लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। शिक्षक जागरूक हों तो बच्चे की परेशानियों को भांप सकते हैं और कौशल को भी पहचान सकते हैं। स्कूलों में सैकड़ों बच्चों के बीच यह पहचान पाना मुश्किल है कि कौन सा बच्चा समय के साथ चल रहा है और कौन पिछड़ रहा है। सेठ आनंदराम जयपुरिया ग्रुप ऑफ स्कूल्स ने अपने स्कूलों में पांचवीं तक के छात्र-छात्राओं के लिए लेक्साइल प्रोग्राम की शुरुआत की है। इसके जरिए बच्चों में पढ़ने की क्षमता में किसी तरह की कमी की पहचान की जाती है और उसमें सुधार के लिए कदम उठाए जाते हैं।
बच्चों की पढ़ाई क्षमता का चलेगा पता
शिक्षकों को जैपुरिया एनुअल ट्रेनिंग के दौरान बताया गया कि कैसे लेक्साइल प्रोग्राम में बच्चों का आकलन किया जा सकता है। करीब 300 शिक्षकों को इस प्रोग्राम के अलावा नई तकनीक को लेकर भी प्रशिक्षित किया गया। लेक्साइल प्रोग्राम वो तरीका है, जिसमें बच्चों को रीडिंग के जरिए उनकी स्थिति और समझ को परखा जाता है। कोई बच्चा क्लास में पिछड़ रहा हो तो शिक्षक को भनक लग जाएगी और फिर उस बच्चे पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा। अगले दो सालों में प्रोग्राम को आठवीं तक के बच्चों तक ले जाने की तैयारी है। पिछले तीन सालों से चल रहे शिक्षकों के सालाना प्रशिक्षण का ये चौथा साल है। इसमें शिक्षकों के लिए विषय केंद्रित सत्र के साथ-साथ में पीओएसएच (प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट) और पीओसीएसओ (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फॉर्म सेक्सुअल ऑफसेंस एक्ट) जैसे विषयों पर भी सेशन रखा गया।
प्रगतिशील शिक्षा के लिए टीचरों का प्रशिक्षण जरुरी
इस मौके पर मौजूद आईआरएस अधिकारी राघव गुप्ता ने कहा कि प्रगतिशील शिक्षा की दिशा में यह एक अहम कदम है। ग्रुप के आईटी निदेशक हरीश संदुजा ने कहा कि भविष्य के निर्माण के लिए शिक्षकों में ज्ञान-विज्ञान और बदलावों को पहुंचाने की कोशिश के परिणाम हमारे स्कूलों में भी दिख रहे हैं। शिखा बनर्जी ने कहा कि यह पहल शिक्षक, शिक्षण, नेटवर्किंग और पेशेवर विकास के लिए एक मंच बन गई है। तरुण चावला ने कहा कि शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने में ट्रेनिंग एक अहम कड़ी है।
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