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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश की सियासी फिजा में चुनावी गर्मी वक्त से पहले ही महसूस की जा रही है। जैसे-जैसे 2026 के पंचायत और 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, सरकार के हर फैसले को विपक्ष जनविरोधी और गरीब विरोधी ठहराने में जुट गया है। भाजपा सरकार जहां खुद को विकास और सुशासन की प्रतीक बताने में व्यस्त है, वहीं समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी जैसे विपक्षी दल नीतिगत फैसलों को आम जनता के खिलाफ बताते हुए आक्रामक तेवर अपना चुके हैं।
शिक्षा नीति पर बवाल: बंद होते स्कूल, खुलते सवाल
हाल ही में राज्य सरकार द्वारा कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने के आदेश ने विपक्ष को एक नया हमला बिंदु दे दिया है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने इसे दलित, मजदूर और गरीब वर्ग के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बताया। वहीं नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इसे सीधे तौर पर बच्चों का भविष्य बंद करना करार दिया। जबकि शिक्षा विभाग द्वारा भेजे गए निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि 20 या उससे कम छात्रों वाले विद्यालयों को चिन्हित कर बंद करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। विपक्षी दल इस नीति को निजी स्कूलों को बढ़ावा देने और सरकारी स्कूलों को योजनाबद्ध तरीके से खत्म करने का षड्यंत्र बता रहे हैं।
बिजली-पानी की किल्लत और विकास के दावों पर सवाल
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूरे प्रदेश में बिजली और पानी की बदहाल स्थिति का मुद्दा उठाया है। उनका दावा है कि वाराणसी जैसे वीआईपी क्षेत्रों में भी चार बार बिजली कटने की खबरें महज 21 मिनट में आई हैं। बांदा जैसे इलाकों में किसानों को जरूरी 550 मेगावाट बिजली के मुकाबले 8 घंटे भी आपूर्ति नहीं हो पा रही। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा सरकार ने कोई नया बिजलीघर नहीं बनाया, बल्कि समाजवादी सरकार द्वारा निर्मित बिजलीघरों को ही आधे मन से चला रही है। इसी असफलता को छुपाने के लिए बिजली व्यवस्था का निजीकरण किया जा रहा है, जिससे लाभ सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को होगा।
आर्थिक नीतियां और रोजगार संकट
अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को आड़े हाथों लेते हुए मैन्युफैक्चरिंग और उत्पादकता में गिरावट का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार आत्मनिर्भरता के नाम पर देश को विदेशी कंपनियों का बाजार बना रही है, जिससे देश के युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा।
इधर कांग्रेस नेता अजय कुमार लल्लू ने शिक्षक भर्ती के मुद्दे पर योगी सरकार की कथित दोगली नीति को उजागर किया। उन्होंने कहा कि सरकार ने अखबारों और सोशल मीडिया पर 2 लाख शिक्षक भर्ती की खबरें चलवाकर जनता को गुमराह किया, फिर उन सभी पोस्ट्स को हटा दिया गया। यह पारदर्शिता की नहीं, बल्कि राजनीतिक चतुराई की मिसाल है।
नदियों की सफाई या फंड की सफाई?
नमामि गंगे योजना को लेकर भी विपक्ष ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। अखिलेश यादव ने कहा कि गंगा जैसी नदियां जीवनदायिनी होती हैं मगर सरकार उनके नाम पर फंड की सफाई में जुटी है। उन्होंने आरोप लगाया कि करोड़ों खर्च होने के बावजूद गंगा आज भी मैली है।
निजीकरण बनाम आरक्षण, सामाजिक न्याय की लड़ाई
बसपा की मुखिया मायावती ने कहा कि बीजेपी राज में गरीबों, मजलूमों और दलितों की सुनवाई नहीं हो रही है। केवल बसपा एक ऐसी पार्टी है, जो दलितों को उनका हक दिलाने का काम करती है।आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने सरकारी क्षेत्रों के निजीकरण को सामाजिक न्याय के खिलाफ करार दिया। उनका कहना है कि इससे अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के अवसर सीमित होते जा रहे हैं। उन्होंने निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की मांग दोहराई। साथ ही उन्होंने स्कूलों में रामायण और वेदों की कार्यशालाओं पर सवाल खड़े करते हुए पूछा कि क्या यह शिक्षा का भगवाकरण नहीं है?
राजनीतिक तैयारी और भविष्य की रणनीति
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे ने 2027 को निर्णायक साल बताते हुए संगठन के पुनर्गठन और पांच स्तरों (जिला, ब्लॉक, मंडल, न्याय पंचायत और बूथ) पर काम करने का आह्वान किया। उनका दावा है कि जनता अब बदलाव चाहती है और कांग्रेस उस बदलाव की आवाज बन सकती है।
अब हर नीति एक चुनावी दांव
उत्तर प्रदेश की राजनीति अब योजनाओं और घोषणाओं से कहीं आगे निकल चुकी है। यहां हर फैसला, चाहे वह प्रशासनिक हो, शैक्षिक हो या आर्थिक। एक राजनीतिक हथियार बन गया है। विपक्ष सरकार की हर नीति को जनविरोधी साबित करने में जुटा है, जबकि सरकार अपने फैसलों को सुधार की दिशा में उठाए गए कदम बता रही है। 2027 का चुनाव सिर्फ वोट का नहीं, विचार, भविष्य और विश्वास का चुनाव होगा।
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