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भाजपा के गले की फांस बने ओम प्रकाश राजभर Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ऐसे नेता हैं जो जिससे जुड़ते हैं, उसके विरोध की राजनीति में अपना नफा नुकसान देखते हैं। बिहार में चुनाव हो रहे हैं और अब राजभर ने एक ऐसा कदम उठा लिया है जो भाजपा के गले की फांस बना हुआ है और जिसका असर यूपी की राजनीति में भी पड़ना तय है। राजभर की सुभासपा बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी और एनडीए के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाएगी। इस क्रम में सुभासपा ने गुरुवार को 47 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित भी कर दिए। सुभासपा का इरादा 153 सीटों पर चुनाव लड़ने का है। यह संभावना तो नहीं दिखती कि कि राजभर को बिहार में कोई सीट मिल पाएगी, लेकिन यदि किसी भी सीट पर राजभर मत उनसे जुड़े तो वहां भाजपा या उसके सहयोगियों को मुश्किल हो सकती है।
दिल्ली में डेरा लेकिन भाजपा नेताओं नेताओं ने भाव न दिया
यूपी में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर को उम्मीद थी कि वह बिहार में भाजपा से कुछ सीटें तो हासिल करने में कामयाब हो ही जाएंगे। इसी उम्मीद में उन्होंने कई दिनों तक दिल्ली में डेरा भी डाला लेकिन कहीं से भी उन्हें रिस्पांस न मिला। वह BJP के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष से मिले। पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास भी गए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी सिफारिश लगाई लेकिन हर जगह उन्हें ठंडा रिस्पांस ही मिला। नेताओं ने साफ कह दिया कि बिहार में भाजपा का जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से गठबंधन है। ऐसे में सुभासपा के लिए कोई जगह नहीं है। निराश राजभर वापस लौट आए और उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। वह कहते हैं कि उनकी ओर से सारे प्रत्याशियों की सूची तैयार है।
दिखा देंगे सुभासपा की ताकत क्या है?
राजभर बिहार में हाल-फिलहाल सक्रिय नहीं हुए हैं। वह पार्टी की ओर से सासाराम व कई अन्य जिलों में रैलियां भी कर चुके हैं। पार्टी के नजदीकी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने BJP से 29 सीटों की मांग की थी लेकिन वह यह भी जानते थे कि इतनी सीटें उन्हें नहीं मिलने वाली। भाजपा यदि चार-पांच सीटों पर भी उन्हें आश्वस्त कर देती तो वह शायद मान जाते लेकिन उन्हें एक भी सीट के लिए सहमति नहीं मिली। हताश हो उन्होंने बयान दिया कि BJP को दिखा देंगे कि सुभासपा के बिना चुनाव में क्या होता है। बिहार में राजभर, रजवार, राजवंशी और राजघोष के लगभग चार प्रतिशत मत हैं और यदि जातीय समीकरणों ने काम किया तो सुभासपा उम्मीदवार कुछ सीटों पर सिरदर्द साबित हो सकते हैं। राजनीति की गहरी समझ रखनेवाले वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानंद त्रिपाठी कहते हैं। राजभर को अपनी ताकत का अहसास है। वह जानते हैं कि सीटें मिले न मिलें लेकिन वोट काटने की क्षमता उनकी बड़ी ताकत है और इसीलिए वह दबाव की राजनीति करते हैं।
बिहार से पहले यूपी में खोल दिया था मोर्चा
ओम प्रकाश राजभर किसी न किसी वजह से चर्चा में हमेशा ही रहते हैं। बिहार चुनाव की घोषणा से पहले ही उन्होंने सामाजिक न्याय समिति को रिपोर्ट को अपना हथियार बनाया था और OBC के 27 फीसदी आरक्षण को तीन वर्गों में विभाजित करने की मांग की थी। इसके लिए उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत सभी दलों के अध्यक्षों को पत्र लिखा था। यह चेतावनी भी दी थी कि यदि उन्हें 15 दिन के भीतर जवाब नहीं मिला तो वह पूरे राज्य में आंदोलन करेंगे। फिलहाल किसी भी दल ने उनके इस पत्र का जवाब नहीं दिया है।
समय के साथ बदलते रहे राजभर
ओम प्रकाश राजभर ने 2017 में BJP के साथ गठबंधन किया था और उनके हिस्से में आठ सीटें आईं थीं। योगी सरकार ने उन्हें पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया था। 2019 को लोकसभी चुनाव में उन्होंने भाजपा से नीता तोड़ा और अकेले चुनाव लड़े लेकिन एक भी सीट न मिली। 2022 के चुनाव में वह SP के साथ लड़े। SP ने उन्हें 16 सीटें दीं जिसमें छह उनकी पार्टी जीती। हालांकि सत्ता के खेल वह फिर BJP के साथ आ गए और योगी सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण और पंचायती राज विभाग की मंत्री बनाया। 2027 के चुनाव में वह किधर जाएंगे, देखना बाकी है।
Om prakash rajbhar | बिहार विधानसभा चुनाव 2025 | बिहार | लखनऊ
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