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निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्रियों के समूह की 10 अक्टूबर को हुई बैठक के मिनट्स सार्वजनिक करके उस पर किसानों, उपभोक्ताओं और कर्मचारियों की राय लेने की मांग की है। समिति ने कहा कि सरकारी बिजली कंपनियों पर मदद के एवज में निजीकरण थोपा जा रहा है। संगठन ने सीएम योगी से निजीकरण रद्द करने की मांग की है।
समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि मुंबई में चार और पांच नवंबर को हो रही डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट मंत्री समूह की बैठक में लिए गए निजीकरण के फैसले पर मुहर लगाने जा रही है। ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन में उच्च पदस्थ आईएएस हैं। यही संस्था निजीकरण में बिचौलिए का काम कर रही है।
समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि मंत्री समूह के फैसले के तहत राज्यों को तीन विकल्प दिए जा रहे हैं। 51 प्रतिशत इक्विटी बेचना, 26 फीसदी इक्विटी बेचकर निजी घरानों का प्रबंधन स्वीकार करना और स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग करना, तीनों ही निजीकरण के विकल्प है।
दुबे कहा कि इन विकल्पों के बाद भी सरकार को निजी कंपनियों को ट्रांजिशन सपोर्ट के नाम पर पांच से सात वर्ष तक सस्ती दरों पर बिजली आपूर्ति करनी पड़ेगी। इसके लिए अरबों रुपए खर्च करने पड़ेंगे। यह अवधि तब तक और बढ़ाई जा सकती है जब तक निजी कंपनियां मुनाफे में न आ जाएं।
संयोजक ने आरोप लागया कि पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और शासन के कुछ बड़े अधिकारी निजी घरानों के साथ मिले हैं। ये सरकार को अंधेरे में रखकर निजीकरण थोपना चाहते हैं। जिससे सरकार पर वित्तीय बोझ भी बढ़ेगा और ​बिजली दरों में बढ़ोत्तरी होगी। दुबे ने बातया कि निजीकरण के खिलाफ 341वें दिन बिजली कर्मियों ने प्रदेश भर में प्रदर्शन जारी रखा।
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