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Bihar Election 2025: RJD-BJP को बड़ा झटका! ADR रिपोर्ट का खुलासा - 66% विधायकों पर हत्या, रेप के प्रयास के आरोप | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार की राजनीति में 'अपराध' का साया गहराया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ADR की हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि निवर्तमान विधानसभा के 66% यानी 158 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें हत्या, हत्या के प्रयास और महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के आरोपी भी शामिल हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि आखिर कैसे दागी नेता बार-बार चुनावी मैदान में जीत हासिल कर रहे हैं।
आइए Young Bharat News के इस Explainer में यह जानते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर में 'अपराध' की दस्तक क्यों है, साथ ही बिहार के 158 विधायकों पर क्यों लटक रही है तलवार?
बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी तेज है, लेकिन उससे पहले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ADR ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है। यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की एक कड़वी सच्चाई है- जहां कानून बनाने वाले खुद कानून तोड़ने के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
कल्पना कीजिए, जिस विधानसभा में आप उम्मीद की निगाहों से देखते हैं, उसके दो-तिहाई सदस्य किसी न किसी गंभीर आरोप से घिरे हों। ADR की रिपोर्ट बताती है कि 241 विधायकों के हलफनामों के विश्लेषण के बाद यह सामने आया कि 158 विधायकों 66% ने खुद अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। यही वह चौंकाने वाला सच है जिसे जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।
क्या हम अनजाने में अपने वोट से उन लोगों को चुन रहे हैं जिन पर जघन्य अपराधों के आरोप हैं? 'गंभीर' अपराधों का वो अंधेरा पहलू जिसे जनता को जानना चाहिए मामूली केस होना एक बात है, लेकिन जब आरोप 'गंभीर' श्रेणी में आते हैं, तो यह बात गंभीर हो जाती है।
ADR की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 49% यानी 119 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। लेकिन, 'गंभीर' का मतलब क्या? यह वह श्रेणी है जहां सजा 5 साल या उससे अधिक की होती है या गैर-जमानती अपराध शामिल होते हैं। इसमें हत्या, अपहरण, बलात्कार या सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाना जैसे मामले आते हैं।
गंभीर आरोपों की 'क्राइम कुंडली' हत्या: 16 विधायकों पर हत्या का आरोप।
हत्या का प्रयास: 30 विधायकों पर हत्या के प्रयास का केस।
महिलाओं के खिलाफ अपराध: 8 विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध जिसमें बलात्कार के प्रयास तक के आरोप शामिल हो सकते हैं के मामले।
ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं हैं, ये 16 परिवार हो सकते हैं जिन्होंने अपनों को खोया है या वो 8 महिलाएं हो सकती हैं जो न्याय की गुहार लगा रही हैं। यह राजनीति का ऐसा स्याह पक्ष है जिसे अनदेखा करना हमारे समाज के लिए घातक है।
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पार्टी-वार विश्लेषण किस दल के दामन पर सबसे ज्यादा दाग?
अक्सर पार्टियों को यह कहते सुना जाता है कि 'हम साफ-सुथरी राजनीति' करते हैं, लेकिन ADR के आंकड़े किसी एक पार्टी को बरी नहीं करते। यह समस्या हर राजनीतिक दल में गहरे तक पैठी हुई है।
राजनीतिक दल | कुल विधायक जिन्होंने आपराधिक मामले घोषित किए | गंभीर आपराधिक मामलों वाले विधायक |
आरजेडी RJD | 53 | 43 गंभीर मामलों में सबसे आगे |
बीजेपी BJP | 53 | 41 |
जेडीयू JDU | 21 | 13 |
कांग्रेस Congress | 14 | 9 |
सीपीआई एम-एल लिबरेशन | 9 | 7 |
अन्य CPI , AIMIM , निर्दलीय | 8 | 6 |
यहां एक दिलचस्प और खतरनाक ट्रेंड देखिए
आरजेडी और बीजेपी, दोनों ने ही सबसे अधिक विधायकों पर आपराधिक मामले होने की जानकारी दी है। लेकिन जब बात गंभीर मामलों की आती है, तो आरजेडी और बीजेपी में कड़ी टक्कर है। यह दर्शाता है कि राजनीति में 'अपराधीकरण' किसी एक पार्टी की समस्या नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की बीमारी बन चुकी है।
आखिर क्यों जीत जाते हैं दागी नेता? ये हैं 3 बड़ी वजहें
यह सवाल हर जागरूक नागरिक के मन में आता है- आरोप होते हुए भी, इन नेताओं को बार-बार जीत कैसे मिलती है? इसके पीछे कुछ गहरे सामाजिक और राजनीतिक कारण छिपे हैं
धन बल और बाहुबल का गठजोड़ Muscle and Money Power: अक्सर आपराधिक बैकग्राउंड वाले नेता चुनाव में भारी मात्रा में पैसा खर्च करते हैं। तमाम गैरकानूनी तरीकों का इस्तेमाल करके चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं, जिससे साधारण और साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवार अक्सर पीछे छूट जाते हैं।
'जाति समीकरण' और 'क्षेत्रीय दबदबा': बिहार की राजनीति में जाति समीकरण और क्षेत्रीय दबदबा एक सच्चाई है। कई बार मतदाता 'दाग' को नजरअंदाज कर देते हैं, अगर वह नेता उनकी जाति का प्रतिनिधित्व करता हो या उस क्षेत्र में उसका 'दबदबा' इतना हो कि लोग डर या मजबूरी में उसे वोट देते हों।
न्यायिक प्रक्रिया में देरी Slow Justice: हमारे देश की न्यायिक प्रक्रिया बहुत धीमी है। सालों तक मामले लंबित पड़े रहते हैं। जब तक फैसला आता है, तब तक नेता कई चुनाव जीत चुके होते हैं। इस दौरान वे 'दोष सिद्ध' नहीं माने जाते और 'निर्दोष' होने का टैग लगाकर घूमते रहते हैं।
युवाओं और महिलाओं का प्रतिनिधित्व कहां है बिहार?
अपराधीकरण के अलावा, ADR की रिपोर्ट दो और महत्वपूर्ण पहलुओं पर रोशनी डालती है उम्र और लैंगिक प्रतिनिधित्व पर।
बुजुर्गों का बोलबाला: 50% से अधिक विधायक 51 से 80 साल की आयु वर्ग के हैं। केवल 119 विधायक लगभग 50% 25-50 साल के युवा वर्ग में हैं।
इसका मतलब है कि विधानसभा में युवा सोच और नई ऊर्जा का प्रतिनिधित्व कम है।
महिला प्रतिनिधित्व: सिर्फ 12% 243 सदस्यों वाली विधानसभा में केवल 29 विधायक 12% महिलाएं हैं। यह बेहद निराशाजनक आंकड़ा है।
आधी आबादी होने के बावजूद, महिलाओं की भागीदारी इतनी कम क्यों है?: जब महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोपी विधायक सदन में बैठे हों, तो क्या यह महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के मुद्दों पर प्रभावी ढंग से काम कर सकता है? यह एक बड़ा सवाल है।
क्या दागी नेताओं से मुक्ति मिल पाएगी?
ADR की यह रिपोर्ट सिर्फ एक आईना है। असली चुनौती हमारे सामने है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार चुनाव आयोग को दागी उम्मीदवारों के बारे में व्यापक प्रचार करने का निर्देश दिया है, ताकि मतदाता जागरूक हो सकें।
क्या किया जा सकता है? तेज अदालती प्रक्रिया: गंभीर अपराधों से जुड़े नेताओं के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित किए जाएं।
पार्टियों पर दबाव: राजनीतिक दल खुद 'साफ-सुथरी' छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का संकल्प लें।
मतदाता की शक्ति: सबसे बड़ी शक्ति मतदाता के पास है। नेताओं के हलफनामे को ध्यान से पढ़ें और आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को वोट देने से बचें।
जब तक हम, मतदाता इस 'अपराधीकरण' को स्वीकार करना बंद नहीं करेंगे, तब तक लोकतंत्र का यह अंधेरा पक्ष यूं ही बना रहेगा।
बिहार चुनाव है, ऐसे में आपका एक-एक वोट यह तय करेगा कि आप कानून के रक्षक को चुनते हैं या उस पर दाग वाले को। फैसला आपका है।
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