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रेनू यादव की फाइल फोटो।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। यूपी की राजधानी में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू हुए पांच साल पूरे हो गए हैं। जनता को उम्मीद थी कि अब अपराध पर सख्त अंकुश लगेगा, महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी और बदमाशों में खाकी का खौफ रहेगा। लेकिन हालात इसके उलट नजर आ रहे हैं। अपराध की घटनाओं में अपेक्षित कमी नहीं आई, बल्कि अपराधी बेखौफ होकर सरेराह, सरेशाम और यहां तक कि दिनदहाड़े वारदातों को अंजाम देकर पुलिस को चुनौती दे रहे हैं।
पीजीआई में बेरहमी से महिला की हत्या कर आरोपी फरार
ताजा उदाहरण पीजीआई थाना क्षेत्र के बाबू खेड़ा गांव का है, जहां 45 वर्षीय रेनू यादव की बेरहमी से हत्या कर दी गई। रेनू यादव दूध कारोबारी रमेश यादव की पत्नी थीं। दशहरा पर्व के अगले दिन जब शहरभर में सुरक्षा को लेकर भारी पुलिस बल तैनात था और जगह-जगह भरत मिलाप का आयोजन चल रहा था, तब भी अपराधी बिना किसी डर के वारदात को अंजाम देकर फरार हो गए। इस घटना ने राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है।
किसी करीबी ने वारदात को दिया अंजाम
हालांकि प्राथमिक जांच में सामने आया कि घटना को किसी करीबी ने अंजाम दिया, लेकिन सवाल यह है कि भले ही कातिल करीबी क्यों न हो, अपराध तो अपराध है और इसे रोकने में पुलिस नाकाम साबित हुई। यह वारदात राजधानी की उस छवि पर भी सवाल खड़ा करती है, जिसके लिए कमिश्नरेट व्यवस्था लागू की गई थी।
पुलिस अधिकारियों की भरमार फिर भी अपराधी बेखौफ
राजधानी में कमिश्नरेट लागू होने से पहले एक एसएसपी के नेतृत्व में लगभग छह से सात हजार पुलिसकर्मी शहर की सुरक्षा में तैनात रहते थे। अपराध पर अंकुश लगाने और कानून-व्यवस्था को मजबूत करने के लिए वर्ष 2020 में कमिश्नरेट प्रणाली लागू की गई। इसके बाद कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और हजारों पुलिसकर्मी राजधानी में तैनात किए गए। लेकिन इसके बावजूद अपराधी बेख़ौफ़ हैं।
कई वारदातों के आरोपी अब भी पुलिस की पकड़ से दूर
पिछले कुछ महीनों में राजधानी में हुई वारदातों पर नजर डालें तो हत्या, लूट, छेड़छाड़ और मारपीट की घटनाओं में कमी नहीं आई है। सरेराह गोलीकांड, सरेशाम लूट और चेन स्नैचिंग की वारदातें पुलिस के दावों की पोल खोल रही हैं। हाल के दिनों में कई वारदातों के आरोपी अब तक गिरफ्त से बाहर हैं।
अपराधियों में तनिक भी खाकी का नहीं खौफ
कमिश्नरेट प्रणाली के तहत सुरक्षा और अपराध पर अंकुश के लिए विशेष टीमें गठित की गईं, तकनीकी सर्विलांस और आधुनिक संसाधन जुटाए गए। मगर अपराधियों का हौसला टूटता नजर नहीं आता। पुलिस की चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था का डंका बजाने के बावजूद अपराधियों की गतिविधियां दर्शाती हैं कि उन्हें अब भी खाकी का खौफ नहीं है।
रेनू यादव की हत्या से लोगों दहशत
लोगों का कहना है कि कमिश्नरेट लागू होने के बाद भी उन्हें पहले जैसी सुरक्षा महसूस नहीं हो रही। खासकर महिलाएं और कारोबारी वर्ग लगातार असुरक्षा झेल रहे हैं। पीजीआई क्षेत्र में हुई रेनू यादव की हत्या ने इस भय को और गहरा कर दिया है।
थाना पीजीआई क्षेत्रांतर्गत मारपीट में घायल महिला की दौराने इलाज अस्पताल में मृत्यु हो जाने के संबंध में पुलिस उपायुक्त दक्षिणी द्वारा दी गई बाइट । pic.twitter.com/FhhPAAVXxv
— shishir patel (@shishir16958231) October 4, 2025
महिला रेनू यादव हत्याकांड में लापता बेटा निखिल अब तक फरार
पीजीआई थाना क्षेत्र के बाबू खेड़ा में रेनू यादव की हत्या के बाद से उसका बेटा निखिल लापता है। घटना के बाद निखिल को बाइक से अकेले जाते हुए देखा गया था और आखिरी बार कोचारबाग में उसकी लोकेशन मिली थी। पुलिस की कई टीमें मामले की जांच कर रही हैं और अब तक 70 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जा चुकी है, लेकिन निखिल का सुराग नहीं मिल सका है।
पुलिस की कार्यप्रणाली में लगातार उठ रहे सवाल
कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के पांच साल बाद भी अपराधियों के हौसले बुलंद होना और बड़े-बड़े अपराधों का खुलासा समय पर न होना पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा है। राजधानी की जनता को अब भी उस सुरक्षा की तलाश है, जिसका वादा कमिश्नरेट व्यवस्था लागू करते समय किया गया था।
जांच और अपराधियों की धरपकड़ सुनिश्चित करनी होगी
जानकारों का मानना है कि कमिश्नरेट व्यवस्था का असल मकसद तभी सफल होगा जब अपराधियों में खाकी का खौफ पैदा हो और कानून-व्यवस्था को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। इसके लिए पुलिस को सख्त कार्रवाई के साथ-साथ त्वरित जांच और अपराधियों की धरपकड़ सुनिश्चित करनी होगी।
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