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चाइनीज़ मांझे की प्रतीकात्मक तस्वीर Photograph: (YBN)
दीपावली के त्योहार के अगले दिन जमघट के त्योहार को मनाने का रिवाज है। इस त्योहार पर उत्तर भारत के साथ गुजरात और महाराष्ट्र में भी पतंग उड़ाने का चलन है। नवाबों का शहर लखनऊ अपनी पतंगबाजी के लिए काफी ऐतिहासिक माना जाता है। नवाबों के दौर से यहां पतंग के पेंच लड़ाए जाते है। स्थानीय भाषा में पतंग को कनकौआ कहा जाता है।
जमघट पर क्यों होती है पतंगबाजी
दरअसल दिवाली चार से पांच दिनों तक चलने वाला पर्व है। लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन या अन्नकूट, भाई दूज जैसे त्योहार इस दौरान मनाए जाते है। जानकार बताते है कि उत्सव और छुट्टी के दिनों के कारण लोग बाहर जमा होकर खेल-कूद और सामाजिक मिलन पर जोर देते रहे। पतंग उड़ाना भी इसका एक हिस्सा बना। जानकर कहते है कि कई इलाकों में दिवाली के समय गुलाबी मौसम रहता है और दिन के समय स्थितियां छतों से पतंग उड़ाने के लिए एकदम अनुकूल होती हैं इसलिए भी सामूहिक पतंगबाजी इस दौरान संभव हुई।
चाइनीज़ मांझे से बढ़ते हादसे
पतंगबाजी जहां एक तरफ मनोरंजन का हिस्सा है वहीं दूसरी तरफ लोगों के लिए जान लेने का भी कारण बनता जा रहा। पतंगबाजी के दौरान इस्तेमाल होने वाला चाइनीज़ मांझा अक्सर पतंग कटने के बाद जब ज़मीन की ओर गिरता है तो राह चलते हुए दो पहिया सवार इसकी चपेट में आने से बुरी तरह घायल ओर कभी जान से भी जाते है। अकेले लखनऊ में ही हर महीने डोर से गर्दन कटने की कई घटनाएं सामने आती।
चाइनीज़ मांझे के बहिष्कार का संकल्प
भारत में चाइनीज मांझा बैन होने के बावजूद चोरी छुपे पतंगों की दुकानों और कारखानों से बिक रहा है। दुकानदार अक्सर इनकी मांग के चलते इसको बेचना छोड़ना नहीं चाहते और गुपचुप तरीके से इन्हें खरीदार को बेच देते। चाइनीज़ मांझे पर नकेल लगाने के लिए भी प्रशासन की ओर से कोई सख्त अभियान नहीं चलाया जाता जिसके चलते इनकी हिम्मत बनी रहती। हालांकि इस जमघट के शुभ मौके पर लखनऊ के मशहूर पतंगबाजों ने चाइनीज़ मांझे के बहिष्कार का ऐलान किया है और हर किसी से इसको नहीं खरीदने की अपील की है। लखनऊ काईट क्लब के साजिद कहते है कि वह सभी युवाओं को पिछले कुछ साल से इसके लिए प्रेरित कर रहे है और चाइनीज़ मांझे के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रहे है।
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