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प्रतीकात्मक Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। शीला रोहेकर मौजूदा समय में हिंदी की एकमात्र यहूदी लेखिका हैं। उनका उपन्यास 'मिस सैम्युएल: एक यहूदी गाथा' भारत के यहूदियों की बहुत ही मार्मिक कथा है। 20 सितंबर से लखनऊ में शुरू हुए गोमती पुस्तक महोत्सव में शीला रोहेकर भी शिरकत करने आई हैं। इस मौके पर उन्होंने कई मुद्दों पर बातचीत की। पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
सवाल : साहित्य को आप कैसे देखती हैं?
जवाब : साहित्य हमेशा इतिहास और उससे जुड़ी राजनीतिक घटनाओं को साथ लेकर चलता है। इनके बिना आपकी रचना में कोई महत्व नहीं। आपको सिर्फ घटना का वर्णन नहीं करना, बल्कि उससे पात्रों और समाज पर क्या असर पड़ता है, यह भी दर्शाना पड़ता है।
सवाल : आप एक अत्यल्प समुदाय से संबंधित हैं और आपकी रचनाओं में यह बार-बार दिखता है, क्या आप साहित्य में इसे दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं?
जवाब : जो अपमान और परेशानी यहूदी समाज ने देखी है, उन तकलीफों को मैंने जाना है और निराशा भी देखी है। मेरे साहित्य में मेरे यहूदी समाज का आना सिर्फ दस्तावेजीकरण तक सीमित नहीं है। त्रासदी हर एक इंसान के लिए अलग होती है।
सवाल : साहित्य में विज्ञान का उपयोग है?
जवाब : विज्ञान, लेखन में बहुत काम आता है। जब मैं कुछ भी लिखती हूं, तो उसका पुष्टिकरण करके लिखती हूं।
युवा लेखकों के लिए संदेश
मैं सिर्फ यह सीख देना चाहूंगी कि खूब पढ़िए, अच्छी किताबें पढ़िए, धीरे-धीरे पढ़िए, उन्हें ग्रहण कीजिए और मनन कीजिए, तभी आपके लेखन में चमक आएगी। हम चांद की रोशनी में पढ़ते थे, तब जाकर भाषा में स्वतंत्रता आती है।