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पूजा पाल और उनके पति की फाइल फोटो। इनसेट में माफिया अतीक अहमद की फाइल फोटो। Photograph: (सोशल मीडिया)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विधानसभा के मानसून सत्र में लगातार हुई 24 घंटे की चर्चा में वैसे तो कई मुद्दे उठे, लेकिन सबसे अधिक सुर्खियां बटोरने वाली चायल की विधायकत पूजा पाल का अगला कदम क्या होगा, सबकी निगाहें अब इस पर हैं। सदन में योगी(CM Yogi Adityanath) की तारीफ के बाद आनन-फानन सपा से निलंबित किए जाने के बाद पूजा पाल अब विधानसभा में किसी भी दल की सदस्य नहीं रह गई हैं। वे सपा से बाहर हैं और तकनीकी रूप से उन्हें असंबद्ध श्रेणी में माना जाएगा। उनसे पहले सपा के ही तीन और विधायक मनोज पांडे, अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह असंबद्ध श्रेणी में रखे जा चुके हैं। असंबद्ध विधायकों पर पार्टी का कोई भी व्हिप लागू नहीं होता और वे न ही इसे मानने के लिए बाध्य होते हैं।
पूजा पाल के लिए खुले हैं दो विकल्प
पूजा पाल अब खुलकर भाजपा के पक्ष में बोल रही हैं और वे प्रदेश की कानून व्यवस्था के उस मुद्दे को उठा रही हैं जो प्रत्यक्ष रूप से प्रदेश में भाजपा और योगी सरकार का नैरेटिव रहा है। हालांकि वह भाजपा में अभी शामिल नहीं हो सकतीं। ऐसे में दल बदल कानून और विधायी सवाल खड़े होते हैं। ऐसे में पूजा पाल के लिए पहला विकल्प यही है कि वह असंबद्ध सदस्य के रूप में भाजपा को समर्थन देती रहें और जिस तरह से सपा से पूर्व में निष्काषित तीनों विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष ने असंबद्ध की मान्यता दी है, उन्हें भी विधानसभा की सदस्यता जारी रखने के लिए उसी ग्रुप में शामिल किया जाए। दूसरा विकल्प यह है कि वह सदन की सदस्यता से इस्तीफा देकर औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हों। ऐसे में चायल से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का विकल्प खुला रहेगा।
माफिया बनाम न्याय की लड़ाई
पूजा पाल ने समाजवादी पार्टी( samajwadi party ) के प्रति आक्रामक रुख अपनाया है तो इसके पीछे सुनियोजित ढंग से क्षेत्रीय जनता की अधिक से अधिक संवेदना हासिल करने का उद्देश्य है। अपने पति के हत्यारों के खिलाफ अडिग संघर्ष, अंत में अतीक और अशरफ का मारा जाना न्याय की लड़ाई में जीत का संदेश है जो उन्हें भावनात्मक रूप से लोगों का समर्थन देता है। दो लोग प्रयागराज करे शहर पश्चिमी और कौशांबी की राजनीतिक जमीन से नहीं परिचित हैं, उन्हें यह जानना रुचिकर लगेगा कि वहां दलीय प्रतिबद्धताओं के साथ जातीय गुटबंदी का एक बड़ा पहलू तो है ही। अतीक का वर्चस्व और लंबे समय तक उसके आतंक के साये में दमित जीवन गुजारने वालों का एक बड़ा समूह भी है जो चुनाव में मायने रखता है। इसी का लाभ पूजा पाल को मिलता रहा है और जाहिर है कि पूजा पाल का दलित होना भाजपा के लिए भी राजनीतिक रूप से मायने रखता है।
अतीक के विरोध ने ही मजबूत की थी राजू पाल की बुनियाद
थोड़ा पीछे जाएं लगभग 2000 के आसपास की बातें करें तो उस समय प्रयागराज और कौशांबी में अतीक का इतना बोलबाला था कि कोई उसके गिरोह के खिलाफ चूं करने की हिम्मत भी नहीं करता था। ऐसे समय में अतीक के विरोध ने ही राजू पाल को उसकी पाल बिरादरी में हीरो मान लिया था। तब पूजा पाल से उसकी शादी नहीं हुई थी। राजू पाल को हिंदुओं के एक बड़ा वर्ग का समर्थन भी मिलता था और यही वजह थी कि गैंगस्टर होने के बावजूद बसपा प्रमुख मायावती ने उसे अतीक के खिलाफ तलवार के रूप में इस्तेमाल किया था। राजू पाल की हत्या के बाद ऐसे ही लोगों के समर्थन से पूजा पाल तीन बार विधायक बनीं और माफिया के खिलाफ संघर्ष के बड़े प्रतीक के रूप में उभरी। अब इसी भावनात्मक पक्ष को पूजा पाल अपने हित में करना चाहती हैं और यह जहां अपने हित में करना चाहती हैं और यह जहां भाजपा को सूट करता है, वहां सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी को थोड़ा-बहुत नुकसान पहुंचान वाला है।
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