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UP Politics : चुनावी मैदान में किसके लिये खेल रहीं मायावती

UP Politics : लखनऊ में हुई एक रैली ने बसपा नेताओं की बाडी लैंग्वैज बदलकर रख दी है। गुरुवार को पार्टी कार्यालय में बुलाई गई पदाधिकारियों की बैठक में भी मायावती जिस जोश के साथ शामिल हुईं, वह भी उनके बदलते तेवर को दर्शाता है।

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HARI SHANKAR MISHRA
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चुनावी मैदान में किसके लिये खेल रहीं मायावती Photograph: (x)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।यह तो तय है कि बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश में 2027 में होने जा रहे चुनाव में बड़ा खेल करेंगी, लेकिन किसके लिये करेंगी, यह बड़ा सवाल है। उनके निशाने पर कौन होगा और क्यों होगा?  एक बड़ी रैली के बाद मायावती ने लखनऊ में बुलाई गई बैठक में एक बार फिर सपा और कांग्रेस को ही निशाने पर लिया है तो यह भी सोचना पड़ेगा कि आखिर इससे फायदा किसको पहुंचने जा रहा है। कह सकते हैं कि भाजपा को लेकिन बसपा कुछ अपनी भी संभावनाएं देख रही हैं। हाल के कुछ वर्षों में दलितों का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस से और थोड़ा बहुत सपा से जुड़ा है। मायावती सपा के पीडीए और कांग्रेस में सेंध लगाकर आगे बढ़ना चाहती हैं। 

बदल रही बसपा नेताओं की बॉडी लैंग्वेज

बात करें 2007 की यानी कि अब से 18-19 साल पीछे की तो उस समय बसपा में ऐसा ही उत्साह देखने को मिल रहा था, जैसा कि अब देखने को मिल रहा है। लखनऊ में हुई एक रैली ने बसपा नेताओं की बाडी लैंग्वैज बदलकर रख दी है। गुरुवार को पार्टी कार्यालय में बुलाई गई पदाधिकारियों की बैठक में भी मायावती जिस जोश के साथ शामिल हुईं, वह भी उनके बदलते तेवर को दर्शाता है। तय है कि वह मैदान के बाहर खड़ी दिखाई देने को तैयार नहीं, बल्कि एक योद्धा के रूप में बराबर के युद्ध के लिए तैयार हैं। तो क्या होगी 2027 के युद्ध में बसपा की रणनीति? यह अब थोड़ा-थोड़ा स्पष्ट होने लगा है। मायावती आक्रामक तेवर के साथ मैदान में आन चाहती हैं ताकि सपा, भाजपा और कांग्रेस से निराश नेताओं को वह प्रथम विकल्प के रूप में दिखाई दें।

संदेश दे दिया है कि चुनावी रथ पर कौन सवार होंगे

लखनऊ में उमड़ी भीड़ ने बसपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त दे दी है और यही वजह है कि मायावती आनन-फानन एक्शन मोड में आईं। रैली के दो दिन बाद ही उन्होंने अपनी रणनीति की समीक्षा की और सभी मंडलों में दो टोलियां तैनात करने के निर्देश दिए। बसपा का गणित सीधा सा है, बूथों को मजबूत करो और सभी जातियों को जोड़ो। भाई चारा समितियां ही जीत की राह पर ले जा सकती हैं। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में इन समितियों ने ही बड़ी भूमिका निभाई थी। अपनी महत्वपूर्ण बैठक में उन्होंने इस बार भी इसी नीति पर चलने को कहा है। लखनऊ की रैली में भी मंच पर छह कुर्सियां लगवाईं थी और उन पर सतीश चंद्र मिश्र के रूप में ब्राह्मण, मुनकाद अली के रूप में मुस्लिम, विश्वनाथ पाल के रूप में पिछड़े और उमाशंकर सिंह के रूप में एक क्षत्रिय को सम्मान देकर यह संदेश दे दिया था कि उनके चुनावी रथ के सारथी कौन होंगे। 

हर सवाल के जवाब मायावती के पास

पदाधिकारियों की इस बैठक में मायावती के संदेश साफ थे। बसपा सपा और कांग्रेस पर हमलावर रहेगी। सवाल उठते हैं कि इससे विपक्ष के इन आरोपों को बल मिलेगा कि बसपा भाजपा की बी टीम के रूप में काम कर रही है। मायावती सवालों की परवाह नहीं करतीं और हर सवालों के जवाब भी उनके पास होते हैं। इसीलिए उन्होंने बैठक में एक बार फिर स्मारकों के रखरखाव के मुद्दे को उठाया और सपा पर उनकी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए यह तर्क दिया कि उन्होंने राजनीतिक ईमानदारी के तहत भाजपा सरकार का धन्यवाद दिया। तय है कि दलितों को एकजुट करने के लिए अगले चुनाव में भाजपा अपना यह अस्त्र फिर निकालेगी। बैठक में ही जिलों के नाम बदलने का मुद्दा भी उठा और यह भी चुनाव में बसपा के मंच से गूंजता दिखाई देगा। 

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यह है भाजपा की रणनीतिक ताकत

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या चुनाव जीतने के लिए बसपा के पास सिर्फ यही राह है। वस्तुतः बसपा ने इनके बहाने जमीन तैयार करनी शुरू की है। इस बैठक में नेशनल कोआर्डिनेटर और मायावती के भतीजे भले ही नहीं शामिल हो सके, लेकिन उनके नेतृत्व में यूथ ब्रिगेड आक्रामक रवैये के साथ काम करेगी। सीटवार रणऩीति, संगठन का विस्तार और भाईचारा समितियों की सक्रियता में मायावती अपना मजबूती देख रही हैं।

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