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यूपी पुलिस ।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। यूपी में खाकी वर्दी सिर्फ सुरक्षा और कानून व्यवस्था की पहचान नहीं, बल्कि समाज में भरोसे का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन, जब यही वर्दी अनुशासन और ईमानदारी की जगह दहशत, अवैध वसूली और बेवजह की ताक़त का पर्याय बन जाए, तो सवाल सिर्फ कुछ पुलिसकर्मियों पर नहीं बल्कि पूरे सिस्टम पर उठते हैं।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के समझाने का भी नहीं मिल पा रहा लाभ
वरिष्ठ पुलिस अफसर पुलिस लाइनों की बैठकों में मातहतों को बार-बार समझाते हैं कि वर्दी का इस्तेमाल जनता की रक्षा और न्याय के लिए हो। मगर हकीकत यह है कि अक्सर वही लोग, जिन्हें कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है, कानून को अपने हाथ में लेकर उसकी धज्जियां उड़ाते रहे हैं।
गाजीपुर की घटना से जनता का पुलिस से टूटा भरोसा
गाजीपुर जिले के नोनहरा थाना क्षेत्र में 9 सितंबर को भाजपा कार्यकर्ता सीताराम उपाध्याय पर पुलिस ने कथित रूप से ऐसा बल प्रयोग किया कि 11 सितंबर को उनकी मौत हो गई। मामला तूल पकड़ते ही कप्तान से लेकर एडीजी तक को सफाई देनी पड़ी। एसएसपी गाजीपुर ने जहां आनन-फानन में छह पुलिसकर्मियों को निलंबित किया, वहीं छह अन्य को लाइन हाजिर कर दिया। लेकिन, इस कार्रवाई ने उस दर्द को कम नहीं किया जो उपाध्याय के परिजनों और ग्रामीणों ने झेला।
वर्दीधारियों की करतूत, डकैती का काला सच
यह पहली बार नहीं है जब वर्दी पर दाग लगे हों। 10 मई 2019 को लखनऊ के गोसाईगंज क्षेत्र की ओमेक्स रेजीडेंसी में रहने वाले कोयला व्यापारी अंकित अग्रहरि के घर पुलिस चेकिंग के बहाने पहुंची। लेकिन, हकीकत में यह ‘चेकिंग’ डकैती साबित हुई। आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने दिनदहाड़े घर से 3 करोड़ 80 लाख रुपए लूट लिए। बाद में मुकदमा दर्ज हुआ और दो दरोगा व दो सिपाही गिरफ्तार किए गए।
पुलिस की वसूली का खेल, बिहार बॉर्डर से खुला राज
25 जुलाई 2024, बलिया का भरौली तिराहा। आधी रात, जब ट्रकों से अवैध वसूली चल रही थी, उसी वक्त जींस-टीशर्ट पहने दो लोग मौके पर पहुंचे। वसूली कर रहे पुलिसकर्मियों को अंदाजा नहीं था कि ये दोनों साधारण लोग नहीं, बल्कि एडीजी जोन वाराणसी पीयूष मोर्डिया और डीआईजी आज़मगढ़ वैभव कृष्ण थे। अचानक सच सामने आते ही भगदड़ मच गई। मौके से दो पुलिसकर्मी और 16 दलाल गिरफ्तार हुए। इस खुलासे ने पूरे महकमे को हिला कर रख दिया और तत्कालीन एसपी व एएसपी को उनके पदों से हटा दिया गया।
नतीजा, सुधार की जरूरत या सिर्फ दिखावा
इन घटनाओं से साफ है कि निलंबन, लाइन हाजिरी और कार्रवाई जैसे कदम उठाए तो जाते हैं, लेकिन यह भय पैदा करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। न तो दागी पुलिसकर्मियों को जेल जाने का डर है और न ही नौकरी खोने की चिंता। यही वजह है कि आए दिन खाकी का दामन दागदार हो रहा है।
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