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रक्षाबंधन पर बिजली कर्मियों ने जनता को बताए निजीकरण के नुकसान, पावर कारपोरेशन से पूछे पांच बड़े सवाल

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने वर्चुअल बैठक में पदाधिकारियों ने संकल्प लिया कि जब तक निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया जाता, आंदोलन जारी रहेगा।

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Deepak Yadav
Electricity Privatisation

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। रक्षाबंधन पर्व पर बिजली कर्मचारियों ने आवासीय कॉलोनियों में जनसंपर्क अभियान चलाया। इस दौरान कर्मचारियों ने निजीकरण से होने वाले नुकसान से लोगों को अवगत कराया। इससे पहले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने वर्चुअल बैठक में पदाधिकारियों ने संकल्प लिया कि जब तक निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया जाता, आंदोलन जारी रहेगा। इसके आलवा समिति ने निजीकरण से जुड़े पांच सवाल पावर कारपोरेशन से पूछे।

संघष समिति की ओर से पूछे गए पांच सवाल

1- क्या निजी कॉरपोरेट घरानों की सहूलियत की दृष्टि से निजीकरण के पहले ही बड़े पैमाने पर लगभग 45 प्रतिशत संविदा कर्मियों को हटा  दिया गया है? इसका दुष्परिणाम यह रहा कि भीषण गर्मी में अनुभवी संविदा कर्मियों को हटाए जाने से  बिजली आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई और हो रही है, जिसका उल्लेख ऊर्जा मंत्री को भी करना पड़ा है। क्या प्रबन्धन बिजली व्यवस्था बिगाड़ कर प्रदेश की जनता पर  निजीकरण थोपना चाहता है?

2- क्या निजी घरानों को बेचने के पहले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की परिसंपत्तियों का मूल्यांकन किया गया है? यदि हां तो इसे सार्वजनिक किया जाय, क्योंकि यह जनता की परिसंपत्तियों हैं।

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3- पावर कारपोरेशन कह रहा है कि निजीकरण इसलिए किया जा रहा है क्योंकि घाटा बढ़ता जा रहा है और घाटे की भरपाई के लिए सरकार को सब्सिडी एवं लास फंड देना पड़ रहा है जो बढ़ता ही जा रहा है और जिस बोझ को अब आगे सरकार वहन नहीं कर सकती। सब्सिडी को घाटा बताना और घाटे में जोड़ना एक बहुत गंभीर बात है। भाजपा ने 2017 में जारी किए गए अपने संकल्प पत्र में लिखा था कि गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों को मात्र तीन रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली दी जाएगी। इसकी सब्सिडी देना सरकार की बाध्यता है। सवाल है कि पावर कारपोरेशन स्पष्ट करे कि क्या निजीकरण के बाद सरकार सब्सिडी की धनराशि नहीं देगी? यदि निजीकरण के बाद सरकार सब्सिडी की धनराशि देगी तो सरकारी क्षेत्र को यह धनराशि देना बोझ कैसे हो गया है?

4-  इक्यावन प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर निजीकरण करने से क्या सुधार की गारंटी है? उड़ीसा में 1999 में बिजली का निजीकरण किया गया था और चार कंपनियां बनाकर उसे निजी घरानों को सोपा गया था। यह प्रयोग पूरी तरह विफल हो गया और 2015 में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने रिलायंस के सभी विद्युत वितरण निगमों का लाइसेंस पूरी तरह अक्षम रहने के कारण रद्द कर दिया। कोरोना काल में उड़ीसा में टाटा पावर को चारों विद्युत कंपनियों का काम सौंपा गया। विगत 15 जुलाई को उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए टाटा पावर को बहुत खराब परफॉर्मेंस के चलते नोटिस जारी किया। टाटा पावर कोई संतोष जवाब नहीं दे पाया। अब उड़ीसा का विद्युत नियामक आयोग टाटा पावर के परफॉर्मेंस पर जनसुनवाई कर रहा है। सवाल है कि बिना सोचे समझे उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों का निजीकरण कर क्या उत्तर प्रदेश को उड़ीसा जैसे हालात में नहीं झोंका जा रहा है?

5- ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने ट्वीट किया है कि 2017 में 41 प्रतिशत ए टी एंड सी हानियों से घटकर 2024 में 16.5 प्रतिशत रह गई हैं। यह उत्तर प्रदेश में बिजली सेक्टर में बड़ा सुधार है। सवाल है कि ऊर्जा मंत्री इतने बड़े सुधार का दावा कर रहे हैं जो आंकड़ों की दृष्टि से सही भी है तो किस अन्य (?) सुधार के लिए उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों का एक साथ निजीकरण किया जा रहा है?

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