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यूपी के करप्ट आईएएस (फाइल फोटो )
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश सरकार जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर जोर देती है, वहीं दूसरी ओर आईएएस अधिकारियों द्वारा रिश्वतखोरी और तबादला उद्योग चलाए जाने के गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं। ताज्जुब की बात यह है कि इन अफसरों पर उंगली उठाने वाले कोई और नहीं बल्कि खुद उनके विभागीय मंत्री हैं।
आईएएस समीर वर्मा और भवानी सिंह पर करोड़ों की उगाही के आरोप
स्टांप और पंजीयन विभाग के मंत्री रवींद्र जायसवाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर आईजी रजिस्ट्रेशन समीर वर्मा पर बिना परामर्श तबादले करने और लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया है। मंत्री ने कहा कि ऐसे बाबुओं को तैनात किया गया जो केवल इंटर पास हैं और जिनके खिलाफ शिकायतें पहले से थीं।
वहीं स्वास्थ्य विभाग के निदेशक भवानी सिंह खरगौत को भी उनके पद से हटा दिया गया है। आरोप है कि उन्होंने बिना उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक की सहमति के तबादले किए। उपमुख्यमंत्री ने इस पर लिखित आपत्ति जताई थी। मामला बढ़ने पर स्वास्थ्य विभाग में पूरा तबादला सत्र शून्य घोषित कर दिया गया।
निलंबित आईएएस अभिषेक प्रकाश की तलाश में एसटीएफ
एक अन्य गंभीर मामला निलंबित आईएएस अधिकारी अभिषेक प्रकाश का है, जो सौर ऊर्जा उपकरणों की खरीद में कमीशनखोरी के आरोपों में घिरे हैं। लखनऊ के भटगांव भूमि अधिग्रहण घोटाले में उनके खिलाफ चार्जशीट दी जा चुकी है। राजस्व विभाग ने उनके खिलाफ रिपोर्ट नियुक्ति विभाग को भेज दी है और यूपी एसटीएफ अब उनकी तलाश कर रही है।
जनता का सवाल: तबादले में दिखता है भ्रष्टाचार, तैनाती में क्यों नहीं?
इन मामलों के सामने आने के बाद आम नागरिकों और कर्मचारियों के बीच यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि जब ये अफसर विभागों में तैनात थे तब किसी मंत्री को भ्रष्टाचार क्यों नहीं दिखा? आखिरकार सिर्फ तबादले के वक्त ही इन पर कार्रवाई क्यों होती है?
तबादला घोटालों की लंबी श्रृंखला
स्टांप विभाग में 88 सब-रजिस्ट्रार और 114 बाबुओं के तबादले रद्द।
बिना सहमति किए गए तबादलों पर मंत्रियों ने मुख्यमंत्री से शिकायत।
राजनीतिक और अफसरशाही टकराव में भ्रष्टाचार पर कार्रवाई बन रही बहस का विषय।
यूपी सरकार का भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का नारा तभी सार्थक माना जाएगा जब कार्रवाई सिर्फ तबादलों तक सीमित न रहकर नियमित प्रशासनिक कामकाज पर भी हो। अन्यथा यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कहीं तबादले ही कमाई का जरिया तो नहीं बन गए?
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