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बिलासपुर में बायोफर्टिलाइजर उत्पादन इकाई व प्रयोगशाला में बीबीएयू के प्रो. नवीन कुमार अरोड़ा Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (BBAU) ने जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। बीबीएयू और अजीम प्रेम फाउंडेशन के तकनीकी सहयोग से हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में बायोफर्टिलाइजर उत्पादन इकाई व प्रयोगशाला की स्थापना की गयी। विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर नवीन कुमार अरोड़ा ने बिलासपुर का दौरा कर मानव विकास संस्थान के कर्मचारियों को माइक्रोब आधारित बायोफर्टिलाइजर के विकास का तकनीकी प्रशिक्षण दिया।
किसानों को मिलेगा लाभ
इन बायोफर्टिलाइजर का इस्तेमाल समय-समय पर यूपी, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों में फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किया गया है। बीबीएयू में विकसित ये बायोफर्टिलाइजर डीएसटी-सीड, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से वित्त पोषित परियोजना के अंतर्गत तीन राज्यों के ग्रामीणों को उपलब्ध कराए जाते थे। लेकिन अब बिलासपुर में मानव विकास संस्थान के सहयोग से स्थापित इस इकाई और प्रयोगशाला में राज्य में ही उत्पादन शुरू हो गया है। जिससे किसानों को सीधे लाभ मिलेगा।
फसलों को बीमारियों से बचाने में मिलेगी मदद
इस नई प्रयोगशाला में ट्राइकोडर्मा (Trichoderma), स्यूडोमोनास (Pseudomona) और बैसिलस (Bacillus) सूक्ष्म जीवों सहित कई अन्य उपयोगी माइक्रोबियल स्ट्रेनों पर आधारित बायोफर्टिलाइजर तैयार किए जाएंगे। ये सूक्ष्मजीव प्रो. अरोरा ने नव स्थापित इकाई को दिए हैं। ये सूक्ष्मजीव मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने और फसलों को बीमारियों से बचाने में मददगार साबित होंगे। इन बायोफर्टिलाइज़र को 'किसान का मित्र' कहा जा रहा है। ये रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करने के साथ फसलों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। बायोफर्टिलाइजर न केवल मक्का, गेहूं, धान, गन्ना, दलहन और सब्जियों जैसी फसलों की उत्पादकता बढ़ाएंगे, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाएंगे और मृदा एवं जल प्रदूषण को भी कम करेंगे।
विधायक ने किया इकाई और प्रयोगशाला का उद्घाटन
बायोफर्टिलाइजर इकाई और प्रयोगशाला का उद्घाटन बिलासपुर के विधायक जीत राम कटवाल ने किया। इस अवसर पर कटवाल ने कहा कि यह प्रयोगशाला न केवल स्थानीय किसानों को लाभ देगी, बल्कि पूरे क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी। बीबीएयू और मानव विकास संस्थान की ओर से उठाया गया यह कदम हिमाचल प्रदेश के किसानों के लिए लाभकारी होगा और राज्य में प्राकृतिक खेती को नई दिशा देगा।
किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए किया प्रेरित
प्रो. अरोड़ा ने स्थानीय किसानों से संवाद भी किया और उन्हें जैविक व प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया। मानव विकास संस्थान के निदेशक रसम सिंह चंदेल ने कहा कि हम प्रो. अरोड़ा और उनकी टीम का आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने इस बायोफर्टिलाइज़र इकाई की स्थापना में तकनीकी सहायता प्रदान की। यह इस क्षेत्र के ग्रामीणों और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक वरदान सिद्ध होगा। हमें आशा है कि प्रो. अरोरा इस परियोजना में अपना सहयोग जारी रखेंगे और हिमाचल प्रदेश में मिशन मोड में जैविक खेती को फैलाने में मदद करेंगे। बीबीएयू की डॉ. प्रियंका वर्मा ने भी स्टाफ को प्रशिक्षण देने और ग्रामीणों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने में सहयोग किया।
यूपी समेत तीन राज्यों में जैविक खेती की शुरुआत
प्रो. अरोड़ा की प्रयोगशाला बीते कई वर्षों से विभिन्न राज्यों के दूरदराज क्षेत्रों में सीमांत किसानों की कृषि समस्याओं के समाधान के लिए काम कर रही है। इस मिशन और विकसित उत्पादों के माध्यम से प्रो. अरोड़ा ने उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों में जैविक खेती की शुरुआत की है। प्रदेश के कानपुर क्षेत्र में लगभग 100 एकड़ बंजर भूमि को भी पुनः उपयोग योग्य भूमि में बदला गया है। इस पहल का उद्देश्य किसानों को रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करने और फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष प्रकार के बायोफर्टिलाइजर अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
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