है। बिजली अधिनियम की धारा 133 तहत स्थानांतरण स्कीम पर किया गया उसका फैसला विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों के विपरीत है।
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