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UP News : मायावती का मास्टर प्लान, बिहार में 'वोट काटो' और 'खेल' करो

मायावती ने बिहार की सभी सीटों की जिम्मेदारी अपने भतीजे व राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद को सौंपी है, जो एक तरह से उनका लिटमस टेस्ट भी होगा। बसपा की मौजूदगी से इंडिया गठबंधन की पेशानी पर तो बल पड़ेंगे ही, एनडीए को भी कुछ सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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Vivek Srivastav
01 sep 3

मायावती व आकाश आनंद का फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। वैसे तो बिहार की पॉलिटिक्स में बहुजन समाज पार्टी का प्रत्यक्षतः कुछ खास रोल नहीं दिखता, लेकिन पिछले दो चुनावों को केंद्र में रखें, तो यह साफ नजर आता है कि अपने सीमित वोट बैंक के सहारे ही यह पार्टी बड़ा खेल करने की तैयारी में है। बसपा प्रमुख मायावती का यह ऐलान कि उनकी पार्टी बिहार में अकेले चुनाव लड़ने जा रही है, ही उनका मास्टर स्ट्रोक है, जिससे इंडिया गठबंधन के नेताओं की पेशानी पर तो बल पड़ेंगे ही, एनडीए को भी कुछ सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। मायावती ने बिहार की सभी 243 सीटों की जिम्मेदारी अपने भतीजे और हाल ही में राष्ट्रीय संयोजक बनाए गए आकाश आनंद को सौंपी है, जो एक तरह से उनका लिटमस टेस्ट भी होगा।

'वोटकटवा' बन अपनी कीमत जताएंगी मायावती

मायावती(Mayawati) ने बिहार में एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। चुनाव के रूप में उन्हें अपने संगठन को विस्तार देने का अवसर मिला है, जिसका वह भरपूर फायदा उठाने की कोशिश में हैं। पार्टी का राष्ट्रीय स्वरूप बनाए रखने के लिए भी उनका बिहार में चुनाव उतरना जरूरी है। बिहार में दलित राजनीति करने वाले कई नेता हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि  BSP Chief Mayawati मायावती की छवि दलितों के सबसे बड़े नेता के रूप में है और वह हर सीट पर कुछ न कुछ मतों की हिस्सेदारी करने में सफल हो सकती हैं। इसका असर इंडिया और एनडीए के बैनर तले चुनाव लड़ रहे नेताओं के परिणाम पर दिख सकता है, क्योंकि इन दोनों गठबंधनों ने भी दलित मतों पर निगाहें गड़ा रखी हैं। बसपा प्रत्याशियों ने अधिक वोट काटे, तो वे परिणाम को अप्रत्याशित स्थिति की ओर ले जा सकते हैं। अकेले चुनाव लड़ने के उनके इरादों ने यह भी साफ कर दिया है कि दूसरे छोटे दलों के साथ मिलकर थर्ड फ्रंट की संभावना में उनकी कोई रुचि नहीं है। 

इंडिया गठबंधन और एनडीए के लिए खड़ी होगी मुश्किल

बसपा की रणनीति दलित और पिछड़े मतों के सहारे बिहार की राजनीति में आगे बढ़ने की है। इस संभावना से इन्कार नहीं का जा सकता है कि इस बार मायावती बिहार में पिछड़ों को टिकट देने में तरजीह दें। बिहार में दलित वर्ग की आबादी 17 प्रतिशत से अधिक है और इसमें पासवान, रविदास आदि जातियां शामिल हैं। इनमें रविदास समुदाय का झुकाव मायावती की ओर अधिक रहा है और यही वजह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 1.49 प्रतिशत वोट शेयर किए थे। बिहार की राजनीति समझने वालों का मानना है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने अपनी एकजुटता जरूर दिखाई है, लेकिन मायावती का अकेले चुनाव लड़ना उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि राजग के लिए भी थोड़ी मुश्किल खड़ी होगी। एनडीए में चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं से दलित मतों को खींचने की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन बसपा इसमें सेंध लगाने में कामयाब हो सकती है। 

2015 में बसपा को मिले थे 2.07 प्रतिशत वोट

बिहार में 2015 के चुनाव में बसपा ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और रविदास समुदाय के लोगों को अपनी ओर खींचने में सफल रही थी। अति पिछड़ा वर्ग के वोट भी उसे हासिल हुए थे जिसके सहारे वह 2.07 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट व अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था और 80 सीटों पर चुनाव लड़ा था। बसपा को एकमात्र सीट चैनपुर में मिली थी हालांकि उसके प्रत्याशी मोहम्मद जमा खान बाद में जदयू में शामिल हो गए थे।

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