लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। कभी यूपी की राजनीति की धुरी कही जाने वाली कांग्रेस, आज खुद यूपी में हाशिए पर है। उत्तर प्रदेश के पिछले पांच विधानसभा चुनावों की बात करें तो पार्टी कुल 84 सीटें ही जीत सकी है। इससे प्रदेश में पार्टी की स्थिति का आकलन करना मुश्किल नहीं है। बात चाहे विधानसभा चुनाव की हो या लोकसभा चुनाव की, तमाम गठबंधन से लेकर अकेले चुनाव लड़ने के बाद भी आंकड़े कभी कांग्रेस के लिए खुशगवार नहीं रहे। नेहरू-गांधी परिवार का अब यूपी में कितना जादू बचा है? यह किसी से छिपा नहीं है।
सपा के बजाए कांग्रेस के साथ आएं मुस्लिम
वर्तमान की बात करें तो कांग्रेस फिलहाल यूपी में दो पहलुओं पर काम करती दिखाई दे रही है। पहला तो यह कि मुस्लिम मतदाता, समाजवादी पार्टी(samajwadi party) की ओर जाने के बजाए उसके पाले में आएं। वह मुस्लिमों को विश्वास दिलाना चाहती है कि समाजवादी पार्टी की तुलना में वह मुस्लिमों के हितों की अधिक रक्षा कर सकती है। इस मोर्चे पर कांग्रेस ने सहारनपुर से पार्टी सांसद इमरान मसूद को मोर्चे पर लगा रखा है। वह जमकर समाजवादी पार्टी पर सियासी हमले कर रहे हैं। अब्दुल केवल दरी नहीं बिछाएग... हम कोई भिखारी हैं जो समाजवादी पार्टी से भीख मांगेगे... 80-17 का फॉर्मूला नहीं चलेगा...मुसलमानों का वोट चाहिए तो मुसलमानों के मसले पर बोलना भी होगा... ये चंद सियासी हमले हैं, जो इमरान मसूद ने समाजवादी पार्टी पर किए हैं।
अब पर्दे के पीछे की रणनीति समझिए। पश्चिमी यूपी की 77 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिनमें मुस्लिम आबादी लगभग 26 प्रतिशत है। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश है कि सहारनपुर से सांसद इमरान मसूद(imran masood) के जरिए वह मुस्लिमों को सपा के खेमे में जाने से रोके और अगर ऐसा नहीं भी हो पाता है तो कम से कम समाजवादी पार्टी पर इतना दबाव तो बना ही सके कि वह गठबंधन होने पर कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें दे।
मंदिरों पर कब्जे का आरोप लगा हिंदुओं को लुभाने की कोशिश
दूसरी तरफ पार्टी हिंदू वोटर को भी यह संदेश नहीं देना चाहती कि वह केवल मुस्लिम हितों की बात करती है। इसलिए उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय को कमान दे रखी है। अजय राय प्रदेश की योगी सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर सियासी हमले करते नजर आते हैं। बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर स्थानीय लोगों का विरोध जारी है। ऐसे में आजकल अजय राय उसे पूरी हवा देने में लगे हैं। साथ ही भाजपा सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि यह लोग अयोध्या और काशी के बाद बांके बिहारी मंदिर पर भी कब्जा करने के प्रयास में है। साथ ही वह पहले बने कॉरिडोर के बाद उपजे स्थानीय लोगों के रोष को अभी भी कुरेदते रहते हैं। कांग्रेस ऐसा करके हिंदुओं को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश में है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय का अपना भी एक जनाधार है, साथ ही जातिगत समीकरण भी उन्हें मजबूती देते हैं। ऐसे में वह भी पूरी ताकत से प्रदेश में 'पंजे' को पुनर्जीवित करने की कोशिश में हैं।
...लेकिन पंचायत चुनाव अलग क्यों लड़ रहीं सपा-कांग्रेस
सियासत में पुरानी कहावत है कि राजनीति में न कोई स्थायी शत्रु होता है और न कोई स्थायी मित्र। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भले कह चुके हों कि कांग्रेस और सपा पंचायत चुनाव अलग-अलग और विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ेंगे। लेकिन सपा ने अभी तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। वहीं, राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दोनों ही दल पंचायत चुनाव के बहाने अपनी जमीनी हैसियत का आकलन करना चाहते हैं, इसलिए अलग-अलग लड़ने का फैसला किया है, ताकि नतीजों के बाद विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले गठबंधन का मोलभाव नफा-नुकसान देखकर किया जा सके।
इस बारे में लखनऊ की राजनीति पर करीब तीन दशकों का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल का कहना है कि अखिलेश यादव(akhilesh yadav) लोकसभा चुनावों के परिणाम से काफी उत्साह में हैं और उन्हें लग रहा है कि पंचायत चुनाव में अधिक से अधिक सीटों पर जीत, उनके लिए 2027 की राह आसान करेगी। यही कारण है कि वह पंचायत चुनाव के दंगल में अकेले जाना चाहते थे और वह यही कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस के साथ पंचायत चुनाव में अकेले जाना उसकी मजबूरी भी है, क्योंकि फिलहाल उसके पास यूपी में सपा के अलावा कोई मजबूत साथी भी नहीं है।
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