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आत्महत्या का महिमामंडन समाज के लिए घातक : विशेषज्ञ बोले- रिपोर्टिंग में WHO गाइडलाइन का पालन जरूरी

विश्वव आत्महत्या रोकथाम दिवस के उपलक्ष्य में मनोचिकित्सा विभाग में आयोजित विशेष कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कहा कि आत्महत्या की घटनाओं का महिमामंडन करने से यह एक प्रथा बन जाएगी।

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Deepak Yadav
World Suicide Prevention Day kgmu

विश्वव आत्महत्या रोकथाम दिवस के उपलक्ष्य में मनोचिकित्सा विभाग में आयोजित विशेष कार्यक्रम Photograph: (YBN)

लखनऊ वाईबीएन संवाददाता। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग ने आत्महत्या के बढ़ते मामलों और उसके पीछे सामने आ रहे कारणों पर गहरी चिंता जताई है। विशेषज्ञों ने कहा कि आत्महत्या की घटना का महिमामंडन करना समाज के लिए घातक है। इसमें खासतौर पर मीडिया की जिम्मेदारी अहम है। ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग हमेशा समझदारी और संवेदनशीलता के साथ की जानी चाहिए। चूंकि इन घटनाओं पर मीडिया की रिपोर्ट का असर पूरे समाज पर पड़ता है। इसलिए मीडिया को आत्महत्या के मामले की रिर्पोटिंग के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की गाइडलाइन का पालन करना चाहिए।  

सुशांत सिंह राजपूत के मामले का किया जिक्र 

विश्वव आत्महत्या रोकथाम दिवस के उपलक्ष्य में मनोचिकित्सा विभाग में मंगलवर को आयोजित विशेष कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कहा कि आत्महत्या की घटनाओं का महिमामंडन करने से यह एक प्रथा बन जाएगी। जिसका लोग अनुसरण करने लगेंगे। जो समाज के लिए बेहद घातक है। उन्होंने उदाहरण देते हुए दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मामले का जिक्र किया 

आत्महत्या के कारण और भ्रांतियों पर चर्चा

मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख प्रो विवेक अग्रवाल ने लोगों और समाज को संवेदनशील बनाने में मीडिया के महत्व पर अपनी बात रखी। सहायक प्रोफेसर डॉ. मोहिता जोशी ने वैश्विक और भारत में आत्महत्या के विभिन्न कारण, मिथक और आत्महत्या की भ्रांतियों पर चर्चा की। डॉ. सुरजीत ने मीडिया कर्मियों के लिए आत्महत्या पर डब्ल्यूएचओ और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्टिंग के दिशा-निर्देश प्रस्तुत किए। क्या रिपोर्ट करना है और क्या नहीं, इस पर चर्चा की गई।

पैनल चर्चा में आत्महत्या रोकने के तरीकों पर मंथन

दो व्याख्यान सत्रों के बाद मनु रोग विज्ञान विभाग के प्राध्यापकों प्रो. वंदना गुप्ता, प्रो. आदर्श त्रिपाठी, प्रो. स्वेता सिंह, डॉ. सुरजीत कुमार, डॉ. रश्मि शुक्ला और डॉ. मोहित जोशी के साथ एक पैनल चर्चा हुई। इसमें आत्महत्या के विभिन्न जोखिम कारकों, उपचार विकल्पों और आत्महत्या को रोकने के तरीकों पर चर्चा की गई। 

ओपीडी में रोजाना आ रहे 450 मरीज

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इस दौरान डॉक्टरों ने बताया कि ओपीडी में रोजाना 18 साल से ऊपर के करीब 450 मानसिक समस्या से पीड़ित आते हैं। इसमें 100 मरीज मानसिक तनाव से जूझ रहे होत हैं। इन 100 मरीजों में करीब 60 प्रतिशत महिलाएं होती हैं। उन्होंने बताया कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले हर 20 लोगों में से एक आगे चलकर अपनी जान दे देता है। इसलिए विभाग में मरीजों की काउंसिलिंग भी होती है। इससे उन्हें काफी फायदा मिलता है।   

यूपी में छात्र आत्महत्याएं 8.1 प्रतिशत

डॉक्टरों ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के हवाले से कहा कि वर्ष 2022 में देश भर में होने हुई छात्र आत्महत्याओं में से 8.1 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में दर्ज की गईं। प्रदेश में 2022 में आत्महत्या की दर प्रति एक लाख जनसंख्या पर 3.5 प्रतिशत रही। जबकि यह देश में कुल आत्महत्याओं का 4.8 प्रतिशत है। इन सभी आत्महत्याओं में से 38.7 प्रतिशत का कारण पारिवारिक समस्याएं बताइ गईं। उन्होंने कहा कि इस गंभीर समस्या की रोकथाम के लिए लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की भी अहम जिम्मेदारी है।

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