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स्मार्ट मीटर लगाने वाली निजी कंपनी ने बिजली विभाग का लगाया करोड़ों का चूना Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने वाली निजी कंपनियां बिजली विभाग को वित्तीय झटका दे रही हैं। मीटर लगाने का टेंडर जिन चार कंपनियों को दिया गया है, उनमें से पोलरिस कंपनी का भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। प्रीपेड मीटर का टेंडर 8500 करोड़ अधिक दर पर होने के बावजूद इस कंपनी ने पुराने मीटरों की रीडिंग शून्य कर विभाग को करोड़ों रुपये का चूना लगाया है। इस मामले में सीतापुर में कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। जबकि गोंडा में मुख्य अभियंता ने नोटिस का जवाब नहीं देने पर अधिकारियों को कंपनी पर मुकदमा दर्ज कराने का निर्देश दिया है।
निजी कंपनियों को 27342 करोड़ का ठेका
देश की निजी कंपनियों को लगभग 27342 करोड़ रुपये का ठेका प्रदेश में प्रीपेड मीटर लगाने के लिए दिया गया है। इसमें पोलरिस कंपनी को मध्यांचल विद्युत वितरण निगम में लगभग 5200 करोड़ का टेंडर मिला है। कंपनी के कर्मचारी और पेटी कांट्रैक्टर व मीटर लगाने वाले वेंडरों ने नए मीटर लगाए और पुराने मीटरों की रीडिंग शून्य कर दी। इतना ही कंपनी ने विभाग को बड़े पैमाने पर पुराने मीटर नहीं दिए। इस मामले में बिजली विभाग ने पोलरिस के राज्य प्रमुख, जोनल प्रोजेक्ट मैनेजर व अन्य कार्मिकों के खिलाफ सीतापुर में एफआईआर दर्ज कराई है। कंपनी पर आरोप लगाया कि 443 पुराने मीटर विद्युत परीक्षण खंड सीतापुर में जमा नहीं कराए। जिससे उपभोक्ताओं के मासिक बिल जारी नहीं हुए।
कंपनी ने 4270 मीटर नहीं किए जमा
इसके आलावा गोंडा में भी इस कंपनी ने पुराने मीटर के सीलिंग सर्टिफिकेट में रीडिंग जीरो दर्ज कर दी। इससे करोड़ों रुपये का नुकसान बिजली विभाग का होना तय है। इतना ही नहीं स्मार्ट प्रीपेड मीटर का कोई पुराना लेखा-जोख विभाग को नहीं दिया। ऐसे में उपभोक्ताओं को नया मीटर लगने के बाद बिजली बिल नहीं मिल रहे हैं। गोंडा में पोलरिस कंपनी ने 4270 मीटर जमा नहीं किए। इस पर मुख्य अभियंता ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश अफसरों को दिए हैं।
प्रदेश भर में चल रहा निजी कंपनियों का खेल
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा निजी कंपनियों का ये खेल पूरे प्रदेश में चल रहा है। अधिकारियों को केवल स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने की जल्दीबाजी है। उन्होंने कहा कि भविष्य में स्मार्ट प्रीपेड मीटर की वजह से बिजली कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। पहले ही स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर को लगभग 85 से 100 करोड़ अधिक दरों पर दिया गया। अब इस भ्रष्टाचार बिजली कंपनियों की वित्तीय स्थिति और बिगड़ जाएगी।
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