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Crime Story: लखनऊ में बढ़ता अवैध असलहों का नेटवर्क, पुलिस सिर्फ गिरफ्तारी तक सीमित, सफाईकर्मी हत्याकांड ने फिर खोली पोल

लखनऊ में सफाईकर्मी प्रदीप गौतम हत्याकांड ने राजधानी में अवैध असलहों के बढ़ते नेटवर्क की पोल खोल दी है। बीकेटी में हुई हत्या में जिस तरह आसानी से अवैध तमंचा इस्तेमाल हुआ, वह दर्शाता है कि पुलिस की कार्रवाई केवल गिरफ्तारी तक सीमित रह गई है।

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Shishir Patel
illegal arms trade

राजधानी में अवैध असलहों का बोलबाला

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।  राजधानी में सफाईकर्मी प्रदीप गौतम की गोली मारकर की गई हत्या ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि शहर में अवैध असलहों का कारोबार किस कदर गहराई तक फैला हुआ है। बीकेटी क्षेत्र में हुई यह वारदात अकेली नहीं है इससे पहले भी राजधानी में कई बार इन गैरकानूनी हथियारों की गूंज ने पुलिस और कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। पुलिस हर बार गिरफ्तारी तो करती है, मगर तस्करों की जड़ों तक पहुंचना अब भी एक अधूरा सपना बना हुआ है।

तस्करों का नेटवर्क जस का तस

पिछले कुछ वर्षों में पुलिस ने कई बार अवैध असलहों के गिरोह पकड़े हैं, लेकिन हर बड़ी कार्रवाई के बावजूद तस्करी का नेटवर्क और मजबूत होता गया। राजधानी में अब ये असलहे सिर्फ बदमाशों तक सीमित नहीं हैं जमीन कारोबारियों, सफेदपोश अपराधियों और प्रभावशाली लोगों तक इनकी पहुंच है।एटीएस, एसटीएफ और स्थानीय पुलिस ने बीते वर्षों में कई गिरोहों से बड़ी मात्रा में हथियार बरामद किए, मगर इनकी सप्लाई चेन को तोड़ना अब तक संभव नहीं हो पाया है।

मुंगेर से लेकर लखनऊ तक फैला है जाल

जांच एजेंसियों की रिपोर्ट्स के मुताबिक बिहार के मुंगेर, झारखंड और मध्यप्रदेश से आने वाले असलहे यूपी में सबसे ज्यादा खपते हैं। कुछ साल पहले चारबाग में एटीएस ने मुंगेर से लाई गई 11 पिस्टल और एक रिवॉल्वर के साथ चार तस्करों को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में पता चला कि ये लोग आस-पास के जिलों में अवैध हथियारों की सप्लाई करते थे।इतना ही नहीं, कुछ वर्ष पहले नेशनल गन हाउस से चोरी हुए अत्याधुनिक असलहे और कारतूस की बरामदगी ने राजधानी में फैले इस व्यापार की गहराई को उजागर किया था।

चुनावों से लेकर गैंगवार तक हर वारदात में गूंजे अवैध हथियार

लोकसभा चुनावों के दौरान ही पुलिस ने राजधानी से पांच दर्जन से अधिक अवैध असलहे बरामद किए थे। बावजूद इसके, लगातार होने वाले गोलीकांड रुकने का नाम नहीं ले रहे।

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2010 से लेकर 2025 तक की घटनाएं गवाह हैं कि हर बड़े अपराध में इन हथियारों का इस्तेमाल किया गया ।

2011 मे: विकासनगर में सीएमओ डॉ. विनोद आर्या की हत्या में

2014: पीजीआई क्षेत्र में रिटायर्ड फौजी आर.एन. सिंह की गोली मारकर हत्या।

2015: मड़ियांव में सेल्समैन राजेश श्रीवास्तव की हत्या और नरही में सपा पार्षद अतुल यादव उर्फ बंटू की गोली मारकर हत्या।

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2023: भरी अदालत में कुख्यात बदमाश संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा को सरेआम गोली मार दी गई।

2025: बीकेटी में सफाईकर्मी प्रदीप गौतम की हत्या में फिर वही अवैध असलहे इस्तेमाल हुए।

वैध हथियारों के खरीदारों को चिन्हित करने का अभियान ठंडे बस्ते में 

जब लखनऊ कमिश्नरेट नहीं बना तब तत्कालीन एसएसपी राजेश पांडेय ने अवैध हथियारों के खरीदारों को चिन्हित करने का अभियान शुरू किया था, लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद कार्रवाई थम गई। नतीजा तस्करों का कुनबा घटने के बजाय और बढ़ता गया। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक राजधानी में हर महीने औसतन दर्जनों अवैध असलहे बरामद होते हैं, मगर सप्लाई का स्रोत अब भी रहस्य बना हुआ है।

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कब टूटेगा अवैध असलहों का जाल?

सफाईकर्मी प्रदीप गौतम हत्याकांड ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक राजधानी के अपराधी अवैध असलहों के बूते आम लोगों की जान लेते रहेंगे? क्या पुलिस केवल गिरफ्तारी और बरामदगी तक ही सीमित रहेगी, या इस पूरे नेटवर्क की जड़ों तक पहुंचने की ठोस रणनीति बनेगी?। क्योंकि हर बार पुलिस ने किसी न किसी आरोपी को गिरफ्तार कर जांच का दावा किया, मगर असलहों की सप्लाई लाइन अब भी जस की तस बनी हुई है।

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