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प्रतीकात्मक Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा में 35 साल पुराने जातीय संघर्ष में आरोपित 32 दोषियों की जमानत स्वीकार कर ली है। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकलपीठ ने यह आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्तों को रिहाई की तारीख से 15 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि जमा करनी होगी।
गवाहों के बयानों में विरोधाभास
अपीलार्थी जयदेव व 31 अन्य की तरफ से अधिवक्ता राजीव लोचन शुक्ला ने झूठा फंसाए जाने की बात कही। तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष की ओर से लगभग 27 गवाहों से पूछताछ की गई है लेकिन उनके बयानों में विरोधाभास हैं, जिस पर सत्र अदालत ने विचार नहीं किया। अधिकांश अपीलकर्ता 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं। निचली अदालत ने साक्ष्यों को गलत पढ़ा और अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया। हालांकि अभियोजन भी मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
जमानत पर रिहा किए जाने के पात्र
कोर्ट को बताया गया कि अपीलार्थी मुकदमे के दौरान जमानत पर थे और उन्होंने किसी भी स्तर पर स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया। सभी 28 मई, 2025 से जेल में हैं। भविष्य में अपील की शीघ्र सुनवाई की कोई संभावना नहीं है, इसलिए अपील के लंबित रहने तक जमानत पर रिहा किए जाने के पात्र हैं। कोर्ट ने कहा कि अपीलार्थी संख्या 21 देवी सिंह को चार अगस्त 2025 के आदेश द्वारा अल्पकालिक जमानत पर रिहा कर दिया गया है। लगभग 95 वर्षीय देवी सिंह आगरा के जेल अस्पताल में भर्ती हैं। कोर्ट ने कहा, 'यह ध्यान में रखते हुए कि अपील के अंतिम निपटारे में कुछ समय लग सकता है, मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।'
हाईकोर्ट में बारावफात की छुट्टी पांच सितंबर को
इलाहाबाद हाईकोर्ट में पांच सितंबर को बारावफात का अवकाश घोषित किया गया है। इसके बदले 15 नवंबर शनिवार को कोर्ट खुलेगा। इससे पहले 6 सितंबर शनिवार को बारावफात का अवकाश था। इस दिन हाईकोर्ट कार्यालय खुला रहेगा। यह प्रयागराज स्थित प्रधान पीठ व लखनऊ खंडपीठ में लागू होगा। इसकी अधिसूचना राजीव भारती महानिबंधक ने जारी की है।
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