लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण को लेकर सरकार और ऊर्जा संगठनों के बीच नूरा कुश्ती जैसी स्थिति बनी हुई है। निजीकरण की प्रक्रिया अब अपने अंतिम चरण में है। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने साफ कर दिया कि निजीकरण हर हाल में होकर रहेगा। दूसरी ओर निजीकरण के खिलाफ डटे कार्मिक पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। हालांकि अभी तक बिजली कंपनियों के निजीकरण का टेंडर जारी नहीं किया गया है। ऐसे में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने 29 मई से प्रस्तावित अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार को फिलहाल स्थगित करते हुए अब राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का एलान किया है। उपभोक्ता परिषद समेत कई संगठनों ने आंदोलन को समर्थन की घोषणा की है।
सरकार और ऊर्जा संगठनों के तर्क
बिजली कंपनियों के निजीकरण पर सरकार और ऊर्जा संगठनों के अपने-अपने तर्क हैं। ऊर्जा मंत्री का कहना है कि पिछली सरकारों में आगरा और नोएडा में हुए निजीकरण के बेहतर परिणाम मिले हैं। जहां-जहां बिजली का निजीकरण पीपीपी मॉडल पर हुआ, वहां बिजली की कीमत घटी है। प्रदेश में भी निजीकरण से स्थितियां बेहतर होंगी। वहीं, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का तर्क है कि दोनों डिस्कॉम के निजीकरण से सिर्फ उद्योगपतियों को फायदा होगा। 42 जिलों की बिजली व्यवस्था निजी हाथों में देने से प्राइवेट कंपनियां मनमानी करेंगी।
आरक्षण के 16 हजार पद समाप्त होने का खतरा
पावर ऑफिसर एसोसिएशन के मुताबिक, संवैधानिक आरक्षण की व्यवस्था पर कुठाराघात करने के लिए प्रदेश में बिजली का निजीकरण किया जा रहा है। इससे आरक्षण के करीब 16 हजार पद समाप्त होंगे। इसके अलावा राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों की बदहाली का जिम्मेदार पावर कॉरपोरेशन को ठहराया है। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के मुताबिक, कारपोरेशन की गलत नीतियां ही बिजली कंपनियों की खस्ता हालत के लिए जिम्मेदार हैं। सरकार को बिजली को सार्वजनिक क्षेत्र में रखते हुए इसमें सुधार के प्रयास करने चाहिए। इसके लिए सभी तैयार हैं।
निजीकरण की प्रकिया में शुरू से तमाम खामियां
प्रदेश की दोनों बिजली कंपनियों के निजीकरण की प्रकिया में शुरू से तमाम खामियां रही हैं। निजीकरण की रिपोर्ट तैयार करने के लिए रखी गई सलाहकार कंपनी ग्रांट थार्नटन पर अमेरिका में 40 हजार डॉलर का जुर्माना लगा। टीए के टेंडर के लिए जमा किए गए शपथ पथ में कंपनी ने इसका जिक्र नहीं किया। ऐसे में झूठा शपथ देकर टेंडर हासिल कर लिया। मामला उजागर होने के कार्रवाई के बजाए सलाहकार को बचाने में पावर कारपोरेशन ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। परिणामस्वरूप पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसके अलावा नियम कानून ताक पर रखकर शासन स्तर से निजीकरण का मसौदा नियामक आयोग में भेजने की तैयारी है।
कार्मियों को बर्खास्त करने का फैसला
ऊर्जा संगठनों के निजीकरण का विरोध तेज होने पर पावर कारपोरेशन में हड़ताल व बहिष्कार पर जाने वाले कार्मिकों कार्मियों को सीधे बर्खास्त करने के लिए बकायदा एक विशेष नियम भी लागू कर दिया। उपभोक्ता परिषद के इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे संविधान का उल्लंघन करार दिया है। संगठनों का कहना है कि बिजली निजीकरण का विरोध जारी रहेगा। कार्मिक बर्खास्तगी से घबराने वाले नहीं है। जब तक सरकार निजीकरण का फैसला वापस नहीं लेगी आंदोजन जारी रहेगा। टेंडर जारी हुआ तो आर-पास की तर्ज पर लड़ाई लड़ी जाएगी।
जनिए क्या कहते हैं उपभोक्ता
लखनऊ के रहने वाले राजेन्द्र मिश्रा ने बुधवार को 'यंग भारत न्यूज' से बातचीत में कहा, भाजपा सरकार ने सिर्फ जनता का नुकसान ही किया है। नौकरीपेशा हो, चाहे शिक्षक या फिर आजम जनता भाजपा सबका नुकसान कर रही है। अब बिजली कंपनियों का निजीकरण कर गरीबों की जेब पर डाका डालने की तैयारी की रही है। वहीं अनिल ने कहा कि वैसे की घर चलाना मुश्किल है। निजीकरण के बाद बिजली दरों और बढ़ जायेंगी।
गोमतीनगर विस्तार के रहने वाले सुरेन्द्र यादव ने कहा कि बिजली व्यवस्था निजी हाथों में जाने से गरीब और मध्यम वर्ग की मुश्किलें बढ़ेंगी। निजी कंपनियां केवल अपना मुनाफा देखेंगी। बाराबंकी निवासी वाली अराधना शर्मा के मुताबिक, अभी भी बिजली के बिल बहुत ज्यादा आते हैं। अगर निजीकरण हो गया तो हाल और बुरा होगा। गरीब आदमी क्या करेगा?
सीतापुर रोड़ के रहने वाले देशराज यादव ने कहा कि हम चाहते हैं कि सरकार ही 42 जिलों की बिजली व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाले। बिजली का निजीकरण करना उचित नहीं हैं। अलीगंज के महेश सिंह के मुताबिक, कई राज्यों में निजीकरण सफल नहीं हुआ है। सरकार को बिजली कंपनियों की हालत सुधारकर निजीकरण प्रकिया पर रोक लगाई चाहिए। कानपुर रोड निवासी अंजलि श्रीवास्तव ने कहा कि बिजली निजीकरण से न सिर्फ दरें बढ़ेंगी, बल्कि संविदा कार्मियों की नौकरी भी खतरे में आ जाएगी।
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