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विद्युत अधिनियम की धारा का उल्लंघन किया जा रहा निजीकरण Photograph: (google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत उपभोक्ता परिषद ने पावर कारपोरेशन पर औद्योगिक समूहों के फायदा पहुंचाने के लिए निजीकरण के मसौदे में धारा 131 (2) का उल्लंघन कारने का आरोप लगाया है। परिषद की ओर से इस मामले में नियामक आयोग में पावर कारपोरेशन के खिलाफ अवमानना का वाद दाखिल किया जाएगा।
राजस्व क्षमता का सही आकलन नहीं
उपभोक्ता संगठन का कहना है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131, 132, 133, 134 के तहत दक्षिणांचल और पूर्वाचल के 42 जनपदों का निजीकरण किया जा रहा है। इस धारा का इस्तेमाल केवल एक बार किया जा सकता है। जोकि सरकार बिजली कंपनियों के विघटन पर कर चुकी है। सबसे पहले विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 (2) में पावर कारपोरेशन और सलाहकार कंपनी को रेवेन्यू पोटेंशियल (राजस्व क्षमता) के आधार पर पूरी गणना करके एसेट की वैल्यू निकालना चाहिए था।
धारा 133 का पालन नहीं किया
ऐसे करने से दोनों बिजली कंपनियों की वैल्यू काफी बढ़ जाती। इससे देश का कोई भी औद्योगिक घराना नई बनने वाली पांच बिजली कंपनियों को खरीद नहीं पाता। कारपोरेशन की पिछले 8 महीना की प्रेक्टिस से लग रहा कि वह केवल निजी घरानों का फायदा देख रहा है। वहीं दूसरी तरफ विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 133 में सबसे पहले अधिकारियों और कर्मचारियों से संबंधित अंतरण स्कीम सरकार को घोषित करना चाहिए था, जो नहीं किया।
राजस्व गणना को जानबूझकर दबाया
परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा किसी भी बिजली कंपनी का नया लाइसेंस 25 सालों के लिए होता है। ऐसे में राजस्व उपयोगिता 25 सालों के आधार पर आंकलित करके यह देखा जाना चाहिए कि कितना राजस्व का आकलन प्रतिवर्ष होगा। उसके आधार पर एसेट की वैल्यू होगी। लेकिन इसमें प्रदेश की बिजली कंपनियों और सरकार फायदा होता, इसलिए इसको दबा दिया गया। ऐसे में पावर कारपोरेशन को तत्काल निजीकरण के ड्राफ्ट को वापस ले लेना चाहिए।
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