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UP Politics : मायावती की नजर मुस्लिमों पर, चौंका सकती है लखनऊ की रैली

बसपा संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर नौ अक्‍टूबर को लखनऊ में होने जा रही मायावती की रैली है तो चुनावी ही, लेकिन इसके बहाने वह बहुत कुछ साधने जा रही हैं। मायावती का या तो कोई शो होगा ही नहीं और यदि होगा तो उससे उनकी ताकत स्पष्ट रूप से नजर आएगी।

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Vivek Srivastav
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लखनऊ शहर को बसपा कार्यकर्ताओं ने आई लव बीएसपी के पोस्‍टरों से पाट दिया है। Photograph: (वाईबीएन)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। बसपा संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में होने जा रही मायावती की रैली है तो पूरी तरह चुनावी ही, लेकिन इसके बहाने वह बहुत कुछ साधने जा रही हैं। दलितों में अपना खोया जनाधार वापस लाने की एक मुहिम के रूप में तो इसे देखा ही जा रहा है, रैली के जरिये वह मुस्लिमों को भी साधने का प्रयास करेंगी। इस रैली में मुस्लिम समाज के कई बड़े नेता मंच पर दिखाई दे सकते हैं, जिसमें कुछ तो चौंकाने वाले भी होंगे। पार्टी छोड़कर चले गए या निष्कासित किए गए नेताओं की वापसी भी देखने को मिल सकती है। भतीजे आकाश आनंद और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को बसपा में फिर बड़ी जिम्मेदारी देकर मायावती ने यह संकेत दे ही दिया है कि पार्टी के राजनीतिक हितों के लिए वह कुछ कड़वे घूंट पीने को तैयार हैं। वहीं, लखनऊ शहर को बसपा कार्यकर्ताओं ने आई लव बीएसपी के पोस्‍टरों से पाट दिया है। इससे पता चलता है कि कार्यकर्ता भी इस रैली को लेकर काफी उत्‍साह में है।

बिहार चुनाव की घोषणा से बढ़ गया है रैली का महत्‍व

अब आते हैं रैली पर। बसपा सुप्रीमो मायावती का या तो कोई शो होगा ही नहीं और यदि होगा तो उससे उनकी ताकत स्पष्ट रूप से दिखाई देती नजर आएगी। लंबे समय बाद लखनऊ में नौ अक्‍टूबर को होने जा रही बसपा की इस रैली को भी यूपी में उनके शक्ति प्रदर्शन के रूप में ही देखा जा रहा है तो इसके पीछे इसकी व्यापक तैयारियां हैं। पार्टी के सभी पदाधिकारियों ने इसे सफल बनाने के लिए जान झोंक दी है। बसों के साथ ट्रेन से भी कार्यकर्ता आएंगे। पदाधिकारियों का दावा है कि इसमें पांच लाख लोग शामिल होंगे। यदि इतने न भी हुए तो भी रैली स्थल पर भारी भीड़ दिखाई देनी तय है। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्‍वनाथ पाल ने खुद भी कई जिलों का दौरा किया है क्योंकि बिहार चुनाव घोषित होने के बाद इस रैली का महत्व बढ़ गया है। यहां का संदेश यूपी के सीमावर्ती जिलों तक भी पहुंचेगा।

इसी मैदान से 2007 में हासिल की थी बहुमत की सत्ता

बहुजन समाज पार्टी ने 2007 में पूर्ण बहुमत से सत्त्ता हासिल जरूर की थी लेकिन उसके बाद के चुनावों में उसका ग्राफ गिरता ही गया है। अब तो पार्टी के लिए अस्तित्व का प्रश्‍न है क्योंकि लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है और उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी उमाशंकर सिंह के रूप में उसका एक ही सदस्य रह गया है। पार्टी के राष्ट्रीय स्वरूप पर भी खतरा मंडरा रहा है। इससे उबरने के लिए मायावती को 22 प्रतिशत दलितों का साथ तो हासिल करना ही है, मुस्लिम मतों के साथ अन्य समाज के लोगों का भी विश्‍वास हासिल करना होगा। बीते दो चुनावों में दलितों के एक बड़े समूह का भी बसपा से मोहभंग हुआ है और भाजपा ने उनमें सेंधमारी की है। आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर के साथ ही कांग्रेस भी उनके बीच अपनी संभावनाएं टटोल रही है। रैली बसपा के लिए अपनी राजनीतिक मजबूती का प्रदर्शन करने और जनाधार बढ़ाने का अच्छा अवसर है। बसपा ने इसे महासंकल्प रैली का नाम दिया है और खास बात यह है कि यह उसी श्री कांशीराम स्थल पर होने जा रही है, जहां 2007 में रैली कर मायावती ने बहुमत की सरकार बनाई थी। 

इसलिए है मुस्लिमों पर अधिक जोर

फिलहाल रैली स्थल पर बसपा कार्यकर्ताओं का आना शुरू हो गया है। उनके रहने-ठहरने के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। यह रैली न सिर्फ बसपा की ताकत को प्रदर्शित करेगी, बल्कि पार्टी की युवा टीम का भी इम्तिहान होगा। पार्टी के कोआर्डिनेटर आकाश आनंद की वापसी के बाद यह उनका पहला कोई बड़ा कार्यक्रम है। बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के बेटे कपिल मिश्र भी रैली स्थल पर व्यस्त दिखाई दिए। रैली की सफलता ही उनके राजनीतिक कद का भी निर्धारण करेगी। मुस्लिम मतों पर मायावती का जोर इसलिए भी है क्योंकि इससे वह सपा के पीडीए नैरेटिव को नुकसान पहुंचाने में सफल होंगी।

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