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मध्यांचल के दो निदेशकों ने दिया इस्तीफा Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। ऊर्जा विभाग में कुछ भी ठीक नहीं चला रहा है। बिजली निजीकरण के खिलाफ जहां प्रदेश भर में कार्मिकों का विरोध जारी है। वहीं प्रचंड गर्मी में बिजली संकट के बीच मध्यांचल के दो निदेशकों ने इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले 12 से ज्यादा मुख्य अभियंता वॉलंटरी रिटायरमेंट (वीआरएस) ले चुके हैं। दो नए निदेशकों ने अभी तक चार्ज नहीं लिया। एक निदेशक को तीन बार सेवा विस्तार दिया गया। अब पावर कारपोरेशन ने 15 निदेशकों की नियुक्ति लिए विज्ञापन जारी किया है। इसमें मध्यांचल में इस्तीफा से रिक्त हुए दो पद भी शामिल हैं। विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इसके लिए पावर कारपोरेशन को जिम्मेदार ठहरते हुए मुख्यमंत्री से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
ब्रेकडाउन से बिजली व्यवस्था पटरी से उतरी
परिषद ने कहा कि प्रदेश में लोकल ब्रेकडाउन के चलते बिजली व्यवस्था पटरी से उतर गई है। इस बीच मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के निदेशक कार्मिक विकास चंद्र अग्रवाल और वित्त मनोज बंसल ने इस्तीफा दे दिया। इससे पहले पावर कॉरपोरेशन में निदेशक (वित्त) के तौर पर चयनित पुरुषोत्तम अग्रवाल और दक्षिणांचल में निदेशक (वित्त) ने ज्वाइन करने से इनकार कर दिया था।
निदेशक के सेवा विस्तार पर परिषद ने उठाए सवाल
परिषद के मुताबिक, 1959 में बने राज्य विद्युत परिषद को विघटित पांच बिजली वितरण कंपनियां बनीं। पावर कारपोरेशन इन सभी को तबाह करने पद आमादा है। इसके लिए वह निजी घरानों के लिए रेड कारपेट बिछाने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में पावर कारपोरेशन प्रबंधन की कार्य प्रणाली पर उच्च स्तरीय जांच कराया जाना बहुत जरूरी है। परिषद ने निदेशक वित्त निधि कुमार नारंग को तीन बार सेवा विस्तार देने पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा बिजली के निजीकरण के लिए किया गया है।
बिजली आपूर्ति पटरी पर लाने में प्रबंधन नाकाम
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन प्रबंधन बेपटरी हुई बिजली आपूर्ति को पटरी पर लाने के बजाय निजी घरानों के लिए रेड कार्पेट बिछाने में लगा है। उन्होंने कहा कि निदेशक स्तर के अधिकारियों के नौकरी छोड़ने से यह साफ है कि बिजली संकट को संभालने में उनकी दिलचस्पी नहीं है। बल्कि वह पावर कारपोरेशन प्रबंधन के गड़बड़झाले से खुद को बचाने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि विद्युत सेवा में तब सुधार नहीं हो रहा, जब आरडीएसएस योजना में 44000 करोड़ से ज्यादा का खर्च करके बड़े पैमाने पर ट्रांसफार्मर, एबीसी कंडक्टर और सिस्टम पर काम किया गया है। फिर भी ब्रेकडाउन लगातार बढ़ रहे हैं।
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